अपराधियों से हारी यूपी सरकार!

crime in up

प्रसंगवश /आर. के. सिन्हा
अब सच में उत्तर प्रदेश के शहरों और सड़कों पर सफर करते हुए भय का भाव मन में बना रहता है। क्तल, लूटपाट, फिरौती, बलात्कार, यहाँ तक कि पुलिसकर्मियों पर ही हमले आम बातें हो गई हैं। पहले इस तरह का नहीं था अपना उत्तर प्रदेश। अपराधी अब खुलकर नंगा नाच कर रहे हैं। उन्हें रोकने वाली पुलिस असहाय सी दिख रही है। सच पूछा जाए तो उत्तर प्रदेश सरकार अपराधों को रोकने को लेकर गंभीर होती तो उसने अपने पुलिस महकमों के रिक्त पड़ें पदों को भर दिया होता। आगे बढ़ने से पहले जरा प्रदेश के इन आंकड़ों को देख लेते हैं। उत्तर प्रदेश पुलिस में 3.64 लाख से कुछ अधिक ही राज्य में पुलिसकर्मियों के स्वीकृत पद हैं। इसके विपरीत फिलहाल सारे राज्य में मात्र 1.65 लाख पुलिसकर्मी ही काम कर रहे हैं। 1.99 लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हैं। देश में सर्वाधिक पुलिस कर्मियों के पद उत्तर प्रदेश में ही रिक्त हैं। इस मसले पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी। इस पर जाहिर तौर पर सुप्रीम कोर्ट ने गहरी चिंता जताते हुए सरकार को नोटिस भी जारी किया है ।
दरअसल, उत्तर प्रदेश में कानून- व्यवस्था तार-तार हो चुकी है। गुंडे-बदमाशों ने पुलिस से डरना छोड़ दिया है। स्थिति उलटी हो चुकी है। शातिर बदमाशों और अपराधी किस्म के तथाकथित छुटभैये राजनेतायों की बन्दरघुड़की से अब पुलिस महकमा ही डरने लगा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश हुई एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी सरकार के पहले चार साल के कार्यकाल में पुलिस पर 1,044 हमले हुए। दरअसल बीजेपी विधायक डॉ. राधा मोहन अग्रवाल ने इस संबंध में सरकार से एक सवाल पूछा था। इसका जवाब संसदीय कार्यमंत्री आजम खान ने दिया था। यह आकड़ा उन्होंने ही पेश किया था। हमलों में कई पुलिस वाले मारे भी गए। अखिलेश सरकार के पांचवें साल में भी पुलिस पर हमले होते रहे।
हालांकि उसके आंकड़ें सरकार ने देना अभी तक जरूरी नहीं समझा। अभी भी प्रदेश में पुलिस वालों को निशाना बनाए जाने की खबरें आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं। इस तरह के मामलों ने सरकार के कानून और व्यवस्था को लेकर किए जा रहे दावों की पोल खोल कर रख दी है। खूनी हाईवे उत्तर प्रदेश के नेशनल हाईवे भी अब डरावने होते जा रहे हैं। इन पर रोज लाशें मिल रहीं हैं। जरा याद कर लीजिए पिछले साल बुलंदशहर के पास हाईवे पर हुई मां-बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना को। नोएडा से शाहजहांपुर जा रहे एक परिवार के साथ गाजियाबाद-कानपुर नेशनल हाईवे-91 पर बदमाशों ने खौफनाक वारदात को अंजाम दिया था। बदमाशों ने तीन घंटे तक परिवार को बंधक बनाए रखा और लूटपाट के बाद मां और बेटी से गैंगरेप किया। राज्य पुलिस लंबी मशक्क्त के बाद आरोपियों को पकड़ पाई। इस केस से जुड़ा एक बेहद अफसोसजनक पहलू ये रहा कि राज्य के असरदार मंत्री आजम खान ने रेप केस को कथित रूप से राजनीतिक षडड्ढंत्र बताया था, जिसके बाद गैंगरेप पीड़ित के पिता की अपील पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और आजम खान को नोटिस जारी किया था। हालांकि बाद में बदमिजाज आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट की कसकर पफटकार लगने के बाद से मापफी भी मांग ली थी।
खैर, उत्तर प्रदेश के हाईवे लाशों को ठिकाने लगाने की मुफीद जगह के रूप में उभर रहे हैं। अब इन पर लगातार अज्ञात लाशों के मिलने के कारण दहशत का माहौल रहता है। बीते कुछ समय पहले दिल्ली- आगरा एक्सप्रेस हाईवे पर एक हफ्ते के भीतर छह लाशें मिलीं। इनकी हालत देखकर समझ आ रहा था कि इन्हें बड़ी ही बेरहमी से क्तल करने के बाद हाईवे पर फेंक दिया गया। अभागे मृतकों में दो नौजवान और दो औरतें थीं। इससे पहले भी इस स्थान पर सात लाशें मिली थीं। दरअसल हाईवे पर मिलने वाली लाशों की शिनाख्त पुलिस के लिए खासा कठिन होता है। जाहिर है, इस कारण से हत्यारे कानून की गिरफ्त से बचे रहते हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में हत्याएं करने के बाद उन्हें राज्य के हाईवे पर ठिकाने लगा दिया जाता है। कई बार शव बक्से में डाले होते हैं। उत्तर प्रदेश के हाईवे पर हत्याओं से लेकर लूटपाट आम बात है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा प्रकाशित आंकड़ों पर गौर करें तो समझ आ जाएगा कि उत्तर प्रदेश के हाईवे क्तिने डरावने होते जा रहे हैँ।
उत्तर प्रदेश को देश के क्राइम स्टेट का तमगा मिल सक्ता है। उसकी अभिव्यक्ति इस राज्य से गुजरने वाले हाईवे पर भी होती है। देश का सबसे बड़ा हाईवे का नेटवर्क उत्तर प्रदेश में है। राज्य में 8,483 किलोमीटर लंबा हाईवे है। उत्तर प्रदेश से सटे आबादी में दूसरे नंबर के राज्य बिहार में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 4,967 किलोमीटर है। यानी उत्तर प्रदेश का आधा। इन राजमार्गों पर सफर करना सुखद और सुरक्षित हो, इसके लिए जरूरी है कि अपराधियों के मन में पुलिस का खौपफ हो। वे अपराध को अंजाम देने से पहले दस बार सोचें। जब उत्तर प्रदेश में एक लाख से अधिक पुलिस कर्मियों के पद ही खाली पड़े हैं तो आप क्या उम्मीद कर सक्ते हैं। इतने पद कोई एक दिन में तो रिक्त नहीं हुए। कायदे से इन दिनों जनता से वोट मांग रहे समाजवादी पार्टी के नेताओं से राज्य की जनता को सवाल पूछना चाहिए कि उसने इतने पुलिस कर्मियों के पदों को क्यों नहीं भरा? यही सवाल कांग्रेसी नेताओं से भी पूछा जाए जो समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
यकीन मानिए कि कठोर एक्शन लिए बगैर तो हाईवे कभी भी सुरक्षित नहीं होने वाले। अखिलेश सरकार की काहिली बदस्तूर बनी हुई है। उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर की घटना के बाद हाईवे के लिए खास पुलिस दस्ते बनाने की बात कुछ समय तक चली और उसके बाद उस फाइल को लगता है कि अब ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। क्तल और बलात्कार जरा सोचिए कि जिस राज्य ने देश को सर्वाधिक सात प्रधानमंत्री दिए हों, वहां पर क्तल और बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी आंकड़ों में ही कहा गया है कि हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मामले में उत्तर प्रदेश देश में अव्वल है। वर्ष 2015 में यूपी में हुए ऐसे जघन्य अपराधों की संख्या दूसरे राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है। इतना ही नहीं, वर्ष 2015 में दलितों के खिलाफ अत्याचार के सबसे ज्यादा 8358 मामले भी उत्तर प्रदेश में ही दर्ज किए गए हैं।
चीख-चीखकर आंकड़ें यह बता रहे हैं कि वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में हत्या के सबसे ज्यादा 4732 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद बिहार में 3178 मामले दर्ज हुए। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में भी उत्तर प्रदेश सबसे आगे रहा। यहां ऐसे 35 हजार, 527 मामले दर्ज किए गए। राज्य में महिलाओं के खिलाफ रोजाना औसतन 97 अपराध हो रहे हैं। निश्चित रूप से लखनऊ तथा आगरा राज्य के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण शहरों में से हैं, पर ये भी अपराध मुक्त नहीं रहे। तहजीब और ताजमहल के शहर में भी खून बहता रहा, लपफंगई होती रही। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2015 में लखनऊ में सबसे अधिक 118 नागरिकों की हत्याएं हुईं। 2014 में यहां 109 हत्याएं हुई थीं। वहीं 92 हत्याओं के साथ मेरठ दूसरे और 74 हत्याओं के साथ आगरा तीसरे नंबर पर रहा। दागदार सपा नेता नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, अखिलेश सरकार के पहले चार साल में उत्तर प्रदेश में 93 लाख से ज्यादा क्राइम की घटनाएं हुई हैं। इनमें से 71 फीसद क्राइम सपा के विधायक, नेताओं या अखिलेश सरकार में अब तक बने मंत्रियों के जिलों में हुआ है। मैं इस क्रम में राज्य विधानसभा में 31 मार्च 2015 को समाप्त हुए वर्ष के लिए प्रस्तुत कैग की रिपोर्ट के कुछ बिन्दुओं को यहां पर रखना चाहता हूं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2010-11 से लेकर 2014-15 के बीच प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 61 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। क्या इस रिपोर्ट को अखिलेश यादव या उनके मंत्रियों ने सदन में पढ़ा है? कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2013-14 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में बहुत तेजी से बढोत्तरी हुई। वर्ष 2012-13 में जहां यह संख्या 24 हजार, 552 थी वह 2013-14 में 31 हजार, 810 हो गई और वर्ष 2014-15 में भी इसमें कोई कमी नहीं हुई। बेशक, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो तथा कैग की रिपोर्टों से अब कोई बहस की गुंजाइश नहीं बची है कि उत्तर प्रदेश प्रदेश में सूरते-हाल बदतर हो चुके हैं। जरा देखिए कि कैग की रिपोर्ट पर कांग्रेस नेता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा था कि रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि सपा के शासनकाल में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति सबसे खराब है। ये बात दीगर है कि उनकी ही कांग्रेस पार्टी इस विधानसभा चुनाव में सपा के साथ जनता से वोट मांग रही है। यह नारे लगाकर कि ‘‘यू0पी0 को यह साथ पसंद है।श्श् अगले 11 मार्च को जनता यह बता देगी कि उन्हें यह ‘‘साथ’’ पसंद है अथवा नहीं।