सैनिक परिवारों के वोटों को लेकर भाजपा और कांग्रेस में घमासान

Votes of military families
Votes of military families

देहरादून। Votes of military families  मेजर जनरल के बेटे के पार्टी बदलने के बाद से भाजपा और कांग्रेस के बीच जंग जैसा माहौल है। भाजपा और कांग्रेस के बीच सैनिक परिवारों के वोटों को लेकर घमासान छिड़ गया है। दोनों पार्टियों में सैनिक परिवारों का हितैषी बनने की होड़ लगी है।

उत्तराखंड सैनिक बाहुल्य प्रदेश है। भाजपा और कांग्रेस बखूबी जानते हैं कि उत्तराखंड में जीत का रास्ता सैनिकों के परिवार तय करते हैं। ऐसे में यहां के बड़े वोट बैंक को लुभाने के लिए दोनों ही पार्टियां जुटी हैं। प्रदेश के भाजपा के बड़े सिपहसलार माने जाने वाले गढ़वाल सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूरी के बेटे मनीष को पार्टी में शामिल कराकर कांग्रेस ने बड़ा पंच मारा है।

16 मार्च को जिस मंच पर जनरल खंडूरी के बेटे कांग्रेस ज्वाइन कर रहे थे, उसी मंच पर सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी टीपीएस रावत को भी बैठाया गया था। रैली के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तीन शहीद सैनिकों के घर भी गए। ऐसा करके राहुल ने सैनिक परिवारों का विश्वास जीतने की कोशिश की है।

भाजपा ने जनरल खंडूरी को आगे किया

राहुल के इस राजनीतिक हमले की काट के लिए भाजपा ने जनरल खंडूरी को आगे किया। इसके बाद भाजपा ने अपने फेसबुक पेज पर पूर्व सैनिक वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष शमशेर सिंह बिष्ट के हवाले से कहा कि उन्होंने मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा को समर्थन दिया है।

पुलवामा हमले के बाद भारत की ओर से की गई एयर स्ट्राइक को लेकर भाजपा के पक्ष में जो माहौल बना था, पार्टी उसे बरकरार रखना चाहती है जबकि कांग्रेस भाजपा को उसका राजनीतिक लाभ नहीं लेने देना चाहती। उत्तराखंड में सवा लाख से ज्यादा पूर्व सैनिक हैं।

करीब 43 हजार के आसपास वीर नारियां हैं। इनके अलावा सेना में काम कर रहे जवानों के परिवार हैं। हर परिवार में चार वोट भी माने जाएं, तो सैनिक परिवारों का बड़ा वोट बैंक है। सैनिक परिवारों के वोट उत्तराखंड के किसी भी चुनाव में निर्णायक माने जाते हैं। पौड़ी गढ़वाल सीट पर तो सैनिक परिवारों के वोटों की संख्या सबसे ज्यादा है।

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