कोटा। गोर्वधनमठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा है कि मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति तब होती है जब उसके तन-मन के विकार दूर हो जाते हैं। वैदिक गणित एक दर्शन है जो वेदों ने दिया है। वेदों के ज्ञान के आधार पर भारत ने शून्य का आविष्कार किया है। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती मंगलवार को किशोरपुरा स्थित छप्पन भोग में विशाल सनातन धर्मसभा में उपस्थित धर्मावलंबियों को संबोधित कर रहे थे।
स्वामी जी ने कहा कि विकृत विज्ञान के प्रयोग से पृथ्वी पर जो विपदाएं, तापमान में बढ़ोत्तरी, पर्यावरण प्रदूषण, विकरणों के दुष्प्रभाव और ब्रह्मांड के पंच तत्व पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल और आकाश में दूषित रूप प्रकट हो रहे हैं उसका कारण भौतिक विज्ञान का प्रयोग है। वैदिक विज्ञान को अपनाने से ही प्रकृति चक्र और जीवन चक्र सही संचालित हो सकता है। उन्होंने कहा कि वैदिक विज्ञान एक जीवन दर्शन है। यह मूल भारतीय संस्कृति है जो विश्व का मार्गदर्शन करती रही है। दुर्भाग्य है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने भारत को वैदिक विज्ञान के मूल तत्व से अलग कर दिया है। वैदिक विज्ञान संपूर्ण जीव-जगत और प्रकृति में है। हमारी शिक्षा में वैदिक विज्ञान को शामिल कर मूल संस्कृति की ओर लौटने की जरूरत है। स्वतंत्र भारत में हमारी सरकार विदेशी कंपनियों का उपकरण बनती रही है, राष्ट्रीय लोकतंत्र षड़ंयंत्रों का शिकार हो रहा है।
राजनीति में शोधन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वेदविहीन विज्ञान विकास के नाम पर विस्फोटक बन गई है। वेद युक्त सात्विक विज्ञान को अपनाकर ही मानव जाति को सही दिशा में ले जाया जा सकता है। वैदिक गणित, अध्यात्म एवं धर्म से जुड़े गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य हमेशा मृत्यु के भय से डरा रहता है और वो हर समय अमरता के बारे में विचार करता रहता है लेकिन यह सत्य है कि इस धरती पर कोई भी शरीर अमर नहीं है, अमर तो सिर्फ आत्मा है, जिस किसी भी जीवन ने इस धरती पर जन्म लिया है उसे मृत अवस्था को प्राप्त करना ही होगा। इससे पूर्व गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर जगतगुरू शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती के कोटा पहुंचने पर स्वागत में श्रद्धालुओं ने पलक पांवड़े बिछा दिये। विभिन्न जगहों पर स्वागत द्वार लगाकर पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। श्रद्धालुगण स्वामीजी को रेलवे स्टेशन से तलवण्डी तक शोभायात्रा के रूप में लेकर पहुंचे।