11 साल बाद फिर दो मुस्लिम नौजवान मोहम्मद रफीक और मोहम्मद हुसैन बेगुनाह साबित होकर जेल से बाहर आ गए हैं। दिन भर फालतू के मुद्दों पर डिबेट कराने वाली मीडिया के पास 10 मिनट का भी वक़्त नही है की इनके लिए न्यूज़ दिखा दे की इनके 11 साल का जिम्मेदार कौन है |…..
साथ ही ये भी बताते चले आप को अभी कुछ दिनों मै पाकिस्तानी जासूस भी पकडे गये है, पर हमने अभी तक उन के ऊपर कही से भी आक्रोश नही सुना और न ही किसी बड़ी हस्ती ने अपने ब्लॉग में कुछ लिखा अगर किसी ने कोशिश भी की तो उसे बड़े अच्छे कमेन्ट मिले, मै बया नही कर सकता | वैसे सभी समाज के लोग अच्छे और बुरे हो सकते है, ये बात इन जासूसों ने साबित कर दी है जहा तक मेरा ख्याल है | अब कुछ लोगो को जवाब मिल गया होगा जो बार बार बोलते थे की हर आतंकवादी मुस्लमान क्यों होता है, जवाब ये नही की मुस्लमान नही होता है जवाब ये है की मुसलमानों को आतंकवादी कहा जाता है, और जब वो निर्दोष साबित होते है तो कोई मिडिया नही दिखता पर जब वो पकडे जाते है, उन के नाम के सामने आतंकवादी लिख दिया जाता है और बार बार लोगो को बताया जाता है की देखो ये है आतंकवादी …..
अब ये पढ़े और विचार करे…..
11 साल पहले दिल्ली में एक ही दिन 3 ब्लास्ट हुए जिसमे 67 लोग मारे गए और 200 से भी ज्यादा लोग घायल हुए थे। कोई ये सवाल तक नही कर रहा की जब ये दोनों लोग छूट गए तो उन 67 मौतों को जिम्मेदार कौन था। न्यूज़ चैनल “आज तक” सफाई क्यों नही दे रहा की उसे हरकत उल मुजाहिद्दीन के नाम से ईमेल भेज कर इस ब्लास्ट का जिम्मेदारी लेने वाला कौन था?क्या बनारस ब्लास्ट, हाशिमपुरा, और नारायण पुर बाथे नरसंहार के तरह यहां भी लोग अपने आप मर गए ?? मीडिया और पुलिस ने मिलकर कश्मीर और मुसलमानों को बदनाम किया ही साथ में उस ब्लास्ट के असल मुजरिमो को बचाने में भी अपना अहम किरदार अदा किया । जिस दिन मुहम्मद रफीक की गिरफ़्तारी हुयी उस वक़्त वो कश्मीर यूनिवर्सिटी में MA कर रहे थे। कश्मीर यूनिवर्सिटी ने खुद एक खत में लिखा था की ब्लास्ट के दिन रफीक यूनिवर्सिटी में मौजूद थे पर इन्वेस्टीगेशन कर रही दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने उस खत को दबा दी। अदालत के पास अफ़सोस करने के सिवा कोई लफ्ज नही है और न ही वो जरूरत महसूस करती है की कोई एक्शन लेकर इस तरह से नौजवानों की जिंदगी बर्बाद करने से रोकने का पहल करे। अब तो शायद ही इस घटना की सच्चाई सामने आये और असली मुजरिम पकड़े जाएं क्योंकि हेमंत करकरे जैसे ऑफिसर भी नही रहे जो इस तरह की घटनाओं का सच जनता के सामने ला सके।…..