त्रिशंकु बनी कांग्रेसः न विपक्ष में न सत्ता में

rahul gandhi and akhilesh yadav

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
सपा से समझौते के पहले कांग्रेस कुछ पल के लिये ही सही, अपने विवक्षी धर्म का निर्वाह कर लेती थी लेकिन गठबन्धन के बाद उसने अपनी स्थिति त्रिशंकु जैसी बना ली है। अब वह न तो विपक्ष में है और उ0प्र0 की सत्ता में तो पहले से नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को इस स्थिति का अनुमान नहीं है। लेकिन जमीनी स्तर पर उनके कार्यकर्ता परिस्थितियों से तालमेल बैठाने में विपफल हैं। दुविधा प्रत्येक सीट पर है जहां कांग्रेस के उम्मीदवार है, वहां सपा का अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। सपा नेतृत्व भी कांग्रेस के पक्ष में वोट ट्रांसफर कराने की स्थिति में नहीं है। इन एक सौ पांच सीटों पर कांग्रेस को अपने बेहद लचर संगठन के बल पर ही चुनाव प्रचार करना पड़ रहा है। गठबन्धन की वास्तविक कठिनाई का सामना कांग्रेसियों को यहीं करना पड़ रहा है।

कुछ दिन पहले तक ये लोग सपा के खिलाफ बातें कर रहे थे। इनसे कहा गया था कि शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री बनाने के लिये दम लगा दें, सपा सरकार को उखाड़ फेंके। अब इनसे कहा गया कि सपा सरकार का बचाव करना है। अब तक विरोध में जो मुद्दे उठा रहे थे, उन्हें अब उपलब्धि के तौर पर पेश करना है। जैसे पहले कानून व्यवस्था को खराब बताया जा रहा था, अब कहना है कि कानून व्यवस्था अच्छी थी, पहले कह रहे थे कि सपा ने गांव व किसान पर ध्यान नहीं दिया, अब कहा जा रहा है कि पांच वर्ष पुरानी सपा सरकार को कुछ ना कहें, केन्द्र सरकार पर हमला बोलें। बड़े नेता तो मंच से बोलकर या रोड शो करके निकल जाते हैं। उन्हें जमीन पर ऐसे गठबन्धन की कठिनाईयां समझ में नहीं आतीं। जिन सीटों पर सपा के उम्मीदवार हैं, वहां कांग्रेस अपने वोट उनके पक्ष में ट्रान्सफर कराने के विषय में सोच भी नहीं सकती। इसके लिए समर्थक वर्ग, मजबूत नेतृत्व व संगठन की आवश्यकता होती है, कांग्रेस के पास इन सभी का आभाव है।

उसके समर्थक भी निराश हैं। सपा के पक्ष में वोट करने के प्रति उनके मन में संकोच है इसके अलावा सपा के कार्यकर्ता कांग्रेस के लोंगो को कोई अहमियत देने को तैयार नहीं है।इसके अलावा राहुल गांधी के भाषण से ऐसा लग रहा है, जैसे वह लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वह मोदी सरकार के पीछे पड़े हैं, हिसाब मांग रहे हैं लेकिन उ0प्र0 में कुछ ही दिनों के अंतर पर उनके दो रूप दिखाई दिये। खटिया सभा के पहले वह मोदी पर हमला बोलते थे। प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने ध्यान दिलाया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार है। कांग्रेस विपक्ष में है। उसने 27 साल की बेहाली दूर करने का नारा दिया है। भावी मुख्यमंत्री को प्रोजेक्ट भी कर दिया है तब जाकर राहुल को समझ आया। मोदी के बाद उन्होंने सपा सरकार पर भी हमला बोलना शुरू किया। कुछ ही दिन बीते, सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो गया। 27 साल की बेहाली से मुलायम और अखिलेश का कार्यकाल हटाना पड़ा। शेष कितने बचे, इस पर कांग्रेस खामोश रही लेकिन इस स्थिति ने उससे विपक्षी भूमिका को पूरी तरह छीन लिया। प्रदेश सरकार को छोड़कर वह केन्द्र पर ही निर्भर हो गयी। राहुल का पूरा भाषण नरेन्द्र मोदी पर ही केन्द्रित हो गया। अखिलेश के पांच वर्ष अच्छे लगने लगे।

ये वह दौर था जिसमें कांग्रेस अवश्य बेहाल थी उसी दौर की तारीपफ करनी पड़ रही है। सत्ता से दूर थे, लेकिन सत्ता का गुणगान कर रहे हैं यह बता रहे हैं कि अब दोनों मिलकर ज्यादा तेज काम करेंगे। वैसे इस दावे के पक्ष में प्रमाण नहीं दिये गये। राहुल ने तो मान लिया है कि ये लोकसभा नहीं, वरन् विधानसभा के चुनाव हैं। कहाने को इस गठबंधन ने तीन घोषणा पत्र जारी किये। इसमें सपा-कांग्रेस के अलग-अलग जारी हुये घोषणा पत्र के अलावा गठबंधन का घोषणा पत्र भी शामिल है। कांग्रेस ने तो मात्र एक सौ पांच सीटों पर लड़ने के बावजूद अलग घोषणा पत्र जारी किया। घोषणा पत्र की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है लेकिन इसको जारी करने का खास अवसर व मकसद होता है। संबंधित पार्टी अपने चुनावी वादों से आमजन को अवगत कराना चाहती है। लेकिन इस मामले में कांग्रेस त्रिशंकु की स्थिति में दिखाई दी। पिछले दिनों लखनऊ के एक पांचतारा होटल में गठबंधन का घोषणापत्र जारी किया गया। जिनका साथ यूपी को पसंद होने का दावा किया जा रहा है, वह भी मौजूद थे लेकिन यहां भी वोटों की जगह मोदी ही चर्चा में रहे।