कांग्रेस भले ही डूब जाये पर टिकट हमे ही मिल जाये

Internal conflict in Congress
Internal conflict in Congress

देहरादून (विजय रावत)। Internal conflict in Congress जो कल तक चुनाव न लड़ने का बड़ा ढोंग मीडिया के सामने कर रहे थे। अब चुनावी सीट पर गुड़ लगे मक्खी की तरह चिपक गए। लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस में भीतरी कलह शुरू हो गयी है । यंहा वरिष्ट नेता अपने अंदरूनी वर्चस्व की लड़ाई में मशगूल है जो अब खुलके जनता के सामने आ रही है ,पर वरिष्ट नेता भूल जाते है कि अपने वर्चस्व बचाने के चक्कर मे यह पार्टी का वर्चस्व खतरे में डाल रहे है।

यह चुनावी स्टंड अब पुरानी चाल हो चली है, पर अभी भी ये स्टंट अपने नाम की टकटकी लगाए भीतरी नेताओं के सपने पर पानी फेर देते है। चुनावी मोह है ही ऐसा जो कभी खत्म नही होता, अपने बर्चस्व की बात हो या वंशवाद की ,ये तो कांग्रेस की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है यह कहना भी गलत नही होगा कि कांग्रेस के डीएनए में वंशवाद, दौड़ने लगा है। खैर इस वंशवाद नामक महामारी तो अब सभी राजनैतिक पार्टियों में देखने को मिल रहा है।

भीतरी हाल तो यह है कि अगर आप प्रदेश के मुख्यमंत्री ही क्यो न रहे हो या अपनी दो विधान सभा सीट बेशर्मी से हारने के बाद भी नेताजी अभी तक ये नही समझ पाए कि जनता आपको पूरी तरह नकार चुकी है। पर मोह ऐसा जो छूटे ना छुटे। इसी मोह का परिणाम हम विधानसभा सीट पर देख चुके है , इनका स्टिंग से लेकर पार्टी के बागी विधायक सब देख चुके है।

कांग्रेस को पहले आपस मे चुनाव लड़ना है

आखिर भाई इसे ही राजनीति कहते है अपना उलू सीधा करना इन्हें आसानी से आता है पुराना राजनीति एक्सपीरिएंस यही होता है। पर अपने ही पार्टी के कुछ नेताओं के आस के लडू खाकर अपनो का पेट भरना, कभी कभी न खुद के हित में होता है और न ही पार्टी के।

फिलहाल उत्तराखंड में कांग्रेस के भीतर प्रीतम गुट और हरीश गुट शक्रिया है, जो एक दूसरे को एक आँख भी नही सुहाते । सबको अपने पसन्दीदा कंडीडेट को टिकेट दिलवाना है कांग्रेस को पहले आपस मे चुनाव लड़ना है। फिर बीजेपी से। बुद्विजीवियों की माना जाए तो उत्तराखंड में कांग्रेस की भीतरी कलह ही कंही कांग्रेस का पतन का कारण न बन जाए।

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