कैसे रखे करवा चौथ का व्रत

देहरादून। पति की लम्बी उम्र की कामना करने हेतु कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला व्रत करवा चौथ के नाम प्रसिद्ध है। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा करने के लिए कठोर तप स्वरूप निर्जला व्रत रऽकर अपनी सहनशक्ति व त्याग का परिचय देती है। छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेेश तथा चंद्रमा का पूजन
करवा चौथ के व्रत में शिव, पार्वती, कार्तिकेय, गणेेश तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा होती है। पूजा के बाद मिटटी  के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रऽकर सास या सास की उम्र के समान किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट करनी चाहिए।
करवा चौथ व्रत की पूजन सामग्री-
कुंकुम, शहद, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, मिटटी , चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, गौरी बनाने के लिए पीली मिटटी , लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ, दक्षिणा के लिए रूपये।
शिव-पार्वती की पूजा का विधान
व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनकर श्रृंगार कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अऽंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रातरू स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
करवा चौथ पूजन विधि
नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टðी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। पूजन के समय निम्न मन्त्र- श्श्मम सुऽसौभाग्य पुत्रपौत्रदि सुस्थिर श्री प्राप्तये चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
सांयकाल के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए। मां पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें। भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और करवे में पानी भरकर पूजा करें। सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन र्निजला व्रत रऽकर कथा का श्रवण करें। तत्पश्चात चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।
चन्द्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत ऽोला जाता है।
वर्ष 2016 में करवा चौथ 19 अक्टूबर को मनाया जायेगा। पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 46 मिनट से लेकर 06 बजकर 50 मिनट तक। करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 08-50 बजे है।
सज्जना है मुझे सजना के लिए
रुड़की। प्यार, श्रद्धा और समर्पण के इस देश में व्रत और पूजा-पाठ भी सच्चे और पवित्र प्रेम की कहानी कहते हैं। जिसका ताजा प्रमाण है करवा-चौथ का व्रत, जो कि इस महीने की 19 तारीऽ को है। इस परंपरगत त्यौहार को हमारी सोशल मीडिया ने भी काफी हाईलाइट कर दिया है। इसी कारण ये त्यौहार आज उन लोगों में भी काफी लोकप्रिय है जो अपने आप को आधुनिक कहते हैं।
यह भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराऽंड मध्य प्रदेश, हिमाचल ,हरियाणा और राजस्थान में मुख्य रूप से मानाया जाता है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
प्यार और समर्पण का सच्चा प्रमाण
पति की सलामती और तरक्की के लिए पत्नियों की ओर से रखे  जाना वाला यह वर्त पत्नी के प्यार और समर्पण का सच्चा प्रमाण है, महिलाएं इस व्रत का बेसब्री से इंतजार करती हैं। सुबह चार बजे उठकप महिलाएं सरगी खाती हैं और उसके बाद पूरे दिन बिना पानी के रहती हैं। शाम को पूजा करने के बाद चांद देखकर अपनी पति के हाथों पानी पीकर अपना व्रत खोलती  है ।
धार्मिक किताबों के मुताबिक शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था,परंतु उससे भूऽ नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी। उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देऽी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा  दिया और वीरवती को भोजन करा दिया।
करवा- चौथ पर फिर से जी उठा पति
व्रत से फिर से पाया पति परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा  और करवा- चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः प्राप्त हो गया।
सोलह श्रृंगार
सोलह श्रृंगार भले ही पारंपरिक एक पूजा हो लेकिन इस व्रत ने फैशन का रूप धारण कर लिया है। स्त्रियां इस दिन भूऽी-प्यासी रहकर सोलह श्रृंगार करती है। ताकि उनके पति उनके रूप और तपस्या को छोड़कर कहीं ना जाए। महिलाएं इस दिन के लिए महीनों से तैयारियां करती है। आप बाजार में देऽेगें तो आपकाे इसकी बानगी दिऽ जायेगी।