प्रसिद्धि का हथियार भर बनी महिलाएं about women in hindi

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महिलाओं की स्थिति (Situation of women) आज भी बहुत गंभीर

हिना आज़मी

हमारे देश में अक्सर महिलाओं की स्थिति के बारे में बात की जाती है । हर कोई महिला सशक्तिकरण के मुद्दे उठाने का काम तो करता है इस में पहल करने के थोड़े  प्रयास भी होते हैं लेकिन जमीनी स्तर पर देखा जाए तो महिलाओं की स्थिति आज भी बहुत गंभीर हैं । यह मुद्दे उठाए तो जाते हैं लेकिन पुरुषप्रधान कहलाने वाले हमारे देश में महिलाओं को एक वस्तु मात्र ही माना गया है। महाभारत काल में द्रोपदी को दाव पर  लगाना इस बात का परिमाण है । 14 वर्ष के वनवास में श्रीराम का साथ देने के बावजूद भी सीता  मां को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा था।

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हमेशा से ही स्त्री को अपने अस्तित्व को लेकर समझौता ही करना पड़ता है।  एक बेटी, बहु, पत्नी या मां के रूप में वह कई ख्वाहिशों को अपने मन में ही दफन कर लेती है। देश के संविधान निर्माण में 14 महिलाएं सदस्य थी लेकिन आज महिलाओं को 33% आरक्षण देने के बावजूद भी 2016  की रिपोर्ट के अनुसार महिला सांसद की केवल 12% ही संख्या आंकी गई । कहा जाता है कि महिलाओं को पुरुष के समान अधिकार दिए गए हैं हां इस बात में कोई दोहराय नहीं है उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन आज भी उनकी हालत खस्ता है । प्राचीन काल से ही महिलाएं जूझती आई है – बालविवाह ,सती प्रथा ,दहेज और अन्य कई कारणों से।

पति मरने पर स्त्री को सती होना पड़ता था (Sati Pratha)

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सती प्रथा की बात करें तो यदि पति मरने पर स्त्री को सती होना पड़ता था ,तो फिर पत्नी के मरने पर पति को दूसरी शादी करना क्यों वाजिब था ? उन्हें भी सती होना चाहिए था। बालविवाह में मासूम बच्चियों , जिन्हें दुनियादारी का भी ज्ञान नहीं था , खेलता बचपन जिन्हें नहीं मिल पाता था , उन्हें उनसे दुगनी उम्र के खूंटे से बांध दिया जाता था यानी शादी कर दी जाती थी । बात करें दहेज प्रथा की तो गरीब बहू को दहेज के लिए जलाने वाली उसकी सास और नंद ही होती हैं ऐसे में किसे दोषी माना जाए, जब महिला ही महिला का दर्द नहीं समझती। कन्याभ्रूणहत्या,  यह आज भी मानवता को आघात पहुंचाने वाला कारण है। बेटे की चाह रखने वालों जरूरी नहीं है कि बेटा आपके बुढ़ापे में साथ दें, बेटी पढ़ी-लिखी होने पर आप का सहारा बन सकती हैं।

देश में बलात्कार की त्रासदी लड़कियों को झेलनी पड़ती है

बलात्कार : यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है अपने देश की की। एक तरफ जहां स्त्रियों की पूजा की जाती है, उन्हें उन्हें देवी माना जाता है , वहीं दूसरी और उन बेटियों के साथ दुष्कर्म। कोई दिन बिना ऐसी घटना के नहीं जाता।  हर 3 मिनट में हमारे देश में बलात्कार की त्रासदी लड़कियों को झेलनी पड़ती है। कारण बनते हैं लड़की के कपड़े। मैं उन लोगों से पूछना चाहती हूं कि उन लोगों के साथ दुष्कर्म क्यों होता है जिन्हें छोटे कपड़े तो दूर की बात है देर रात बाहर जाना तो छोड़िए दिन में भी घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती तो फिर क्यों उनके रिश्तेदार ही उनके साथ ऐसा करते हैं ? उस 8 महीने की मासूम बच्ची को ऐसी चोट क्यों दी गई? जिसके पड़ोसी ने ऐसा किया, वह बच्ची तो देर रात बाहर नहीं गई और ना ही उसके कपड़ो को इसका कारण बताया जा सकता है।

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वर्तमान में भी इतने सुधारों की बात की जाती है फिर भी सूरत-ऐ-हालात अभी भी ठीक नहीं है। आलम यह है कि महिलाओं का उपयोग प्रसिद्धि के हथियार के रूप में किया जा रहा है।  चाहे तीन तलाक हो या फिल्म पद्मावत या हाल ही में वायरल हुई प्रिय प्रकाश की वीडियो । फिल्म “पद्मावत” की अगर बात करें तो तब भी पुरुष ने महिलाओं को ही आग में झोंकने की तैयारी की थी। क्या जौहर  सिर्फ महिलाएं ही कर सकती थी पुरुष नहीं ? और वह महिलाएं तैयार भी हो गई। क्या महिलाओं की नियति में ही जलना लिखा है ?कभी अग्निपरीक्षा ,कभी सतीप्रथा तो कभी जौहर के नाम पर।

मानसिकता बदले और वह इंसानियत मारकर मासूमों की जिंदगी तबाह ना करें

विज्ञापन ,सोशल मीडिया और फिल्मों में महिलाओं का चित्रांकन किस तरीके से और कैसे पेश किया जा रहा है यह तो हम सब देख ही रहे हैं । क्या पैसा और प्रसिद्धि के लिए महिलाओं का इस रुप में चित्रांकन,  महिला सशक्तिकरण की अवधारणा को संभव कर पायेगा?  क्या दुष्कर्म के डर से कोई बाप अपनी बेटी को इस दुनिया में लाना चाहेगा ? आखिर कब तक लाखों दामिनिया ऐसे ही मरते रहेंगी ? क्यों बेटियों को ही शुरू से ही उसकी मर्यादा समझाई जाती है ? क्यों बेटों को ऐसी परवरिश नहीं दी जाती जिससे उनकी ऐसी दुष्ट मानसिकता बदले और वह इंसानियत मारकर मासूमों की जिंदगी तबाह ना करें ?   ऐसे प्रश्न हमारे समाज के सामने आए दिन खडे होते हैं पर इनके जवाब किसी के पास नहीं। महिला सशक्तिकरण बेटियों को पढ़ाना और आगे बढ़ाना मात्र नहीं, बल्कि  बेटियों को बचाना भी है।

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