सपा- कांग्रेस गठबंधन की उम्मीद अभी बाकी

त्वरित टिप्पणी/डाॅ.प्रभात ओझा
चार अन्य राज्यों सहित उत्तर प्रदेश में जिस दिन विधानसभा चुनाव की घोषणा होती है, उसी समय कांग्रेस नेता शीला दीक्षित का एक बयान आता है। बयान में वह खुद को प्रदेश में सपा के साथ राजनीतिक गठबंधन की पक्षधर बताती हैं।याद रहे कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सीएम कैंडिडेट हैं।सपा के साथ यदि वही समझौते की बात करें तो यह उनकी ओर से ऐसी दावेदारी छोड़ने का संकेत है। इसके बिना सपा से गठबंधन सम्भव भी नहीं है। वहां सपा में भले संगठन पर कब्जे को लेकर विवाद चल रहा हो, एक बात तो सोलह आने तय है और वह है कि पार्टी और सरकार, दोनों यादव परिवार अपने पास ही रखना चाहता है। माना कि कांग्रेस को सपा के संगठन से कोई मतलब नहीं, पर सरकार से तो है। इसका मतलब यह है कि शीला जैसी वरिष्ठ और अनुभवी नेता को अपनी दावेदारी छोड़ने के लिए मना लिया गया है। कांग्रेस को यह तो पता हो चला है कि उत्तर प्रदेश में उसका सीएम बनने वाला नहीं। फिर बिहार की तरह उत्तर प्रदेश की सरकार में भी कुछ मंत्री ही बन जायं, यह तो किया ही जा सकता है।

शीला दीक्षित को मना लिया गया है, यह कहने का कारण है। पिछले दिनों खबर आई थी कि पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की ओर से सहारा डायरी प्रकरण उठाने से वह नाराज थीं। राहुल गांधी का यह मुद्दा गरम भले न हो पाया हो, लोगों को याद तो है ही। उन्होंने कहा था कि पीएम नरेंद्र मोदी के कथित भ्रष्टाचार के बारे में उनके पास बहुत कुछ है और वह बोलेंगे तो तूफान आ जायेगा। एक योजना के तहत विपक्ष, खासकर कांग्रेस ने संसद का सत्र नहीं चलने दिया। सत्र के बाद राहुल बोले तो उन्होंने खुलासा करने के से अंदाज में बताया कि गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी ने बिरला और सहारा ग्रुप से धन लिया था। यह वहीं मसला है, जो सुप्रीम कोर्ट में गया था और कोर्ट ने इस पर प्रमाण की कमी की ओर इशारा किया था। कोर्ट की टिप्पणी थी कि किसी की डायरी में नाम दर्ज भर हो जाने का मतलब उससे लाभान्वित होना नहीं है। अब इस मसले से शीला दीक्षित क्यों नाराज हैं, यह भी कई जगह आ चुका है। जिस डायरी का उल्लेख राहुल गांधी करते फिर रहे हैं, उसमें दिल्ली की सीएम रहते शीला दीक्षित का भी नाम है।

यानी राहुल मोदी के साथ शीला पर भी सहारा ग्रुप से धन लेने का आरोप लगा रहे हैं। माना गया है कि सहारा डायरी का खत्म सा हो चुका मुद्दा राहुल गांधी की तरफ से उठाये जाने पर मोदी और भाजपा का नुकसान भले न हो पाया हो, शीला और कांग्रेस का तो हो ही गया। राज्य में जब चुनाव की घोषणा हो चुकी है, शीला दीक्षित पर लगे इस आरोप को नहीं उठाया जाय, यह मुमकिन नहीं है। लिहाजा शीला दीक्षित इस चुनाव से दूर रहना चाहती हैं। उम्र और स्वास्थ्य की ओर से पहले ही उन्हें यह इशारा किया जा रहा था। शीला दीक्षित का यह बयान दरअसल, सपा के साथ गठंबधन के लिए कांग्रेस के बढ़ते तेज कदमों के संकेत हैं। पिछले दिनों हालांकि सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कांग्रेस से किसी भी तरह के गठबंधन से इंकार कर दिया था। इसके बावजूद सपा, खासकर अखिलेश यादव से अपनी नजदीकी बढ़ाने वाले राहुल गांधी इस ओर से हमेशा आशावान रहे। आशा का सबसे बड़ा कारण अल्पसंख्यक वोट आधार को भरोसा देने की कोशिश है। सपा के अंदर जो हलचल है, उसके बंटने अथवा एक रहने पर भी अखिलेश के मजबूत निर्णायक बने रहने के पूरे आसार हैं। खास बात यह कि मुलायम के करीबी अमर सिंह भी कुछ हद तक कांग्रेस के भी करीब रहना चाहते हैं। ऐसे में शीला दीक्षित के बयान के बाद गठबंधन एक आकार लेता दिखे तो आश्चर्य नहीं।