धोखा शायरी : उम्मीदों के सहारे जी कर खुद को धोखा देता हूं

dhokha shayari

उम्मीदों के सहारे जी कर खुद को धोखा देता हूं
तेरी याद में जलकर रूह को अजीयात देता हूं,
परवाह नहीं करता कोई क्या समझता है मुझे
कोई मांगे नफरत भी तो मोहब्बत लाजवाल देता हूं।

हर बार इशारे देती है वो जुदाई की
हर बार मैं मुश्कुरा के टाल देता हूं,
आ चल थाम ले अब तू मेरा हाथ
तेरे नाम को मैं अपना नाम देता हूं।

थोड़ा नहीं एक मुद्दत से अब किसी का दिल भी
कोई मांगे साथ तो दिल में जगह देता हूं,
दौर-ए-वसल में यह नौबत आगई हैं हसनैन
अपने हाथों को तेरे हाथों से मिला देता हूं।।
मिर्जा हसनैन अजम


हमें खबर थी दुश्मन के सारे ठीकानों की
शरिक-ए-जुर्म न होता तो मुखबिरी करते


अब भी बाकी हैं तेरे दिल में थोड़ सा खलूस
इससे पहले भी हमें यही धोखा हुआ

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