सुधांशु द्विवेदी
देश के पांच महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों एवं नेताओं से उम्मीद की जा रही थी कि वह अपनी दलीय प्रतिबद्धता एवं राजनीतिक हितों को महत्वपूर्ण मानने के बावजूद मन, वचन व कर्म से ऐसे क्रियाकलाप को अंजाम नहीं देंगे जिसका स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मान्य परंपराओं पर प्रतिकूल प्रभाव पडने वाला हो। इसके विपरीत चुनावी दौर में राजनेताओं की भाषा-शैली ऐसी हो गई है जो देश की प्रतिष्ठा घटाने वाली और लोकतंत्र को विकृत करने वाली है। चुनाव आयोग द्वारा चुनाव आचार संहिता के पालन के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी करने के बावजूद राजनीतिक दलों के नेता अपने विरोधियों पर निशाना साधते समय तमाम मापदंडों एवं वर्जनाओं का उल्लंघन कर रहे हैं।
वे आरोप-प्रत्यारोप के दौर में गाली-गलौज तथा आपत्तिजनक शब्दावली का प्रयोग कर रहे हैं। इससे उनकी सत्ता की उत्कंठा तो साफ तौर पर उजागर होती ही है साथ ही इससे यह भी साबित होता है कि राजनीतिक दलों के बड़े नेताओं में भी संस्कारों का पूरी तरह अकाल पड़ गया है तथा चुनावी लाभ उनके लिये सर्वाेपरि उद्देश्य बन गया है। फिर भले ही देश व समाज को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़े। किसी राजनेता द्वारा अपने विरोधियों को चोर, लुटेरा तथा बलात्कारी या बलात्कार समर्थक बताया जा रहा है तो कोई किसी की तुलना गधे, कुत्ते, गेंडे से कर रहा है। राजनेताओं की यह अवनति यह साबित करने वाली है कि अगर ऐसे राजनेताओं की जनता -जनार्दन द्वारा सत्ता की बागडोर सौंप भी दी जाए तो ऐसे उच्छृखल राजनेता लोकतंत्र के कुशल ध्वजवाहक कभी नहीं बन पाएंगे तथा उनका पूरा शासनकाल किसी उल्लेखनीय उपलब्धि का पर्याय नहीं बन पायेगा।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों के लिये पांच चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है तथा शेष दो चरणों के मतदान में अपनी निर्णायक बढ़त सुनिश्चित करने के लिये राजनीतिक दलों के नेता पूरा जोर लगा रहे हैं। ऐसे में उनके बीच स्तरहीन बयानबाजी का दौर और भी तेज हो गया है। नैतिक रूप से दिशाहीन तथा राजनीतिक तौर पर सत्ता की लालच से भरे ऐसे राजनेता जहां भी चुनाव सभा को संबोधित करते हैं या बयान देते हैं तो वहां वह अपने बोल बचन से नया विवाद खड़ा कर देते हैं। अभी पिछले दिनों राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में यूपी में एक चुनाव सभा को संबोधित करते हुए नरेन्द्र मोदी के बारे में बेहद आपत्तिजनक बयान दिया तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को एक चुनाव सभा में उन्होंने गेंडा करार दे दिया। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक चुनाव सभा में नरेन्द्र मोदी की तुलना गधे से कर दी। वहीं नरेन्द्र मोदी ने यूपी में एक चुनाव सभा के दौरान ऐसा बयान दे दिया, जो विश्व बिरादरी के बीच देश की छवि को दागदार बनाने वाला है।
मोदी ने चुनाव सभा को संबोधित करते हुए कह दिया कि उत्तरप्रदेश बलात्कार के लिये पहचाना जाने लगा है तथा यहां महिलाएं शाम सात बजे के बाद घरों से बाहर निकलने में घबराती हैं। चुनावी फायदे के लिये मोदी द्वारा इस प्रकार की बयानबाजी यूपी वालों पर ही सवाल उठा गई तो यहां यह भी विचारणीय विषय है कि अब दुनिया के दूसरे देशों के लोग भारत के बारे में क्या सोचेंगे। इसी प्रकार दूसरे भाजपा नेता जैसे खुद अमित शाह हों या फिर योगी आदित्यनाथ अथवा दूसरे नेता, चैतरपफा सवालों एवं आलोचनाओं के बावजूद उनके द्वारा स्तरहीन बयानबाजी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। वैसे लालू यादव द्वारा नरेन्द्र मोदी के बारे में कही गई आपत्तिजनक बातों की आलोचना हो रही है तथा ऐसी बयानबाजी की औचित्यपूर्ण भी करार नहीं दिया जा सकता। यहां सवाल यह उठता है कि चुनावी फायदे के लिये किसी भी राजनीतिक विरोधी का मान-मर्दन करने, कीचड़ उछालने, मजाक उड़ाने तथा बेबुनियाद आरोप लगाने की घृणित राजनीतिक परंपरा की शुरुआत भाजपा नेताओं की ओर से नहीं की गई है? अभी एकाध साल पूर्व जब हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार की सरगर्मी चरम पर थी, उस समय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को मुजरा करने वाला करार दिया था।
अमित शाह का उक्त बयान लोगों को आज भी याद है, ऐसे में जनमानस के बीच यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लालू यादव या यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की बयानबाजी पर सवाल उठाने वाले भाजपा नेता आखिर अमित शाह के उक्त हरियाणा वाले बयान को कैसे औचित्यपूर्ण करार देंगे ? यहां विभिन्न राजनेताओं के बयानों का सशब्द उल्लेख करने का आशय यह है कि तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिये अगर राजनीतिक दल व उनके राजनेताओं द्वारा राजनीतिक मूल्यों, परंपराओं तथा शालीनता-शिष्टाचार को नजरअंदाज करते हुए विरोधियों के अपमान व मानमर्दन की निंदनीय परंपरा शुरू की जाएंगी तो आगे चलकर ऐसी परंपरा खुद उनके लिये ही अवमानना का कारण बनेगी। ऐसे में राजनीतिक बिरादरी के लोगों के लिये यह बेहद जरूरी है कि वह राजनीतिक फायदे के लिये भाषा-शैली की मर्यादा का उल्लंघन हरगिज न करें तथा चुनाव रूपी लोकतंत्र के महायज्ञ को लोकतांत्रिक तरीके व सद्भावपूर्ण माहौल में ही संपन्न होने दें।