सामान्य चेहरा होने के बावजूद Smita patil ने दर्शकों को खूब आकर्षित किया
Smita patil 50 और 60 के दशक में हिंदी सिनेमा में अनेक अच्छी अभिनेत्रियां थी। लेकिन तब ऐसे डायरेक्टर फिल्में नहीं थी जो किसी अभिनेत्री की प्रतिभा का पूरा और अर्थपूर्ण इस्तेमाल कर सकें। ऐसे पटकथा लेखक भी नहीं थे, जो किसी अभिनेत्री की सामर्थ्य को सामने रखकर भूमिकाओं की रचना कर सकें।
वहीदा रहमान और नूतन जैसी सामान्य शरीर की अभिनेत्रियों ने अपने समय में अपनी सीमाओं के भीतर अच्छा और अर्थपूर्ण काम किया, लेकिन 70 के दशक में हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को ऐसे अनेक अवसर मिले , जो स्त्री की बदलती छवि के साथ न्याय करते हो और जिनमें अभिनय की गुंजाइश हो। इसी दशक में शबाना आजमी, स्मिता पाटिल अभिनेत्रियों को आगे आने का मौका मिला।
80 के दशक में तो यह हालत थे कि शायद सत्यजीत राय ने भी भुवनशोम की नायिका सुहासिनी के संदर्भ में लिखा था कि “अच्छी अभिनेत्री वह है जो भले ही फिल्म के औसतन फ्रेम में मौजूद ना हो ,लेकिन हर जगह उसकी याद आपको आती रहे, इसलिए अच्छी अभिनेत्रियों को यह चिंता नहीं होनी चाहिए कि उन्हें कितने प्रसंगों में कैमरे का फोकस बनाया गया है”।
Smita patil को कड़ी मेहनत के बाद अपने चेहरे को स्थापित करने का मौका मिला
कुछ अभिनेत्रियों अपने चेहरे के बल पर सिनेमा की दुनिया के जादू का केंद्रीय आकर्षण बनी रहती है, लेकिन इसमे स्मिता और शबाना की पीढ़ी को कड़ी मेहनत के बाद अपने चेहरे को स्थापित करने का मौका मिला था। रेखा या राखी ऐसी अभिनेत्रियां जिन्होंने व्यवसायिक फिल्मों में अपना बाजार बना कर कभी कबार अच्छी फिल्मों में काम किया। खास तौर पर जब इन्होंने बड़ी फिल्में दी तो ये लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गई।
रेखा ने “उमराव जान” और “कलयुग” जैसी फिल्मों में काम किया। इसमें अच्छे निर्देशकों ने रेखा की सामर्थ्य का इस्तेमाल किया और लोकप्रियता का फायदा उठाया। फिल्मकार तोमास आलिया ने बातचीत में मीडिया से कहा था कि वह अपनी फिल्मों वे जाने -माने अभिनेता इसलिए भी लेते हैं कि उन्हें दर्शक ज्यादा मिलते हैं।
स्मिता पाटिल की कहानी थोड़ी अलग है। पहले उन्होंने बहुत मेहनत से अपने चेहरे की सच्ची सुंदरता दर्शकों तक पहुंचाई और फिर कई कमर्शियल फिल्मों में भी काम किया। नमक हलाल”में अमिताभ के साथ बारिश में चालू नृत्य करने से पहले स्मिता “भूमिका” और “उंबरठा” में अपने अभिनय व प्रतिभा के श्रेष्ठ रूप को वह देख चुकी थी।
Smita patil को कम बजट की कुछ फिल्मों से हटाया गया
बॉलीवुड की दुनिया में काम करना और अपने को बचाए रखना आसान काम नहीं था। स्मिता का कहना है कि उन्हे कम बजट की कुछ फिल्मों से इसलिए हटाया गया था क्योंकि उनकी मार्केटिंग वैल्यू नहीं थी। इस चीज के कारण भी उन्होंने औसत व्यवसाय फिल्मों में उछल-कूद शुरू की।
स्मिता जी ने TV पर खबरें पढ़ने के काम से शुरू होकर “सुबह तक की यात्रा” दिलचस्प और “मुश्किल” मे देखी गई। इन्होंने पुणे के फिल्म संस्थान से डिप्लोमा किया श्याम बेनेगल ने स्मिता को खोजा। “निशांत”,” मंथन “आदि फिल्मों ने स्मिता को एक पहचान दी ,लेकिन भूमिका में मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर के जीवन को सिनेमा के पर्दे पर उतारने की चुनौती ने स्मिता को एक बड़ी अभिनेत्री साबित कर दिया।