चेन्नई। तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता को मरीना बीच पर उनके राजनीतिक गुरू एमजी रामचंद्रन की समाधि के बगल में दफनाया गया। जयललिता का अंतिम अंतिम संस्कार की रस्में शशिकला ने निभाई। जे. जयललिता का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। अंतिम दर्शन करने वालों में भाजपा के केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू, राज्य के मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी थे। जयललिता को दफनाए जाने से पहले राज्यपाल सी. विद्यासागर ने पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित किए।
इसके साथ ही हर किसी व्यक्ति के मन में सवाल होगा की आखिर जयललिता के पार्थिव शरीर का दाह संस्कार करने के बजाय दफनाया क्यों गया? जबकि वह तो जन्म से ब्राह्मण थी और उनका जन्म आयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था एवं ज्योतिष पर बहुत विश्वास रखती थी। साथ ही नियमित रूप से प्रार्थना करना एवं माथे पर आयंगर नमम लगाती थी। तो फिर दफनाने की क्या वजह है?
इस विषय पर जयललिता से जुड़े लोग का कहना है कि इसकी वजह द्रविड़ आंदोलन हैं। द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता रहे पेरियार, अन्ना दुरई और एमजी रामचंद्रन समेत अधिकतर नेताओं को दफनाया गया है, इसीलिए जब जयललिता को अंतिम संस्कार की बात आई तो दाह संस्कार की बजाए दफनाने का फैसला हुआ। द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेताओं को नास्तिक माना जाता है। वे मूर्ति पूजा एवं इस तरह के अन्य पूजा की निंदा करते है एवं सैद्धांतिक रूप से ईश्वर को नहीं मानते।
जयललिता के बारे में तर्क दिया गया कि वो किसी भी जाति व धर्म की पहचान से अलग थीं। दरअसल बड़े नेताओं को दफनाये जाने के बाद समाधि बनाए जाने का चलन हैं। इसलिए यह भी वजह माना जाता है कि दफनाए जाने के बाद समर्थकों को एक स्मारक के रूप में याद करने में असानी होती है।