खाने की बर्बादी

food waste

शादाब अली

हमारे देश में इस समय शादी समारोह का माहौल चल रहा है । लेकिन इन शादी समारोह में सबसे ज्यादा खाने की बर्बादी ( food waste ) की जाती है। विवाह समारोह में किसी भी व्यक्ति के लिए खाने का इंतजाम करना एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है मेहमानों को लजीज व्यंजन मेन्यू में परोसे जाए इसके लिए काफी जतन करना पड़ता पड़ता है लेकिन इसके विपरीत कई लोग विवाह समारोहों में खाने को बर्बाद करने से बाज नहीं आते है ।

भारत में शादियों में खाने की बर्बादी सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। शादियों में लोग खाने पर हजारों पैसे खर्च करते हैं लेकिन बनाया गया लगभग 40% खाना बर्बाद हो जाता है। कुछ मामलों में, बर्बादी 20-25 प्रतिशत तक होती है जिस देश में हजारों लोगों के पास खाने के लिए खाना नहीं है, वहां इतना सारा खाना यूं ही फेंक दिया जाता है।

शादियों में बुलाए गए मेहमान अलग-अलग विचारों के कारण खाने की बर्बादी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं, ज्यादातर उन्हें यह डर रहता है कि दूसरी बार खाना लेने जाएंगे तो खाना नहीं मिलेगा, पहली बार देखा तो खाना नहीं मिलेगा, पहले खाया या शिक्षा की कमी के कारण उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि अगर वे अतिरिक्त भोजन लेंगे तो वह बर्बाद हो जाएगा।एक तरफ विवाह-शादियों, पर्व-त्योहारों एवं पारिवारिक आयोजनों में भोजन की बर्बादी बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर भूखे लोगों द्वारा भोजन की लूटपाट देखने को मिल रही है।

भोजन की लूटपाट जहां मानवीय त्रासदी है, वहीं भोजन की बर्बादी संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। एक तरफ करोड़ों लोग दाने-दाने को मोहताज हैं, कुपोषण के शिकार हैं, वहीं रोज लाखों टन भोजन की बर्बादी एक विडंबना है। एक आदर्श समाज रचना की प्रथम आवश्यकता है कि अमीरी-गरीबी के बीच का फासला खत्म हो।

शादियों, उत्सवों या त्योहारों में होने वाली भोजन की बर्बादी से हम सब वाकिफ हैं। इन अवसरों पर ढेर सारा खाना कचरे में चला जाता है। लेकिन हर तरह के नए-नए पकवान एवं व्यंजन चख लेने की चाह में खाने की बर्बादी ही देखने को मिलती है। इस भोजन की बर्बादी के लिए न केवल सरकार बल्कि सामाजिक संगठन भी चिंतित हैं।

भारतीय संस्कृति में जूठन छोड़ना पाप माना गया है। दूसरी ओर यहां तो अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है लेकिन तथाकथित धनाढ्य मानसिकता के लोग अपनी परंपरा एवं संस्कृति को भूलकर यह पाप किए जा रहे हैं। सब अपना बना रहे हैं, सबका कुछ नहीं। और उन्माद की इस प्रक्रिया में खाद्यान्न संकट, भोजन की बर्बादी एवं भोजन की लूटपाट जैसी खबरें आती हैं, जो हमारी सरकार एवं संस्कृति पर बदनुमा दाग हैं।

भूखे लोगों द्वारा भोजन लूटने की घटनाओं से एक बड़ी मानवीय त्रासदी का पता चलता है। अगर भूखा रहने पर कोई इतना मजबूर हो जाए कि या तो वह खुद को खत्म कर ले या फिर पड़ोसी की रोटी पर झपट पड़े, तो यह ऐसा दृश्य है जिसे देखकर कोई भी बेचैन हो सकता है। एक तरफ यह नीतियों में भारी खामी का संकेत करती है, तो दूसरी तरफ सामाजिकता एवं संवेदनशीलता का अभाव दर्शाती है, जहां लोग अपने पड़ोस में भूख से तड़पते लोगों से बेखबर अपनी समृद्ध दुनिया में गाफिल रहते हैं।

खाने-पीने की चीजों में आई महंगाई ने 2 अरब लोगों को भोजन के लिए छीन-झपट तक के लिए मजबूर कर रखा है। यह संघर्ष असल में उनकी जिंदगी का सवाल है। इसलिए जरूरी है कि भूख से पहले गरीबी का इलाज हो ।दुनियाभर में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई भोजन बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे 2 अरब लोगों के खाने की जरूरत पूरी हो सकती है।

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