Jamia students came out with torch of justice
- 17 साल बाद भी बटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल बरकरार
- बटला हाउस एनकाउंटर की 17वीं बरसी पर हुआ प्रदर्शन
नई दिल्ली। Jamia students came out with torch of justice जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों ने बटला हाउस एनकाउंटर की 17वीं सालगिरह पर ‘इंसाफ मशाल जुलूस’ निकाल कर बटला हाउस में मारे गए युवाओं के लिए इंसाफ की मांग उठाई। छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन के नेतृत्व मशाल जुलूस जामिया की सेंट्रल कैंटीन से शुरू होकर बटला हाउस चौक और फिर जामिया के गेट नंबर-7 तक जाने का कार्यक्रम था।
मगर यूनिवर्सिटी के मुख्य गेट से बाहर निकलते ही दिल्ली पुलिस ने मार्च रोक दिया। पुलिस ने कुछ छात्रों को कैम्पस के भीतर रोका और एक छात्र को वहां से हिरासत में ले जाने की खबरें आईं।
छात्र-नेताओं की मांग और नारे
छात्रों व आयोजकों का कहना था कि वे बटला हाउस में मारे गए उन युवाओं के लिए इंसाफ और घटना की पारदर्शी, निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं, साथ ही उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की माँग भी बराबर उठाई जा रही है जो जांच-अनुशासन में दोषी माने जाएँ।
बटला हाउस एनकाउंटर
बटला हाउस की मुठभेड़ 19 सितंबर 2008 को हुई थी। उस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और अभियुक्तों के बीच फायरिंग हुई, पुलिस का कहना था कि जिन युवकों पर मामला था वे इंडियन मुजाहिदीन से जुड़े थे। उसी घटना में दो स्थानीय युवकों, अतिफ अमीन और मुहम्मद साजिद मारे गए, साथ ही दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा भी उसी ऑपरेशन में शहीद हुए।
ऐसी चली जांच और कानूनी कार्यवाही
घटना के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर जांच की और 22 जुलाई 2009 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस को क्लीन-चिट देने वाला रिपोर्ट प्रकाशित की। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बाद में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार कर और स्वतंत्र न्यायिक जांच न करने का अनुशासन दिया। 2013 में साकेत सेशन कोर्ट ने शाहजाद अहमद (उर्फ पप्पू) को कुछ आरोपों में दोषी ठहराया। दूसरी ओर, एक अन्य अभियुक्त अरिज़ खान (जुनैद) को 15 मार्च 2021 को निचली अदालत ने इंस्पेक्टर शर्मा की हत्या का दोषी ठहराकर मृत्युदंड सुनाया, बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने (2023) मृत्यु दंड की सजा को आजीवन कारावास में परिवर्तित किया।
क्यों विवाद बना रहा मामला
बटला हाउस एनकाउंटर्स के आसपास का मुद्दा दशकों से संवेदनशील रहा, कानून-व्यवस्था, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, पुलिस प्रक्रियाओं पर सवाल और ट्रायल-प्रक्रियाओं की शंका लगातार उठती रही है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट को कुछ मानवाधिकार समूहों ने अपर्याप्त बताया और स्वतंत्र न्यायिक जाँच न होने पर असंतोष बना रहा।
आज का सुरक्षात्मक हालात और प्रशासनिक रुख
आज के मशाल जुलूस के मौके पर आसपास के इलाके में सुरक्षा-बढ़त देखी गई, यूनिवर्सिटी मुख्य गेट पर पुलिस मौजूद थी और छात्रों को बाहर निकलने से रोका गया कृ कुछ छात्रों के हिरासत में लिए जाने की रिपोर्टें लाइव अपडेट्स में दर्ज हैं।
पिछले सालों में कैसे मनाई गई बरसी
पिछले कई सालों में बटला हाउस की बरसी पर छात्र-समूह, नागरिक मंच और राजनीतिक/धार्मिक संगठनों द्वारा रैलियाँ, कैंडल मार्च और प्रदर्शन होते रहे हैं, कई बार यह स्मरण और जांच-मांग शांति-पूर्वक रही, कुछ बार पुलिस-सुरक्षा और तनाव भी बढ़े।
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