आखिर कब तक पक्षियों की तरह प्रवास करती रहेगी ग्रामीण जनता

Rural people
Rural people will continue to migrate

जिस तरह एक पंछी मौसम बदलने पर अपना अनुकूल वातावरण ढूंढता हुआ दूसरी जगह पहुंच जाता है ठीक उसी तरह हमारे पहाड़ की ग्रामीण जनता ( Rural people ) सुविधाओं के अभाव में अपने अनुकूल वातावरण की तलाश में निकल पड़ती है शहर की ओर। वहीं बस जाती है और हमारे गांव अकेले रह जाते हैं। प्रदेश में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर लगातार पलायन हो रहा है।

इससे गांव के गांव खाली होते नजर आ रहे हैं। पलायन की असली वजह पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क आदि का ना मिल पाना है। जहां मैदानी क्षेत्रों में फ्लाईओवर और मेट्रो चलाने की बात की जा रही है और उस पर काम हो रहा है, वही पहाड़ों में आज भी लोग सड़क और पानी के लिए तरस रहे हैं ,बिजली के लिए तरस रहे हैं।

पलायन रोकने के दावे सिर्फ हवाई

सरकार की बात करें तो पलायन रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की बात तो हमेशा से ही होती आई है, लेकिन जमीनी स्तर पर इस पर कोई खास कार्य नहीं किया जाता। साफ है पलायन रोकने के दावे सिर्फ हवाई हैं या ख्याली पुलाव है। पलायन रोकने के लिए हकीकत में कदम उठते हैं तो जनता सड़कों पर उतरकर पानी, सड़क के लिए आंदोलन करती नहीं नजर आती है, अपने हक के लिए लड़की नहीं नजर आती।




सरकार अब ऐसे फूहड़ नियम बना रही हैं जिनमें अब शराब परचून की दुकान पर ही मिल जाएगी। क्या बात है मतलब जहां पहल करने की जरूरत है वहां सिर्फ वादों से ही काम चलाया जाता है और आम जनता को सिर्फ अपने वोटबैंक के लिए प्रयोग किया जा रहा है। उनके जीवन से जुड़ी सुविधाओं पर गौर नहीं किया जाता, उनकी शिक्षा पर गौर नहीं किया जाता,उनके स्वास्थ्य पर गौर नहीं किया जाता, केवल गौर किया जाता है तो खुद को प्रकाश में लाने का।

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