क्या आप जानते हैं कि परशुराम ने क्यों काटा था अपनी माँ और भाईयों का सर?

Prasuram

परशुराम भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। इनके पिता का नाम महार्षि जमदग्नि और माता का नाम रेणुका था ये त्रेता युग के मुनि थे। ये अपने माता-पिता के सबसे छोटे पुत्र थे। मान्यता है कि परशुराम आज भी महेंद्रगिरी नामक पर्वत पर अपने सुक्ष्म शरीर से तपस्या में लीन हैं। परशुराम के चार बड़े भाई थे जिनके नाम रूकमवान, सुखेंड़, वशु और विश्वानेश थे। लेकिन परशुराम गुणवान होने के कारण चारो भाईयों से सबसे आगे थे।
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अपने पिता के सबसे अज्ञाकारी बालक थे। एक दिन उनके पिता जमदग्नि ने परशुराम की माता रेणुका से कहा कि वह पास के वन से समिदा ले आये लेकिन वह समय पर नहीं आईं और यज्ञ का समय निकल गया। इस जब परशुराम के पिता जमदग्नि ने अपने धर्मपत्निी से देर से आने का कारण पूछा तो इस पर रेणुका ने झूठ बोल दिया कि समदा नहीं मिल पाने की वजह से वह काफी आगे निकल गई थी। जबकि रेणुका समिदा एकत्र करने के बाद वन में एक नदी के किनारे गंधर्वों को उनकी पत्नियों के साथ तैयराकी करते हुए समय बीत गया। उन्हे समय का पता नहीं चला।  परशुराम के पिता जमदग्नि अत्यंत तेजस्वी थे। महर्षि जमदग्नि ने अपने ध्यान से सबकुछ जान लिया।
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तब उन्हे रेणुका के झूठ बोलने पर क्रोध आया उन्होंने अपने पुत्रो का बुलाया और एक-एक कर सबको कहा कि तुम्हारी माता ने झूठ बोला है अतः अपनी माता का सर काट डालो, बाकि पुत्रो में से किसी ने भी आज्ञा नहीं मानी लेकिन जब परशुराम से कहा कि वह अपने माता के साथ तीन भाईयों का सर भी काट डालो, तो उन्होंने बिना विलम्ब किये माता के साथ ही अपने सभी भाईयों का सर काट दिया।  महर्षि जमदग्नि परशुराम से प्रसन्न हो गये और कहा कि पुत्र तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है। मैं इस बात पर बहुत प्रसन्न हूं, तुम मुझसे वरदान मांगो, तो इस पर परशुराम ने कहा कि मेरे माँ और भाई फिर से जीवित हो जायें, लेकिन उनको यह बात याद न रहे कि उनका सर मैने काटा था।
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महर्षि ने ठीक वैसा ही किया। उनकी माता एवं भाई फिर से जीवित कर दिया और उन्हे यह बात भी याद न रही कि परशुराम ने ही उनका सर काटा था। इसके बाद परशुराम अपनी माता-पिता से आज्ञा लेकर तीर्थ की और निकल पड़े। राजस्थान के चित्रण किले में मातृ कुंडिया वह जल है जहां परशुराम अपने माता की हत्या से मुक्त हुए थे। यहां पर उन्होंने शिवजी की तपस्या की थी। फिर शिवजी के कहे अनुसार मातृ कुंडिया में स्नान करने से उनका पाप धुल गया। इस जगह को मेवाड़ का ब्रिजद्वार भी काहा जाता है।
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