कहीं भी जीवन अपनी गुज़ार सकता… Ghazal

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कहीं भी जीवन अपनी गुज़ार सकता था
वह चाहता तो जानबूझ कर हार सकता था

पृथ्वी पैर मेरे लिपट गई अन्यथा
आकाश से तारे उतार सकता था

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मेरे मकान में दीवार न दरवाजा
मुझे तो कोई घर से पुकार सकता था

जला रही हैं जिसे तेज धूप की नजरें
वह बादल उद्यान किस्मत संवार सकता था

संतुष्टि थीं इस की रफ़ाकतें बलराज
वह आईने में मुझे भी उतार सकता था

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बलराज दी
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