मौत जिंदगी का सबसे बड़ा सच, इससे कई नहीं बच पाया Bhagwan buddha
Bhagwan buddha जिन्दगी हमे चाहे कितनी ही खूबसूरत मिले लेकिन ये कुछ ही दिन की होती है। राजा हो या रंक हर किसी को मरना है। इस दुनिया में जो भी आया उसे मरना है ही, तभी कहा जाता है कि कोई जीव मरने के लिए ही पैदा होता है। कुल मिलाकर हम यह कहना चाहते है कि मौत जिन्दगी का सबसे बड़ा सच है। हम अपने पुराणों में भगवान के अवतार का जिक्र करते है। भगवान का अवतार का मतलब उनका जन्म, लेकिन शरीर त्यागने के लिए मरना उन्हें भी पड़ा था, तो हम तो मनुष्य हैं। आज हम आपको एक ऐसी कहानी के बारे में बताने जा रहे है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी और आप भी सच्चाई को स्वीकार करेंगे क्योंकि भगवान ने भी इसे स्वीकार किया है।
आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसी महिला की जिसने अपने बेटे को बचाने के लिए कितने संघर्ष किए फिर भी वह नाकाम रही। वह स्त्री किसा गौतमी थी। किसा गौतमी का एक इकलौता बेटा था, जो मर गया। अपने दुख में वह अपने मृत बेटे को अपने सभी पड़ोसियों के पास ले गई और उनसे दवा मांगी और लोगों ने कहा यह अपनी सुध-बुध खो चुकी है, लड़का मर गया है। लंबे समय बाद गौतमी को एक व्यक्ति मिला, जिसने उसके पूछने पर उत्तर दिया “मै तुम्हारे बालक के लिए तुम्हें दवा नहीं दे सकता किंतु, मैं एक वैध को जानता हूं, जो ऐसा कर सकता है” इस पर गौतमी ने कहा प्रार्थना करती हूं मुझे बताइए श्रीमान वह कौन है? वह व्यक्ति बोला साल्य मुन्नी बुद्ध के पास जाओ।
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महिला Gautam buddha के पास गई
महिला गौतम बुद्ध (Bhagwan buddha) के पास गई और रोई “भगवान मुझे ऐसी दवा दो जो मेरे बेटे को ठीक कर दे”। Bhagwan buddha ने उत्तर दिया- “एक मुट्ठी सरसों के बीज चाहिए” और तब लड़की ने खुशी के मारे उन्हें लाने का वचन दिया, तो बुद्ध ने आगे कहा सरसों के बीज से घर से लाए जाने चाहिए ,जहां किसी का बच्चा, पति माता-पिता या मित्र नहीं मरा हो। बेचारी गौतमी एक घर से दूसरे घर गई और लोगों ने उस पर दया दिखाई और कहा यह सरसों के बीज ले लो, किंतु जब उसने पूछा कि तुम क्या तुम्हारे परिवार में कोई बेटा या बेटी पिता या माता कोई भी मरा था? उसको जवाब देते हैं – जिंदा कम है किंतु मृतक कई है, हमें हमारे गहरे दुख की याद मत दिलाओ।
वहां ऐसा कोई घर नहीं था, जहां कोई प्रिय व्यक्ति ना मरा हो। किसा गौतमी थक गई और निराश हो गई और रास्ते के किनारे पर बैठकर शहर की बस्तियों को देखने लगी जो टिमटिमाती थी और फिर बुझ जाती थी। अंत में रात के अंधकार कितने चारों और अपना साम्राज्य फैला दिया और तब उसने मनुष्य की नियति किस्मत के बारे में विचार किया कि उसका जीवन बिजली से मिलाता है और फिर वह बुझ जाता है और फिर उसने अपने मन में सोचा मैं अपने दुखों में कितनी स्वार्थी हो गई हूं मृत्यु सबके लिए समान है, फिर भी इस संसार में एक ऐसा है जो उसे सभी स्वार्थ का त्याग करके अमरत्व की ओर ले जाता है।
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बुद्ध (Bhagwan buddha) ने कहा इस संसार में मनुष्यों का जीवन परेशानियों से हुआ है, जो क्षणिक और पीड़ा से परिपूर्ण है, कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो पैदा हुआ वह मरने से बच सकें। वृद्धावस्था प्राप्त करने के पश्चात मृत्यु अवश्यंभावी है, ऐसे ही जीवन की प्रकृति है, जिस प्रकार पके हुए फलों को हमेशा गिरने का भय रहता है, इसी प्रकार मानव में भी जो पैदा हुए हैं उन्हें मृत्यु का भय रहता है। इसी प्रकार कुमार द्वारा बनाए गए सभी मिट्टी के पात्रों का अंत में टूटने का होता है, उसी प्रकार पानी का जीवन है।
बच्चे- बड़े, बेवकूफ-बुद्धिमान सभी मृत्यु को प्राप्त होंगे : Buddha
बच्चे- बड़े, बेवकूफ-बुद्धिमान सभी मृत्यु को प्राप्त होंगे, सभी के लिए मृत्यु अवश्यंभावी है, सभी मृत्यु प्राप्त करते हैं, जीवन से अलग हो जाते हैं। एक पिता अपने पुत्र को नहीं बचा सकता, ना ही रिश्तेदार अपने रिश्तेदारों को बचा सकते। याद करके मृतक के शरीर को बार-बार देखने पर भी वह नही लौट कर आता, परिजन जोर से विलाप करते हैं, तब एक के बाद एक बाते जो उससे जुडी होती है, नज़रों के सामने आती है ऐसा लगता है। जैसे एक बैल को बलि के लिए ले जाया जाता है।
इस प्रकार के संस्थान मृत्यु और हास्य परिपूर्ण है, इसलिए समझदार लोग कभी शोक नहीं मनाते, क्योंकि वह संसार का विधान जानते हैं, ना तो रोने और ना ही दुख मनाने से कोई व्यक्ति मन की शांति प्राप्त कर सकता है , अपितु उसका दर्द और अधिक बढ़ेगा और उसका शरीर भी दुख भोगेगा। मैं अपने आप को बीमार और कमजोर कर लेगा इसके बावजूद और दुख के चिन्ह को तिरोहित करना पड़ेगा। वह जिसने इनसे पीड़ा छुड़ा लिया और जिसने समाधान ढूंढ लिया वह मन की शांति प्राप्त कर लेगा। वह जिसने सारे दुखों पर विजय पाली वह तकलीफो से मुक्त होकर सुखी हो जाएगा।