इस्लामिक कैलेंडर का नया साल (हिजरी) शुरू

About Islamic new year

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चांद की तारीख याद रखना फर्ज-ए-किफाया: मुफ्ति सलीम
622 ईसवी में हुई थी हिजरी सन की शुरूआत

देहरादून। About Islamic new year गुरुवार को चांद का दीदार होने के साथ ही इस्लामिक कैलेंडर के नये साल ( हिजरी ) का आगाज हो गया है। इस कैलेंडर की खास बात ये है कि जहां ईस्वी कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत रात को 12 बजे से होती है वहीं, हिजरी साल यानि इस्लामिक कैलेंडर में नई तारीख की शुरुआत शाम (सूरज डूबने के बाद, मगरिब के वक्त) से होती है।

दुनिया में कई सारे कैलेंडर का चलन है, इसमें एक कैलेंडर सन हिजरी कहलाता है, इसे इस्लामी कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। ये कैलेंडर पैगंबर मोहम्मद साहब ( स.अ.व.)के मक्का से मदीना के विस्थापन (हिजरत) के दिन से शुरू होता है।

इसकी शुरुआत 622 ईसवी में हुई थी। ये कैलेंडर चांद की गति के हिसाब से चलता है इसलिए मौजूदा कैलेंडर की तुलना में साल में 10 दिन कम होते हैं। यानि हिजरी साल 355 दिनों का होता है।

देहरादून के शहर काजी मौलाना मौहम्मद अहमद कासमी व मुफ्ति-ए-आजम देहरादून सलीम अहमद कासमी ने बताया कि मुहर्रम माह का चांद गुरुवार को दिखाई देने की तस्दीक हो गई है।

इस्लामिक कैलेंडर का नया साल (Islamic new year) 1442 शुरू हो गया है। इस्लामिक कैलेंडर हिजरी चंद्र कैलेंडर के हिसाब से चलता है। हिजरी संवत में 12 महीने होते हैं, जिसमें 29 और 30 दिन के माह एक-दूसरे के बाद पड़ते हैं।

मुफ्ति सलीम अहमद कासमी ने बताया कि चांद की तारीख याद रखना फर्ज -ए-किफाया है, क्योंकी इस्लामिक इबादात चंद की तारीख के अनुसार ही होती है। ईद, शब-ए-बरात, रमजान भी चांद देखकर ही शुरू होता है।

कैसे हुई हिजरी सन की शुरुआत

देहरादून। हिजरी की शुरुआत दूसरे खलीफा हजरत उमर फारुख रजि. के दौर में हुई। हजरत अली रजि. की राय से ये तय हुआ था। इस्लाम धर्म के आखरी संदेशवाहक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब (स.अ.व.) के पवित्र शहर मक्का से मदीना जाने (हिजरत करने) के समय से हिजरी सन को इस्लामी वर्ष का आरंभ माना गया।

इसी तरह हजरत अली रजि. और हजरत उस्मान गनी रजि. के सुझाव पर ही खलिफा हजरत उमर रजि.ने मोहर्रम को हिजरी सन का पहला महीना तय कर दिया, तभी से विश्वभर के मुस्लिम मोहर्रम को इस्लामी नव वर्ष की शुरुआत मानते हैं।

मोहर्रम के महीने में ही संसार के पहले मानव आदम दुनिया में आये

मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम है। पैगंबर मौहम्मद साहब (स.अ.व.) के आने से पहले भी मोहर्रम माह की बड़ी अहमियत रही है। कहा जाता है कि इसी महीने में संसार के सबसे पहले मानव आदम अलेहीसस्लाम दुनिया में आये।

शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने अपनी मशहूर किताब गुन्यतुत तालीबीन में लिखा है कि जब हजरत आदम अलेहिसस्लाम दुनिया में आये तो वह मोहर्रम का महीना था।

इसके अलावा मोहर्रम की 10 तारीख (यौमे आशुरा) को ही हजरत नूह अलेहि सलाम की कश्ती को दरिया के तूफान में किनारा मिला, हजरत मूसा अलेहि सलाम और उनकी कौम को फिरऔन के लश्कर से निजात मिली और फिरऔन दरिया ए नील में समा गया।

इस्लामिक कैलेंडर के 12 महीने

1.मुहर्रम 2.सफर 3.रबीउल-अव्वल 4.रबीउल-आखिर 5.जुमादिल-अव्वल 6.जुमादिल-आखिर 7.रज्जब 8.शाअबान 9.रमजान 10.शव्वाल 11.जिल काअदह 12.जिल हिज्जा।

मुसलमानों के लिए अहम है इस्लामी साल (Islamic new year)

इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल के 12 महीने होते हैं। मुहर्रम साल का पहला महीना होता है जबकि आखिरी महीना जिल हिज्जा होता है। इस्लामी साल के पहले महीने मुहर्रम को दुनिया भर में बड़ी अकीदत के साथ मनाया जाता है।

करबला के मैदान में आखिरी नबी पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन को शहादत मिली थी। मुहर्रम की दसवीं तारीख को ‘‘ यौमे आशूरा ’’ कहा जाता है।

यौमे आशूरा

इस दिन खुदा की बड़ी-बड़ी नेमतों की निशानियां जाहिर हुईं और कर्बला की त्रासदी, हजरते इमाम हुसैन की शहादत का भी यही दिन है। इसलिए पूरे इस्लामी विश्व में इस दिन रोजे रखे जाते हैं, क्योंकि पैगंबर मोहम्मद ने भी इस दिन कर्बला की घटना से पहले भी रोजे रखे थे।

( यौमे आशूरा व रोजे की फजीलत अगली किस्त में )

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