नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ ब्रह्मचारिणी के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या एवं चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है। नवरात्रि के दूसरे दिन ऐसी कन्याओं का पूजन होता है जिनका विवाह सुनिश्चित हो गया है लेकिन अभी शादी नहीं हुआ हो। इन्हें अपने घर बुलाकर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
नवरात्रि के दूसरे दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं, जिससे अपने सामने आने वाली किसी हर प्रकार की बाधा का सामना कर सकें। माता दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में त्याग, तप, वैराग्य, संयम, सदाचार की वृद्धि होती है। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे चारो ओर ज्ञान और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन विधि संबंधी चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में स्थिर मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
प्रत्येक साधारण व्यक्ति के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे नवरात्रि के द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूःतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अर्थः हे माँ! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा प्रणाम या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता/करती हूं।