भवानी प्रसाद मिश्र : सिर्फ लेखक नहीं समाज सुधारक भी

Bhawani prasad mishra
Bhawani prasad mishra : सिर्फ लेखक नहीं समाज सुधारक भी
हिना आज़मी

“कुछ लिख के सो, कुछ पढ़ के सो तू जिस जगह जागा उस जगह से बढ़ कर सो” यह पंक्तियां हैं हमारे प्रसिद्ध लेखक भवानी प्रसाद मिश्र जी की, जो ना केवल एक लेखक थे बल्कि एक समाज सुधारक भी थे| जो अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में अहिंसा, प्रेम, करुणा जैसी अच्छाइयों को फैलाने की कोशिश करते थे। Bhawani prasad mishra गांधीजी से प्रभावित थे। आज हमें ऐसे कवियों की बहुत जरूरत है, क्योंकि आज हमारे समाज में बहुत बुराइयां फैली है।

भवानी प्रसाद मिश्र प्रयोगवादी काव्य धारा के प्रमुख कवि थे। मिश्र जी ने व्यक्ति ,जीवन, समाज और विश्व को नवीन दृष्टि और विस्तृत आयामो से देखा। उनके गीतों ने आधुनिक हिंदी कविता को नई दिशा प्रदान की थी। मिश्रा जी का जन्म सन 1913 में मध्य प्रदेश के टिगरिया गांव में हुआ था। इनके पिता पंडित सीताराम मिश्र शिक्षा विभाग के अधिकारी थे और वह भी साहित्य में रुचि रखते थे।

मिश्र जी को अपने पिता से साहित्यिक, अभिरुचि और मां गोमती देवी से संवेदनशील दृष्टि मिली थी। मिश्रा जी ने हाई स्कूल की परीक्षा 1935 में जबलपुर में रहकर उत्तरण की थी, फिर वह कल्पना मासिक पत्रिका का संपादन करने लगे। 1950 के दशक में वह आकाशवाणी के कार्यक्रमों का संचालन भी करते थे।

Bhawani prasad mishra की कविताओं में प्राकृतिक वैभव का चित्रण मिलता है

मिश्र जी का बचपन मध्य प्रदेश के प्राकृतिक अंचलों में बीता, इसलिए वह प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति गहरा आकर्षण रखते थे। उनकी कविताओं में सतपुड़ा अंचल, मालवा, मध्य प्रदेश के प्राकृतिक वैभव का चित्रण मिलता है। इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं – गीतफरोश, खुशबू के शिलालेख ,सतपुड़ा के जंगल ,सन्नाटा ,चकित है दुख, अंधेरी कविताएं, बुनी हुई रस्सी, गांधी पंचशती।

मिश्र जी के काव्य में समाज सुधार की भावना देखी जा सकती थी। यह गांधीवाद दर्शन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने प्रकृति वर्णन के अलावा सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा की अभिव्यक्ति की है। कहीं-कहीं  वह अपने कथन को व्यक्त करने के लिए व्यंग्यात्मक का भी सहारा ले लेते थे। यही नहीं उन्हें प्रौढ़ प्रेम की कविताएं भी लिखना पसंद था। 1985 में उनका देहांत हो गया।

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