सुप्रसिद्ध आंदोलनकारी लेखिका मन्नू भंडारी

Writer Mannu Bhandari
“लोकप्रियता कभी भी रचना का मानक नहीं बन सकती है, असल मानव तो होता है, रचनाकार का दायित्वबोध”।
-मन्नू भंडारी

सुप्रसिद्ध कहानी लेखिका मन्नू भंडारी ( Writer Mannu Bhandari ) ने कई कहानियों में अपना आंदोलनकारी रूप दर्शाया है, उन्होंने अपनी कहानियों में पारिवारिक जीवन, नारी जीवन और समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन की विसंगतियों को विशेष आत्म अभिव्यक्ति प्रदान की हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में व्यंग्य, संवेदना और आक्रोश को मनोवैज्ञानिक आधार बनाया है।

मन्नू भंडारी ने प्रायः सहज, सरल और व्यवहारिक हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया| वह अपनी भाषा में अंग्रेजी के लोक प्रचलित शब्दों का खुलकर इस्तेमाल करती थी| पटकथाओं में तो उन्होंने ऐसे शब्दों का काफी प्रयोग किया। इस तरह के प्रयोगों की वजह से उनकी भाषा में प्रवाह महत्ता आ गई। इनका जन्म 3 अप्रैल सन 1931 में राजस्थान के गांव में हुआ था।

Writer Mannu Bhandari की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर में हुई थी

उनका मूल नाम महेंद्र कुमारी था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अजमेर में हुई थी| काशी हिंदू विश्वविद्यालय से इन्होने हिंदी में एम.ए. की परीक्षा पास की थी| पहले कोलकाता में, फिर बाद में दिल्ली में मिरांडा हाउस में यह हिंदी की टीचर रही थी। हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार राजेंद्र यादव इनके पति थे। मन्नू भंडारी मुख्यरूप से कहानीकार लेखिका थी| उनकी प्रमुख रचनाएं इस तरह है- मैं हार गई ,एक प्लेट सैलाब, यही सच है, तीन निगाहों की एक तस्वीर, आंखों देखा झूठ।




मन्नू ने कुछ पटकथाएं यानी स्क्रिप्ट भी लिखी थी जैसे- रजनी, स्वामी ,निर्मला ,दर्पण। इनके कई उपन्यास भी हैं जैसे- आपका बंटी, महाभोज ,स्वामी ,एक इंच मुस्कान। यह अपने लेखन से ही समाज में क्रांति लाने का प्रयास करती थी, आंदोलन करती थी। मन्नू समाज को सुधारने की निरंतर कोशिश करती रही इसीलिए हमने इन्हें आंदोलनकारी की संज्ञा दी है।

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