पूरा देश कुटुंब है और सभी देशवासी भाई-बहनः भागवत

हैदराबाद। परिवार हमारी संस्कृति के आधार रहे हैं। माता-पिता के माध्यम से सभी को नैतिकता और मूल्यों को सीख मिलती है। वर्तमान समय में भी पूरा देश हमारा कुटुंब है एवं पूरे देशवासी भाई-बहन। ऐसे में कुटुंब प्रबोधन के माध्यम से हमें एक आदर्श परिवार की कल्पना को साकार मूर्त भी देना होगा। इसके लिए जरूरी होगा कि हम मूल्यों पर जोर दें और सामाजिक सामंजस्य को बढ़ा कर ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ को अपनाएं।
उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हैदराबाद में आयोजित उद्योगी सम्मेलन में कहीं। उन्होंने आगे कहा कि पिछले वर्ष के दौरान देशभर में शाखाओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई है और 65» से अधिक युवा संघ के गतिविधयों में भाग ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज संघ के विचार से जिस तेजी से लोग जुड़ रहे हैं और समाज निर्माण में अपनी भूमिका निभा रहे हैं यह डाॅक्टरजी (डाॅक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार) की सोच का नतीजा है।
सरसंघचालक भागवत ने कहा कि कार्य में आने वाले ज्ञान का हमारे जीवन में सकारात्मक परिणाम होना चाहिए। कार्यकर्ता को चिंतन एवं संवाद करते रहना चाहिए, तभी वह समाज एवं देश में चल रही समस्याओं व उसके समाधान पर कोई फैसला कर पाएगा। भागवत ने कहा कि चिंतन करने से मनुष्य समृद्ध बनता है, इससे खुद का विकास तो होता ही है, समाज एवं देश को भी इसका लाभ मिलता है।
मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों की निष्ठा पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि स्वयंसेवक जिस भी काम को हाथ में लेते हैं, उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। आज स्वयंसेवकों पर देशवासियों का विश्वास बढ़ा है, लेकिन यह काम सरलता से नहीं हुआ। पहले देश व समाज में इसका विरोध हुआ और फिर समाज ने स्वयंसेवको पर विश्वास किया। विभिन्नता में एकता देखने वाला राष्ट्र पूरे विश्व में हिंदू समाज ही है।
हिन्दू समाज में समांजस्य लाने एवं विषमता को दूर करने के लिए तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस को याद करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि देवरस जी कि बातें आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा था, ‘‘हम सभी के मन में सामाजिक समांजस्य के लोप का ध्येय जरूर होना चाहिए। हमें समाज के सामने यह स्पष्ट रूप से रखना चाहिए कि अव्यवस्था के कारण हमारे समाज में किस प्रकार कमजोरी आई एवं उसका विघटन हुआ। उसे दूर करने का सुझाव बताना चाहिए और इस कोशिश में हर एक व्यक्ति को अपना योगदान देना चाहिए।
स्वयंसेवकों को आगाह करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज में जो माहौल है वह स्वयंसेवकों के लिए योग्य है। इसलिए स्वयंसेवकों को इस अनुकूल माहौल में सावधान रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि समाज में कुटुंब प्रबोधन, गौसंरक्षण, ग्राम विकास, सामाजिक समरसता जैसी गतिविधियों की ओर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। इससे ही समाज परिवर्तन को गति मिलेगी। जो समाज का विचार करते हैं, उन सबको साथ लेकर चलना, सबको जोड़कर चलना, यह हमारी कार्यप्रणाली का भाग बने.. तो हम ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ को यथार्त रूप में ला सकेंगे।