कश्मीर घाटी सुलग रहा – कविता

Kashmir Valley Burning - Poem
Kashmir Valley Burning – Poem

सुना है, इनदिनों घाटी-ए-कश्मीर सुलग रहा ( Kashmir Valley Burning ) ,
कैसे हमारी माँ भारती का दिल, सुलग रहा,

Nitu singh
नीतू सिंह

पत्थर-दर-पत्थर सुलग रहे, जमीर सुलग रहा,
किसने आग डाली, हमारा जागीर सुलग रहा,

जम्हूरियत परेशां, हैरान, बेगुनाह आशियां
सुलग रहा, जैसे ख्वाबों का ताबीर सुलग रहा,

कहाँ हैं सियासतदार अब, दामन सुलग रहा,
वादियों का घुंघट सुलग रहा, चुप्पी क्यों ??

कश्मीर कि माटी, जवाब मांगे, दर्द में हो मुब्तिला,
हमसबके, ख्वाबों का झीलों वाला डोला सुलग रहा,

थोड़ी इतमीनानी है, कश्मीर मुद्दे पे मोदी यात्रा जारी है,
भारत का तहम्ममुल सुलग रहा, दिले-जज्बात सुलग रहा…।।

जय हिन्द, जय भारत, जय हिन्द कि सेना
तहम्ममुल-Patience, जम्हूरियत-People, Democracy


बन सको तो इंसान बनो

ये क्या माजरा कि हिन्दू मुस्लिम की बात करते हो,
इनसान है सब क्या बकवास करते हो,

हमने बांटा सबको रब ने नहीं,
किसी में कोई निशां नहीं हिन्दू या मुस्लिम होने का,

ये भारत सबका अपना धर्मनिरपेक्षता को कहता संविधान सुनो,
बन सको तो इंसान बनो,
न हिन्दू न मुस्लिम मिलके हिन्दुस्तान बनो।

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