होटलों में सर्विस शुल्क का खेल खत्म

रमेश ठाकुर
उपभोक्ता मंत्रालय का होटलों के लिए दिया गया ताजा दिशा-निर्देश आम आदमी के लिए राहत भरी खबर कही जाएगी। होटलों में ग्राहकों से वसूला जाने वाला सर्विस शुल्क देना अब उन पर निर्भर करेगा कि वह दें, या न दें। हालांकि सर्विस शुल्क व टिप देना वैसे गैरकानूनी होता है। बावजूद इसके होटलों में ग्राहकों से जबरन वसूला जाता है। दरअसल केंद्र सरकार अब उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को और धारदार बनाना चाह रही है। होटलों में खाना खाने वाले ग्राहकों से अनाप-सनाप तरीकों यानी सेवा शुल्क के नाम पर वसूले जाने वाले धन पर उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने चाबुक चला दिया है। सर्विस चार्ज के नाम पर अब वेटर, दरबान व होटल वाले आपकी जेब नहीं काट पाएंगे। उनके पर कतरने की शुरुआत सरकार ने कर दी है।

कस्टमर को बेइज्जती से बचने के लिए खाने की मेज के वेटर व गेट पर खड़े दरबान को टिप के नाम पर पैसे देने पड़ते है। मसलन ग्राहकों को इनको पैसे देना एक तौर पर जरूरी होता था। पर अब ऐसा न करें। कस्टमर इस चलन को जरूरी न समझें, उनकी इच्छा हो तो टिप दें, वरना नहीं? इसलिए अगली बार अगर आप जब होटल एवं रेस्तरां में खाने के बिल का भुगतान करें, तो सचेत रहें। क्योंकि होटलों के जरिए जबरिया लिए जाने वाले सेवा शुल्क को उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने पूरी तरह वैकल्पिक करार दिया है। अर्थात यह उपभोक्ता की विवेकाधीन है कि वो इसे चुकाए या ना चुकाए। मंत्रालय के इस फरमान से होटल मालिक तिलमिला गए हैं। अधिकांश होटल मालिकों ने इस फरमान को मानने से मना कर दिया है। मंत्रालय ने उपभोक्ताओं के लिए भले ही ये दिशा-निर्देश जारी कर दिया है कि खाना खाने के बाद होटलों को सर्विस चार्ज देना उनके विवेक पर निर्भर करता है लेकिन इसके लिए उसने होटल और रेस्टोरेंट को बाध्य नहीं किया है। बस उनसे ये कहा गया है कि वो अपने परिसर में इस बात का स्पष्ट उल्लेख करें कि सर्विस चार्ज वैकल्पिक है। केंद्र सरकार के इस फैसले से होटलों के अधिकतर मालिकान सहमत नहीं हैं और उनमें से कई का कहना है कि वो अपने होटल या रेस्टोरेंट परिसर में इस आशय से सम्बंधित एक बोर्ड लगा देंगे। फिर ये उपभोक्ता पर निर्भर होगा कि वो हमारी सेवाएं लेना चाहता है या नहीं।

हम खाना खाने के बाद किसी को सेवा शुल्क दिए बिना नहीं छोड़ सकते हैं। कई होटल और रेस्टोरेंट संगठनों ने उपभोक्ता मंत्रालय के इस फैसले को यह कहकर मानने से इंकार कर दिया है कि यह महज दिशा-निर्देश है कोई कानूनी आदेश नहीं। इससे यह अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है कि वह भले ही इसके दबाव में अपने यहां कोई बोर्ड या फिर बैनर लगा भी दें लेकिन सेवा शुल्क को लेकर अपनी मनमानी जारी रखेंगे। ऐसी स्थिति में अगर आप अपने विवाह की सालगिरह या फिर बच्चे की जन्मदिन पार्टी में घर-परिवार के लोगों तथा दोस्तों के साथ किसी होटल में जाते हैं और सेवा शुल्क को लेकर उनसे किसी तरह विवाद हो जाए तो फिर आपके पूरे जश्न में भंग पड़ सकता है। पार्टी से इतर भी लोग होटल और रेस्टोरेंट में मनोरंजन की दृष्टि से खाना-खाने जाते हैं। ऐसे में सेवा शुल्क को लेकर होटल प्रबंधन से हुआ विवाद अच्छे खासे खाने के बाद आपके मुंह अैर मूड, दोनों का जायका बिगाड़ सकता है। तो, जाहिर है कि कोई भी व्यक्ति इस तरह के विवाद से बचना चाहेगा और बिल का पूरा भुगतान करके अपना पिंड छुड़ाना चाहेगा। ऐसे सार्वजनिक स्थानों पर लोगों के आकर्षण का केंद्र बनने और बेइज्जती होने के डर से हर कोई बचना चाहता है।

देखा जाए तो हमारे इसी रवैये के चलते होटल और रेस्टोरेंट में जबरन सर्विस चार्ज लिए जाने का चलन बढ़ा है। यही नहीं उपभोक्ता संरक्षण कानून में इस तरह की उगाही को अवैध करार दिए जाने के बावजूद कोई भी किसी उपयुक्त फोरम अथवा मंच पर इनकी शिकायत तक दर्ज नहीं कराता है। बहरहाल सर्विस चार्ज के नाम पर की जाने वाली अवैध उगाही के बढ़ते चलन की वजह चाहे जो भी हो, अगर सरकार वाकई इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए गंभीर है तो उसे जबरिया लिए जाने वाले सर्विस चार्ज को पूरी तरह से गैर कानूनी करार देना चाहिए। वैसे भी अगर किसी तरह का कोई शुल्क वैकल्पिक है तो उसे बिल में जोड़े जाने का कोई मतलब ही नहीं बनता है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा होटलों को अपने बिल से इस सेवा शुल्क को हटाने का निर्देश देना चाहिए। इसके बाद भी अगर कोई होटल या रेस्टोरेंट इस तरह की उगाही में लिप्त पाया जाए तो उसपर जुर्माना लगाया जाए। इसके साथ ही उपभोक्ता को इस बात की पूरी छूट दी जानी चाहिए कि वह सेवा शुल्क की अदायगी करे या ना करे। और अगर कर रहा है तो कितना कर रहा है ये भी पूरी तरह उसके विवेक पर निर्भर होना चाहिए।

कुछ इसी तरह की प्रक्रिया अमेरिका जैसे देशों में अपनाई जाती है। अमूमन वहां होटल की सेवा संतुष्ट होने के बाद उपभोक्ता 10 प्रतिशत सर्विस चार्ज के रूप में अदा करते हैं। इसके लिए वो बाकायदा अपने काॅर्ड से आॅनलाइन भुगतान करते हुए पकवान और सेवा शुल्क का अलग-अलग पेमेंट करते हैं। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी की लेस-कैश अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा। सर्विस चार्ज के बदले उन्हें उच्चकोटि की सेवा दी जाती है जिसमें बचे-खुचे पकवानों को साथ ले जाने के लिए टेकअवे बाॅक्स देने तक की सुविधा शामिल है। हमारे यहां भी बहुत से होटलों में इस तरह की सुविधा है। इसे और अधिक प्रचलित करने की आवश्यकता है ताकि अन्न की बर्बादी को रोका जा सके। इससे हमारे देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले और भुखमरी के शिकार बहुत से लोगों का पेट भर सकता है।