दूध की पैदावार और माइक्रोबायोम : भविष्य की डेयरी क्रांति

Milk yield and microbiome

डॉ. मनोज सुधीर तत्वादी

पारंपरिक रूप से गाय, चारा और दूध का संबंध सीधा माना गया है – अच्छा चारा दो, और गाय अधिक दूध देगी। लेकिन आधुनिक विज्ञान ने अब इस साधारण समझ से परे जाकर, गाय के भीतर की अदृष्य दुनिया की ओर संकेत किया है। यह दुनिया है – रूमेन माइक्रोबायोम की।

रूमिनेंट या जुगाली करने वाले वह सम-ऊँगली खुरदार स्तनधारी पशु होते है जो वनस्पति खाकर पहले अपने पेट के प्रथम खाने में उसे नरम करते है और फिर जुगाली करके उसे वापस अपने मूंह में लाकर चबाते हैं। रूमेन यानी गाय का पहला पेट, जिसमें करोड़ो सूक्ष्मजीव चारे को पचाकर ऐसे रासायनिक तत्व बनाते हैं जो सीधे दूध की मात्रा, वसा, प्रोटीन और गुणवता को प्रभावित करते हैं। इन सूक्ष्मजीवों को समझे बिना दुग्ध उत्पादन को पूरी तरह नियंत्रित करना संभव नही हैं।

गाय का रूमेन एक विशाल किण्वन अर्थात फर्मेटेंषन टैंक की तरह काम करता है, जिसमें बॅक्टीरिया, प्रोटोजोआ और फंगी जैसे सूक्ष्मजीव रहते हैं। जब गाय मक्का, अल्फाल्फा या सोया जैसे चारे को खाती है, तो ये सूक्ष्मजीव सेलूलोज और हेमी-सेलूलोज को तोड़कर उसे वोलाटाइल फैटी एसिड (VFA) में बदल देते हैं। यही VFA ऊर्जा का मुख्य स्त्रोत बनते हैं और दूध के घटकों पर असर डालते हैं। विशेषज्ञ डॉ. गैरेट सुएन के अनुसार, ‘‘गाय के पेट की ये सूक्ष्म दुनिया ही दूध की असली निर्माता है, परंतु इसे डेयरी फार्मिंग में अब तक पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया।’’

हाल ही में ‘द साईटिस्ट’ में लौरा ट्रान द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार विस्कोनीन-मेडिसन युनिवर्सिटी के डॉ. सुएन और उनकी टीम ने एक अनोखा प्रयोग किया – उन्होंने अधिक दूध देने वाली गायों के रूमेन से माइक्रोबायोम लेकर कम दूध देने वाली गायों में ट्रांसप्लांट किया।

Milk yield and microbiome

कुछ समय के लिए असर दिखाई दिया – कम उत्पादक गायों की क्षमता बढ़ी, लेकीन कुछ हफ्तों में वे फिर पुराने स्तर पर लौट आई। वहीं, उच्च उत्पादक गायों को जब कमजोर माइक्रोबायोम मिला, तो उनकी क्षमता गिर गई और फिर वह वापस नहीं आई। इससे स्पष्ट हुआ कि वयस्क गायों में रूमेन माइक्रोबायोम बदलना बेहद कठिन है। गाय का शरीर स्वयं पुराने सूक्ष्मजीवों को बहाल कर लेता हैं।

चूँकि नवजात बछडें जन्म के तुरंत बाद माँ से अलग कर दिए जाते है, वे अपने माइक्रोबायोम को वातावरण से ही ग्रहण करते हैं। इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए वैज्ञानिकों ने बछड़े के जीवन के पहले छह हफ्तों में उन्हें चुने हुए रूमेन माइक्रोबायोम दिए। यद्यपि इससे गायों के माइक्रोबायोम में अंतर दिखा, परंतु दूध की मात्रा में कोई स्थायी सुधार नहीं हो पाया।

परंपरागत रूमेन सैंपलिंग श्रमसाध्य होती है। अब वैज्ञानिक ओरल स्वैब (मुखीय नमूना) विधि का उपयोग कर रहे हैं, जिससे रूमेन माइक्रोबायोम का 70% तक आकलन संभव है। यह तकनीक सरल है, लागत कम है और पशु को कष्ट भी नहीं होता – जिससे यह पशुपालन में व्यवहारिक रूप से उपयोगी साबित हो सकती है।

  1. केवल नस्ल और चारा नहीं, गाय के पाचन को भी समझें।
  2. नवजात बछड़ों को साफ, नियंत्रित वातावरण दें – उनका माइक्रोबायोम वहीं से बनता हैं।
  3. अगर संभव हो तो गायों के रूमेन स्वास्थ्य की समय-समय पर जांच कराएँ।
  4. उच्च गुणवता वाला फाइबरयुक्त चारा दें – जो अच्छे सूक्ष्मजीवों को प्रोत्साहित करता है।
  5. स्थायी उत्पादकता के लिए परंपरा और विज्ञान का संतुलन अपनाएँ।

गाय का दूध केवल चारे का परिणाम नहीं हैं – वह उसकी आंतरिक सूक्ष्मजीव दुनिया की उपज है। आधुनिक पशुपालन को इस अदृष्य लेकिन निर्णायक कारक को समझना और अपनाना होगा। भविष्य की डेयरी क्रांति, केवल नस्ल सुधार से नहीं, बल्कि उसके साथ सूक्ष्मजीव प्रबंधन से आएगी।

    लेखक : डॉ. मनोज सुधीर तत्वादी (9372237699)
    (गोविज्ञान, पर्यावरण आणि अध्यात्मिक संस्कृति के अभ्यासक)