दर्दे-दिल की दास्तां, लिखना नहीं आया!

Painful heart tales

Painful heart tales

शादाब अली की कलम से

थे बहुत कमजो़र पर,झुकना नहीं आया ।
चलते रहे निरन्तर,मंजि़ल की तलाश में,
थक गए हैं पांव पर ,रुकना नहीं आया ||

देहरादून | Painful heart tales हर एक चेहरे के भीतर सशंकित चेहरा‌ है! हरेक मन में कोई डर दिखाई देता है! जिनके दम पर जी रही‌‌ कायनात सारी उनका जीवन ही दर बदर दिखाई देता‌है! सबसे निरीह प्राणी किसान हो गया। सियासी भाषा में तो अन्नदाता भगवान है? लेकिन आज के परिवेश में उनका दुश्मन सम्विधान हो गया।

न कोई सुनवाई न कोई रहनुमाई, वजूद बचाने की लड़ रहे है लड़ाई। दर्द में हर पल सिसक कर जीने वाला किसान तमाम झंझावातों को झेलकर भी नहीं बेचा अपना स्वाभिमान, सब कुछ रहकर भी भिखारी सी जिन्दगी जीना मजबूरी हो गयी है। तबाही‌ की आवाजाही मे‌ बर्बादी मुस्कुराती है, कभी भयानक बारिश तो कभी भयानक सूखा‌ का तमाशा दिखाती है। कर्ज़ के मर्ज़ से ग्रसित‌ रहने के बाद भी किसान अपना फ़र्ज़ कभी नहीं भूलता।

जाड़ा, गर्मी, बरसात को भी आत्मसात कर खेतों में कड़ी मेहनत कर अन्न पैदा करता है। दिन भर दौड़ता है, रात भर जागता है। लेकिन दुर्भाग्य देखिये जब फ़सल को बेचने का समय आता है तब किसान परेशान हो जाता है। उचित कीमत के अभाव में बिचौलिये लाभ उठा लेते हैं। सरकारी ब्यवस्था धराशाही हो जाती है। कहावत है कमाते हैं धोती वाले खाते हैं टोपी वाले, ये दस्तूर सदियों से चला आ रहा है।

जागरुक किसान अपने स्वाभिमान की लडा़ई‌ के लिये सड़क पर उतरा हुआ है। अपनी गाढी कमाई की रहनुमाई खुद की भलाई के लिये खुद आगे आया‌ है। लेकिन मग़रुर सरकार लगातार कर रही है अत्याचार। कृषि कानून का खुलासा जरूरी है।

जब तक कृषि कानून के हर पैरा का खुलासा किसान कि सभाओं में नहीं होगा सच सबके सामने नहीं आयेगा ब्यापारीयो के साथ किसान हित के सौदा का मसौदा खुलकर सामने नहीं आयेगा आन्दोलन चलता ही रहेगा।? इन्दिरा गांधी की एक ग़लती ने सत्ता से बेदख़ल होने पर मजबूर कर दिया।

ठीक वही हालात बीजेपी सरकार किसानों से तकरार पैदा कर कर लिया है। केवल हर मुका़म पर दर्द दिया है।जब तक दुखी किसान रहेगा धरती पर तूफा़न रहेगा। बिल बिलाते किसानों का कोई हमदर्द नहीं है! सियासी खेल सब अपनी गोटी बैठा रहे है।

सभी किसान आन्दोलन का लाभ उठाना चाह‌ रहे हैं। चुनाव का समय करीब आ रहा है यह आन्दोलन क्या नया गुल खिलायेगा कहना मुश्किल है? लेकिन बदलाव की विषाक्त हवा मे गर्मी लगातार बढ़ती जा रही है!यह हवा कहीं सुनामी न बन जाये यह डर सबको सता रहा है। देखिये आने वाले कल मे भारत का भविष्य ‌कैसा दृष्य पैदा करता है! समय का इंतजा़र करे! फै़सला खुद को ही करना है।

जय जवान जय किसान जय हिंद

जरा इसे भी पढ़े

“सवाड़” गांव के इतिहास में जुड़ा “नड्डा” का नाम
देवभूमि के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को बचाए रखने लिए उठाने होंगे कुछ जरुरी कदम
उत्तराखंड में दो दशकों में पलायन तेजी से हुआ