एक सौ पांच पर मुलायम की कठोरता

Mulyam

डाॅ. दिलीप अग्निहोत्री
अब इसमें कोई संशय नहीं रहा कि कई महीनों तक चली सपा कि पारिवारिक कलह प्रायोजित थी। इसकी व्यूह रचना मुखिया मुलायम सिंह यादव ने की थी। जो लोग अखिलेश यादव को संपूर्ण उत्तराधिकार सौंपने के विरोधी थे, वह चक्रव्यूह में फंस गये। समानान्तर सत्ता, संगठन व उत्तराधिकार का सपना लिए वह बहुत आगे निकल गए। फिर ऐसी जगह पहुॅच गये, जहां से पीछे लौटना संभव ही नही था। आॅख खुली तो सपना चकनाचूर हो चुका था। हाथ मलने के अलावा इनके सामने कोई विकल्प ही नही बचा था। अखिलेश यादव राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे। अपवाद को छोड़कर पूरी पार्टी उनकी हो चुकी थी। मजेदार बात यह है कि जिन्होने मुलायम की बातों का विश्वास किया ,वह शिकायत करने की स्थिति में नहीं थे। ऊपर से यही दिख रहा था कि अखिलेश यादव पूरी पार्टी ले गए।
मुलायम करते भी क्या। लेकिन सच्चाई यह थी कि मुलायम यही चाहते थे। कई दिन की खामोशी के बाद मुलायम सिंह यादव ने एक तीर और छोडा है।

इसके द्वारा उन्होने दूसरा चक्रव्यूह तैयार कर दिया है। इस बार इसमें कांग्रेस को घेरने की तैयारी है। एक सौ पांच सीटे लेकर कांगेस पहले द्वार में प्रवेश तो कर गयी ,लेकिन मुलायम के पैंतरें ने उनकी मुश्किल बढ़ा दी है। उन्होने इन एक सौ पांच सीटों पर बागी प्रत्याशी उतारने व कांग्रेस के विरोध में प्रचार करने का अपने समर्थको से आ“वान किया है। यह बताने की जरूरत नही कि मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक जीवन का अधिकांश हिसा गैर कांग्रेसवाद में बीता है। आज सपा के प्रवक्ता उनकी इस भावना को समझने के लिए तैयार नही है। उनका कहना है कि पहले गैर कांग्रेसवाद आवश्यक था। आज साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकना है।

उधर, मुलायम सिंह यादव की सभी समस्याओं के लिए कांग्रेस को दोषी मानते हैं। वैसे माना यह जा रहा है कि यह भी मुलायम की सोची- समझी चाल है। जिस प्रकार उन्होने राष्ट्रीय स्तर तक पार्टी तक अखिलेश तक पहुचाने का इंतजाम किया। उसी प्रकार कांग्रेस को किनारे लगाने का प्रयास किया जा रहा है। चर्चा है कि मुलायम इस मामले में भी दूरगामी रणनीति पर अमल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की दशा पर किसी को गलतपफहमी नहीं है। अखिलेश यादव ने जब कांग्रेस से समझौता किया तो लोगों को आश्चर्य हुआ। उत्तर प्रदेश की स्थिति बिहार जैसी नही है। वहां राजद व जदायू के मिलने से नया समीकरण बना था। इसमें मुस्लिम वोट भी मिल गया। इसी के सहारे कांग्रेस ने भी अपना अस्तित्व बचा लिया । उत्तर प्रदेश में इस बार भाजपा भी मजबूती से उभरी है। इस बात से उसके प्रतिद्वन्दी भी इन्कार नही कर सकते। ये सभी भाजपा पर ही निशाना लगा रहे हैं। भाजपा के उभरने का यह प्रमाण है। इसके पहले करीब डेढ़ दशक तक ऐसी स्थिति नही थी। तब सपा व बसपा एक दूसरे की कमियां गिना कर सत्ता में आने का प्रयास करती थी।

इसी में उन्हें लाभ मिलता था। इस बार दोनों की यह रणनीति कारगर नहीं रही। इसलिए भाजपा पर हमला हो रहा है। दूसरी बात यह है कि बिहार में बसपा जैसी किसी पार्टी का अस्तित्व नही था। इस का पफायदा भी महागठबन्धन को मिला। ऐसे में अखिलेश का कांग्रेस से समझौता चैंकाने वाला था, लेकिन यह कदम वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित था। सपा को लगा कि कांग्रेस कुछ मुस्लिम वोट काट सकती है। इस विभाजन को रोकने की मंशा से समझौता किया। टिकट का बंटवारा भी हो गया। राहुल और अखिलेश ने साझा रोड शो भी कर लिया। बताया जाता है कि इसके आगे कि पटकथा मुलायम ने लिखी। उनकी नजर कांग्रेस के हिस्से वाली एक सौ पांच सीटों पर है। यह गौर करने वाली बात है कि मुलायम ऊपर से नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं कि अखिलेश ने उनके द्वारा भेजी लिस्ट में भी कांट- छाट कर दी। लेकिन मुलायम सपा के हिस्से वाली सीटों पर कुछ नही बोलते। कांग्रेस के हिस्से वाली सीटों पर प्रत्याशी उतारने व कांग्रेस कों हटाने की अपील अवश्य करते हैं। बताया जा रहा है कि यह भी प्रायोजित है। मुलायम चाहते हैं कि एक सौ पाॅच में भी सपा के विद्रोही जीत जाएं। कुछ भी हो काग्रेस के लिए यह चिंता का विषय है।