पर्यावरण संरक्षण

प्रकाश चन्द्र उनियाल
हम यथार्त को यदि धरती पर उतारना चाहे तो हमें सबकुछ परिदृष्य लगेगा। जब जब प्राकृति से मानव छेड़छाड़ करेेगा, मानव कोे उसके भयंकर दुस्परिणाम भुगतने पड़ेंगे। वृहत खनन, वृृक्ष कटान, बड़े बांधोे का बनना, पहाड़ों कोे तोड़ना इन कार्यों सेे प्राकृतिक संतुुलन बिगड़ता हैै जिससे आंधी तूफान, लू चलना, ओला वृृस्ट, बादल फटना, बाढ़ का आना, आपदा, भूकम्प, चक्रपात आदि ससब प्राकृतिक असंतुलन के कारण हैै। पर्यावरण क्या है पर्यावरण का तातपर्य यह है कि सुन्दर जल सुन्दर स्वच्छ वायु वातावरण भान्ती प्रिय जीवन स्वच्छ नदिया स्वच्छ नाले जल क्षोत्रो की स्वच्छता हवनी मुल वातावरण गन्दगी मुल वातावरण गन्दगी मुल वातावरण होने चाहिए इस लिए हमे उन बिन्दुओ पर चिन्ता करना होगा कैसे पर्यावरण सुधार होना वनो का विकास एवं सौदेर्यकरण-अच्छे पर्यावरण को बनाने के लिय वनों का सुनिश्चित विकास होना जरूरी होता है जिस जल वायु जिस वातावरण में कौन सी जाती का पेड़ पनप पाता है अच्छे नस्ल या जाती के वृक्ष को संरक्षण देना चाहिए तथा उन्नत उच्च नस्ल या जाती के वृक्ष संरक्षण देना चाहिए तथा उन्नत किस्म के पेड़ लगाना हमारा उदेश्य होना चाहिए वनोें केे सौैदर्य कारण एवं मार्गों के किनारे-किनारे पुुष्प वृक्षो को लगाया जाना जरूरी होना चाहिए, जोे पर्यावरण कोे आकर्षित करनेे मेें हमारी प्रायः मदद करें। वृक्षा रोेपण में आर्थिक मूल एवं औषधि मूलक वृक्षांे को वारियता दे।
वृक्षो रोपणः- हमारा जन्म सिद्व एवं मूल अधिकार है तालाव एवं व्ृक्ष-प्राचीन समय से हो गावं मे एक तालाब होता था और उसके किनारे एक छाया दार वक्ष लगा लिया जाता था पेड़ पिपल वएद पिलखन खड़क आदी जातियो के वक्ष होते थे जो पैदल यात्रीयो के विषय तथा जानवरो मे पानी पीने नहाने के काम आते थे गावं के लोग भी इन पेड़ो के नीचे चैपाल लगा दिया करते थे जोकि वद्यं का वातावरण रोमंचक बना रहता था जो लुप्त हो गया। इस संस्कृृति को पुुनः जागृृत करने की जरूरत है।
मार्गो की स्थिति- किसी गाव कस्बे या नगर कि सामाजिक आर्थाकि स्थ्तिि देखने के लिए वद्यॅ के मार्गो को स्थ्तिि देखनी जरूरी होती है मागे सड़के स्वच्छ है गन्दी है गन्दगी भरी है या टूटे फूटी है धूल भरी है वद्यं के पर्यावरण को तय करती है तथा पर्यावारण से ही जमीन गावं कस्वे शहन का मुुल्यांकन  होेता है।
वन्य प्राणीयो के लिए पेय जल एवं वि़श्रामः हम अपने विकास के साथ कभी इतने अन्धे हो जाते है कि हम भूल जाते कि हमारे कार्यो द्वारा वन्य पा्रण्ीयो के पेय जेल एवं विश्राम को जगघें को नुकसान तो नही हो रहा है कभी कभी वन प्राणियों को पीने का पानी तथा विराम के जगह नही मिल पाती जहा रात या दिन मे वे रह सके सो सके परेशान होकर यन्य प्राणी मानव भुत बन जाते है जल और विकास के तलास मे वे मानव वास्तियो की तरह प्रवेश कर बैटते है वाघं आदमखोर तथा होथो मानव खेती फलो वक्षो को हानी पहुचाती है पर्यावरण सिफ्र्र मानव को ही बल्की जानवरो पसुयो को भी बहुत पसन्द आता है इसकी सुरक्षा सबका कर्तव्य है।
प्राकृति सेे छेड़छाड़ः- मानव विकास वे युग मे सिर्फ अपना हित देखता है अपने हित के लिय वह बन जगह नदि नाले पहाड़ सबसे छेड़ छाड़ प्रारम्भ कर देता है योजनाए इस प्रकार संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए
पेड़ो और पक्षियांे मे विलुप्त होती जाती एंव प्रजातियाः- हम प्रकृतिक वातावरण ऐसा महसूस करते है कि वृक्षो एंव पक्षियो कि जातिया लुप्त हो रहे है क्योकि उसको सही वातावरण नही मिल पा रहा है प्राचीन समय मे गांवंो मे विशालकाय वृृक्ष दिखाई देते थे समय और वक्त के साथ वे हवस्त हो गये और उनमे रहने वालो पक्षी उनकी प्रजातिया कम दिखाई देती है कठखोड,़ तोते, गिलहरी, नाग आदि वन्य प्राणी इन वृक्षो में दिखाई देते थे।
अथाह जल सग्रह-वृहत जल सग्रह करना बुद्धीमता का परिचालक नही है प्राकृतिक सन्तुलन है भुुकम्प का सदा खतरा बना रहता है आपदा कभी भी और किसी समय हो सकती है यदि बादल फटने जैसी घटनाएं इन स्थानो पर होते है तो आपदा को कोई नही रोक सकता।
तालाबो का विलुप्त होनाः- पहले के समय गावं मे तालाब दिखाई देते थे, पशु       दिखाई देते थे, चाराहगाह दिखाई देते थे, किन्तु भौतिकवाद सस्कृति में यह सब लुप्त होता चला जा रहा है। इससे वातावरण और पर्यावरण को करारा झटका लगता है।
भू-जल स्तर का गिरनाः- जब भी हम जल के विषय मे बात करते है तो सदा यह सुनने मे मिलता है कि जल स्तर निरन्तर गिर रहा है इसके लिएं हमारा अत्याधिक वृक्ष कटना तथा वर्षो का कम होना जल स्तर का गिरना पर्योवरण को बहुत अधिक प्रभावित करता है
बादलो का फटना- अनेक बार हम समाचारपत्रों मे पढ़ते हैं न्यूज चैनलों में सुनते है कि बादल फटने की घटनाएं उनके स्थानों में हो रही है इससे यह पता चलता है कि प्राकृति असन्तुलन बढ़ रहा है। बादल फटने की घटनाओं से पर्यावरण प्रभावित हो रहा है
बाढ़ आंधी तूफान का आनाः- बाढ़ आधी और तूफान का आना प्राकृति असन्तुलन का कारण माना जाता है भूकम्प का आना यह भी प्राकतिक असन्तुलन का कारण माना जाता है। बड़े-बड़े बांधो का बनना, अतिरिक जलभार, बहु मंजिले इमरतो का बनना, धरती पर अतिरिक भार का बढ़न,ा भूकम्प को निमंत्रण देने जैसा होता है जो पर्यावरण के लिए घातक सिद्व हो सकता है।
महत्वपूर्ण बातः- लोग कहते है बूंद-बूंद से समुन्द्र बन जाता है इसलिए पर्यावरण को सुधारने के लिए हम भी स्वयं सुधारने की कोशिश करें। पोलिथिन का प्रयोग न करे, अनावश्यक पानी के नलो को खुला न छोड़े, वाहनो से धुवा न छोड़े, अनावश्यक टीन, लोहा, कांच उपयोगी स्थानो, सड़को के किनारे न फेके, कुड़ा सुनिश्चित स्थान पर ही डाले। पोलिथीन डिस्पोजल को नियत स्थान पर डाले, वनो में आग का लगना इससे पर्यावरण खराब होता है।
वनो की रेंज
उधागो पर नियंत्रणः- ऐसे उद्योगों पर कठोरता से कानून लगाये जाना चाहिए जो गन्दगी एवं रासायनिक द्वव्यो को जल मे प्रभावित करते है इससे जल प्राणीयो को घातक हानि उठानी पड़ती है
सीविर नियत्रणः- सीविरेज कब कहा समायोजित करना है यह अवस्थ देखना होगा यह कार्य योजनाबद्ध तरिके से ही किये जाने चाहिए। जल श्रोतो, नदियो को स्वच्छता एवं पवित्रता का ध्यान रखना।
प्रायः देखा जाता लोग जल श्रोतांे, नदियो के किनारे भोजन करते है प्लास्टीक की बोतल डिस्पोजल वही फेंक कर चले जाते है, स्नान करते है गन्दे कपड़े पुराने कपड़े वहीं फेंक कर चले जाते है नदियो में कोई एसी गन्दी वस्तु न डाले जिससे नदीयो की पावित्रता को खतरा बने। यदी स्वच्छ जल चाहिए तो मानव जाति कांे उच्च आचरण पेश करना होगा
नगरीय समस्याः- वर्तमान भौतिकवादी युग में कुड़ेदानो में अतिरिक्त बोेझ का पड़ना और कुड़े निस्तारण का सही समाधान प्रक्रिया न होने से नगरीय पर्यावरण काफी असन्तुलित हो रहा हैै। यदि हम चाहे तो महानगर पालिका केे लिए अच्छे आय श्रोत की भुमिका
जल संरक्षणः- जल संरक्षण जरूरी है इसकेे लिए हमेें भूजल दोहन कानूून पारित करना होगा। भूजल का गलत दोहन पर्यावरण संतुुलन केे लिए ठीक नहीं है। हमें अपने आंगन घरों में जल संरक्षण के लिए ब्लू प्रिंट बनानी चाहिए जिससे भूजल स्तर में व्यापक सुधार हो सके।
कार्यशैली में परिवर्तनः- अच्छे पर्यावरण के लिए हमें अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना जरूरी है कार्योें की शुरूआत प्रातः ठीक समय पर करे। प्र्रदुुषण फैलानेे वाले कार्यों को वरियता न दें। एक सव्य मानव संस्कृति का प्रयोग करें, अनावश्यक विद्युत प्रयोग, ध्वनि प्रदुषण न करें। मानव के अच्छे आचरण सेे अच्छा पर्यावरण संभव है अच्छे पर्यावरण केे लिए व्यायाम, भ्रमण योग, वृक्षारोपण, अच्छी दिनचर्या का होना जरूरी है।