माँ कूष्माण्डा देवी ने की थी ब्रह्मांड की रचना

नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘अदाहत’ चक्र में स्थित होता है। अतः इसे अत्यंत पवित्र मन से माँ कूष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा-अर्चना के कार्य में लगना चाहिए। जब सृष्टि की रचना भी नहीं हुई थी, तब कूष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतरी लोक में है। वहां निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल कूष्माण्डा देवी में है। इनके शरीर की चमक भी सूर्य के समान ही प्रकाशमान हैं। इनके तेज से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज इनकी छाया है। माँ कूष्माण्डा देवी की आठ भुजाएं होती हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, कमल-पुष्प, धनुष-बाण, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। 8वें हाथ में सभी सिद्धियों को देने वाली जप माला है। माँ कूष्माण्डा देवी वाहन सिंह है।
माँ कूष्माण्डा देवी की उपासना से भक्तों के समस्त रोग मिट जाते हैं। माँ कूष्माण्डा देवी भक्ति से यश, बल व आयु की वृद्धि होती है। माँ कूष्माण्डा कम सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। यदि मनुष्य सच्चे मन से इनकी उपासना करे व शरणागत बन जाए तो फिर उस भक्त को बहुत असानी से परम पद की प्राप्ति होती है।
विधि-विधान से माँ कूष्माण्डा के भक्ति पर भक्त को उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है। यह दुःख स्वरूप संसार भक्त के लिए बहुत सुखद और असान बन जाता है। माँ कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य के लिए सर्वाधिक सुगम एव श्रेयस्कर मार्ग है।
माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे याद कर नवरात्रि में चतुर्थ दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थातः हे माँ! सर्वत्र, विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता/करती हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
अपनी हल्की हँसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के रूप में पूजा जाता है। संस्कृत भाषा में कूष्माण्डा को कुम्हड़ कहते हैं। बलियों में कुम्हड़े की बलि इन्हें सर्वाधिक प्रिय है। इस कारण से भी माँ कूष्माण्डा कहलाती हैं।
चतुर्थी के दिन जहां तक संभव हो बड़े माथे वाली तेजस्वी विवाहित महिला की पूजा करनी चाहिए। उन्हें भोजन में हलवा-दही खिलाना सबसे बढ़ियां माना जाता है। इसके बाद सूखे मेवे, फल एवं सौभाग्य का सामान भेंट करना चाहिए। जिससे माँ कूष्माण्डा देवी प्रसन्न होती हैं व मन चाहे फलों की प्राप्ति होती है।