प्रवासियों को आत्मनिर्भर बनना आसान नही

It is not easy to be self sufficient

It is not easy to be self sufficient

मो. शाहनजर

देहरादून। It is not easy to be self sufficient  कोरोना काल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिए गए बयान की ‘लोकल को वोकल’ बनाना है और हमें आत्मनिर्भर बनना है। पीएम मोदी के बयान के बाद राज्य स्तर पर भी इस दिशा में सरकारों ने पहल शुरू कर दी है।

उत्तराखंड में भी भाजपा नीत त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने रिवर्स पलायन को मौके के तौर पर भुलाने के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया है।

यह योजनाएं कब तक धरातल पर आएंगी और कितने प्रवासी उत्तराखंडी (Uttarakhand migrants ) इन योजनाओं से लाभान्वित होकर आत्मनिर्भर ( self sufficient ) बनेंगे यह तो आने वाला कल ही बताएगा, लेकिन फिलहाल जो प्रदेश की आर्थिक स्थिति है उसको देखते हुए बड़ी संख्या में अपने घरों को लौटे प्रवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार को बड़ा दिल दिखाना होगा।

वर्तमान समय में सरकार को कर्ज का ब्याज चुकाने को भी कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ रहा है, यही नही राज्य कर्मचारियों के वेतन से भी एक साल तक एक दिन का वेतन काटने का फैसला किया गया है, जिसका कर्मचारी विरोध कर रहे है।

उत्तराखंड के परिपेक्ष में बहुत सी चीजें दूसरे राज्यों से भिन्न है। यहां की भौगोलिक स्थिति और पर्वतीय क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की शुन्यता भी पलायन को मजबूर करती रही है। पहाड़ में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती के सीमित संसाधन पलायन को बढ़ावा देते रहे हैं।

राज्य सरकारों ने पलायन रोकने और रिवर्स पलायन की ओर ध्यान तो दिया है, लेकिन अभी तक कोई सार्थक नतीजे दिखाई नहीं दे रहे हैं। राज्य बनने के बाद पलायन सबसे बड़ी समस्या के तौर पर उभर कर सामने आया है।

2 लाख प्रवासियों में से आधे ही वापस आ पाए हैं

पिछले एक दशक में ही 5 लाख दो हजार 707 से अधिक लोगों ने उत्तराखंड से पलायन किया है। कोरोना काल में वापस आने के लिए पंजीकरण कराने वाले 2 लाख प्रवासियों में से आधे ही वापस आ पाए हैं, जो उत्तराखंड वापस पहुंचे हैं उनके सामने भी रोजी-रोटी और अपने आप के कारोबार को स्थापित करना पहाड़ सा दिखाई पड़ रहा है।

राज्य में पलायन को रोकने के लिए बनाए गए पलायन आयोग की रिपोर्ट और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में काम करने वाले विशेषज्ञों की राय यही है कि फिलहाल प्रवासियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार को कई बड़े निर्णय लेने होंगे।

सरकार भी अपने स्तर पर कई योजनाओं का एलान कर चुकी है। मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत बड़े पैमाने पर पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवासियों को स्वरोजगार उपलब्ध करा कर आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सरकार कदमताल करती हुई दिखाई दे रही है।

उत्तराखंड लोटने वाले प्रवासियों को रोकने में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने की होगी। पलायन आयोग का अध्ययन बताता है कि प्रदेश से पलायन का सबसे बड़ा कारण रोजगार की कमी रही है।

प्रदेश में वापसी करने वाले युवाओं का एक बड़ा वर्ग होटल इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ है। अभी तक की स्थिति में इन युवाओं को लोक डाउन व अनलाॅक होने के बाद भी कुछ समय तक रुकना पड़ सकता है ।

फिलहाल राज्य सरकार ने 31 जुलाई तक होटल बंद रखने का ही ऐलान किया है, ऐसे में सरकार से सहायता मिले तो यह युवा अपने क्षेत्रों में रहकर स्वरोजगार अपना सकते हैं। गांव की आर्थिकी को संवारने की कोशिश भी हो सकती है।

घर लौटे प्रवासियों को रोकना किसी चुनौती से कम नहीं है। आइये सरकार के कदम और चुनौतियों पर एक नजर डालतें है।

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