दून विश्वविद्यालय के खिलाफ हाईकोर्ट जाएगा यूकेडी

UKD will go to High Court against Doon University
पत्रकार वार्ता के दौरान यूकेडी नेता शिव प्रसाद सेमवाल।

UKD will go to High Court against Doon University

यूकेडी ने लंबे समय से दून विवि में चली आ रही गड़बड़ियों को लेकर आक्रामक रुख अपनाया
राजनितिक हस्तक्षेप के कारण दून विवि का बेड़ा गरक हो गया

देहरादून। UKD will go to High Court against Doon University उत्तराखंड क्रांति दल ने लंबे समय से दून विश्वविद्यालय में चली आ रही गड़बड़ियों को लेकर अब आक्रामक रुख अपना लिया है। यूकेडी नेता सेमवाल ने कहा कि गड़बड़ियों की शिकायत को लेकर पहले मुख्य सचिव और राज्यपाल को अवगत कराया जाएगा तथा 15 दिन के अंदर कोई कार्यवाही शुरू न होने पर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।

यूकेडी महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष सुलोचना ईष्टवाल ने कहा कि दून विश्वविद्यालय एचएनबी विश्वविद्यालय की कार्बन कॉपी बनकर रह गया है।

यहां पर कुलपति से लेकर कुलसचिव और प्रोफेसर तकयहां पर कुलपति से लेकर कुलसचिव और प्रोफेसर तक एचएनबी विश्वविद्यालय श्रीनगर से तैनात किए जा रहे हैं और इनकी तैनाती के पीछे योग्यता के बजाय मित्रता, जान पहचान तथा राजनीतिक पृष्ठभूमि को प्राथमिकता दी जा रही है।

यूकेडी नेता सेमवाल ने आरोप लगाया कि राजनीति के चलते विश्वविद्यालय को मिलने वाली रूसा की ग्रांट पिछली बार भी ठीक से खर्च नहीं हो पाई और ₹20करोड़ की  ग्रांट इस बार लैप्स हो गई है।

विश्व विद्यालय की रैंकिंग लगातार पिछड़ती जा रही : Shiv Prasad Semwal

सेमवाल ने कहा कि जिन प्रोफेसरों के अपने शोध यूजीसी केयर में प्रकाशित नहीं हो पा रहे हैं वह भला छात्रों को क्या पीएचडी करवाएंगे। यही कारण है कि नैक में विश्व विद्यालय की रैंकिंग लगातार पिछड़ती जा रही है।

यूकेडी नेता शिवप्रसाद सेमवाल ने अंग्रेजी तथा कंप्यूटर साइंस जैसे विभाग में सहायक प्राध्यापक की नियुक्तियों में भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि इन विभागों में तैनात प्राध्यापक भी न्यूनतम अहर्ता पूरी नहीं करते लेकिन  मित्रता के चलते इनको गढ़वाल यूनिवर्सिटी से लाकरयहां पर तैनात कर दिया गया है।

सेमवाल ने कहा कि विश्वविद्यालय में हो रही तमाम नियुक्तियां भ्रष्टाचार की शिकार है। सेमवाल ने कहा कि दून विश्वविद्यालय की स्थापना वर्ष 2005 में उत्तराखंड राज्य में उच्च शिक्षा को राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मापदंडों और गुणवत्ता के मानकों के संपर्क स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी।

इसका उद्देश्य दून विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा एवं शोध का एक उत्कृष्ट केंद्र बनाकर राज्य से उच्च शिक्षा के लिए दूसरे प्रदेशों में इसका उद्देश्य दून विश्वविद्यालय को उच्च शिक्षा एवं शोध का एक उत्कृष्ट केंद्र बनाकर राज्य से उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे छात्रों को राज्य में शिक्षा प्राप्त करवाना था लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज 15 वर्ष पूर्ण होने के बाद दून विश्वविद्यालय अपनी पहचान बनाने में सफल नहीं हो पाया है।

अवैध नियुक्ति का प्रकरण भी माननीय उच्च न्यायालय में लंबित है : Shiv Prasad Semwal

इसके पीछे जो मुख्य कारण है वह यहां पर विभिन्न पदों और स्तर पर हो रही भर्तियों में प्रचलित भ्रष्टाचार है। विश्वविद्यालय के कुलपति न्यूनतम शैक्षिक योग्यता ना रखने के बावजूद नियुक्ति पाते रहे हैं और छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते रहे हैं। इसी तरह से इस विश्वविद्यालय के कुलसचिव की अवैध नियुक्ति का प्रकरण भी माननीय उच्च न्यायालय में लंबित है।

अध्यापकों की नियुक्ति एवं प्रमोशन के प्रकरण भी विश्वविद्यालय की कार्य समिति के समक्ष विचाराधीन है लेकिन पहले की गलतियों से सबक न लेते हुए वर्तमान कुलपति ने भी वर्ष 2021 में सहायक प्राध्यापकों के पद पर जिन व्यक्तियों की नियुक्ति की है वह भी पूर्ण रूप से अवैध है क्योंकि इन भर्तियों में भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा बताई गई न्यूनतम मानकों की जानबूझकर अनदेखी की गई है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग 2018 नियमावली में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि विश्वविद्यालय में सह प्राध्यापक के पद पर नियुक्त होने के लिए न्यूनतम अहर्ता तीन मुख्य मुखिया मानक हैं। पहला उनको उस विषय में पीएचडी की उपाधि होनी चाहिए।

दूसरा विद्यालय अथवा विश्व विद्यालय में पठन-पाठन का 8 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। इसके अलावा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा अनुशंसित यूजीसी केयर मे बताए गए शोध पत्रों में कम से कम 7 शोध पत्र प्रकाशित होने चाहिए लेकिन विश्वविद्यालय में कई ऐसे सह प्राध्यापक शामिल हैं जो यूजीसी की न्यूनतम अर्हता को भी पूरी नहीं करते।

दूसरी जगह छपवाए गए शोध मान्य नहीं होंगे

उन्होंने अपने शोध पत्रों को भी लोकल पत्र-पत्रिकाओं में छपवाए हुए हैं जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग कई बार नोटिस जारी कर चुका है कि यूजीसी केयर में बताए गए जर्नल्स के अलावा कहीं भी दूसरी जगह छपवाए गए शोध मान्य नहीं होंगे।

यूजीसी ने 16 सितंबर 2019 को जारी अपने पब्लिक नोटिस में साफ कह रखा है कि यदि यूजीसी केयर के अलावा कहीं दूसरी जगह प्रकाशित शोध जर्नल के आधार पर कोई नियुक्ति प्रमोशन क्रेडिट एलॉटमेंट अथवा रिसर्च डिग्री अवार्ड होती है तो इसके लिए कुलपति, सलेक्शन कमेटी, स्क्रीनिंग कमेटी और रिसर्च सुपरवाइजर जिम्मेदार होंगे।

बहरहाल उत्तराखंड क्रांति दल तापमान बना दिया है कि यदि 15 दिन के भीतर कार्यवाही नहीं होती तो इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा। प्रेस वार्ता में शिव प्रसाद सेमवाल,सुलोचना ईष्टवाल, शक्ति लाल शाह और राजेंद्र गुसाईं आदि शामिल थे।

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