’लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ महिलाओं के यौन कल्पना की कहानी है

lipistik

यूं तो बॉलीवुड में निर्माताओं और सेंसर बोर्ड के बीच टकराव और विवाद अब एक सामान्य बात है जो आमतौर फिल्मकार काफी संघर्ष के बाद सेंसर बोर्ड के मुंह से अपनी फिल्म किसी ने किसी तरीके से छुड़ाने में सफल हो ही जाते हैं। अब चाहे वह फिल्म ’अलीगढ़’ हो या ’उड़ता पंजाब।’
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म प्रमाणन और बॉलीवुड एक बार फिर आमने-सामने हैं। इस बार अलनक्रिता श्रीवास्तव की फिल्म ’लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ सेंसर बोर्ड में फंस चुकी है और बोर्ड ने इस फिल्म को सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया है। बॉलीवुड के अन्य फिल्म दुनिया ने फिर सेंसर बोर्ड के खिलाफ हो गया है और इस बार अलनक्रिता श्रीवास्तव के साथ खड़े हैं।

Lipistik under
इस फिल्म की कहानी भोपाल की चार महिलाओं की सेक्स जागरूकता और यौन कल्पना के बारे में है। 15 से 55 साल की इस महिला पुरुषों के प्रभुत्व वाले समाज के सभी बंधनों को तोड़ कर अपनी जाति की खोज करना चाहते हैं। फिल्म का लेख तो अच्छा है। लेकिन जब मैं कार्यालय में इस फिल्म के दो मिनट का ट्रेलर देखने की कोशिश की तो कुछ सेकेंड बाद ही घबराकर ट्रेलर बंद कर दिया। इसलिए नहीं क्योंकि मैं भी सेंसर बोर्ड की तरह फिल्म में मानव ऐसे निजी और वास्तविक क्षणों को पर्दे पर लाने या देखने के खिलाफ हूं, जो अभिव्यक्ति किसी के सामन अधिकार के लिए समाज में बेअदबी या बुरा भेद माना जाता है।

बल्कि शायद इस डर से कि मेरे चारों ओर मौजूद मेरे साथी मेरे बारे में क्या सोचेंगे। शायद बात हमारी सोच पर आकर ठहर जाती है और कहते हैं कि सोच ही है जो सही और गलत का फैसला करती है। बहरहाल सेंसर बोर्ड का फैसला है कि फिल्म के दृश्यों और भाषा आपत्तिजनक हैं। सेंसर बोर्ड के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर जहां फिल्म के समर्थन में लोग ट्वीट कर रहे हैं, वहीं इस बात पर भी चर्चा हो रही है कि यौन मामलों को किस तरीके से और किस हद तक पर्दे पर दिखाया जाना सही है।