Government will be lost because of animals
शादाब अली
उन्नाव। Government will be lost because of animals बॉलिवुड फिल्म के लिए परफेक्ट कहानियां मिलती हैं। बाहुबली नेता,उनका गुंडाराज, महिलाओं के खिलाफ अपराध, अदालत और सज़ा। लेकिन एक चीज़ आप भूल रहे हैं।
डौंडियाखेड़ा गांव, जहां कई साल पहले ज़मीन में कथित तौर पर दबे 1000 टन सोने के लिए एएसआई ने गड्ढे खोदे,लेकिन मिला कुछ नहीं। क्या है यहां सियासी माहौल?
सेंट्रल यूपी मे की यात्रा का एक अहम पड़ाव है उन्नाव।1857 की क्रांति में उन्नाव का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है। हिंदी के महान साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी साहित्य साधना उन्नाव में की थी। ‘80 के दशक के मध्य तक उन्नाव की राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व था। कई नेता तो अपनी सादगी के चलते जनता की आंखों के तारे बन गए।भगवती सिंह विशारद छह बार विधायक बने,लेकिन संपत्ति के नाम पर उनका अपना एक मकान तक नहीं था। गोपीनाथ दीक्षित और सच्चिदानंद वाजपेई भी इस लिस्ट में शामिल हैं।
लेकिन इसके बाद सिद्धांतों और आदर्शों का दौर खत्म होने लगा। नब्बे के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय पार्टियां राजनीति पर हावी हो चुकी थीं। उन्नाव के पहले बाहुबली नेता माने जाते हैं अजीत सिंह।अजीत सिंह एमएलसी रहे। कई जिलों में उनकी तूती बोलती थी। उनकी समाजवादी पार्टी में खूब पकड़ थी। 2005 में अजीत सिंह की हत्या हो गई। केस अब तक अनसुलझा है। अजीत सिंह के समानांतर ही बाहुबली कुलदीप सिंह सेंगर अपनी जड़ें मजबूत कर रहा था। युवक कांग्रेस से राजनीति शुरू कर कुलदीप विधायक बना। पहले बीएसपी, फिर एसपी और अंत में बीजेपी का आसरा लिया। उन्नाव में लोग कुलदीप के नाम से कांपते थे। लखनऊ और कानपुर में भी उसकी खूब दहशत थी। 2018 में सियासी तूफान उठा। माखी गांव में लड़की से रेप के मामले में कुलदीप को 2018 में जेल भेज दिया गया। बाद में सज़ा भी हो गई।
जहा उन्नाव जिले में बलात्कार रेप लूट मर्डर जैसी घटनाओं पर पर्दा डालने में आज भी प्रशासन कोई कमी नहीं छोड़ता है अगर खुदा ईश्वर ही करे तो न्याय मिल पाता है नहीं तो बेचारे अब इसी धरती पर कहीं तो अपने परिवारों को खो चुके हैं और कई बलात्कार पीड़ित नाबालिक लड़कियां व महिलाएं आज भी दर-दर भटकती है लेकिन प्रशासन ऊपर से नीचे तक एक ही रटा रटाया कलमा होता है जहां चढ़ता हो मोटा चढ़ावा तो फिर अधिकारी अपने और अपने कर्मचारियों को बचाकर न्याय का भरोसा दिलाते रहते है। और गरीब ही बलि का बकरा बन जाता है यह सत्ता का व नेताओं का भारी दबदबा
अब बात करते हैं आज की राजनीति की। उन्नाव जिले को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। आधा अवध, आधा बैसवाड़ा। डौंडियाखेड़ा गांव बैसवाड़ा इलाके में आता है। अवध अपनी नाज़ुक मिजाज़ी के लिए नामी है, तो बैसवाड़ा अक्खड़पन के लिए। 2013 में कानपुर के संत शोभन महाराज ने दावा किया कि उन्होंने एक सपना देखा है। सपने में आया कि डौंडियाखेड़ा मंदिर के पास राव रामबख्श सिंह के किले के अवशेषों में 1000 टन सोना दबा है। तत्कालीन केंद्र सरकार के मंत्री रामचरण दास महंत एक्टिव हुए और एएसआई ने यहां खोदाई शुरू की। टीले पर दो गड्ढे बनाकर करीब एक महीने खोजबीन चली, लेकिन सोना तो नहीं मिला। काम बंद हो गया। महल के अवशेषों पर बने टीले पर अब बबूल का जंगल पनप गया है।
गंगा किनारे बसे डौंडियाखेड़ा तक पहुंचना आसान नहीं है। कानपुर से करीब 80-90 किमी के सफर के बाद टूटी और संकरी सड़क मिलती है। रास्ते में फैली कांटेदार झाड़ियों वाले रास्ते पर 4 किमी चलने के बाद डौंडियाखेड़ा आता है। मंदिर गांव से कुछ दूर है। मैं 3 फरवरी को जब चुनावी बयार की हक़ीकत परखने डौंडियाखेड़ा पहुंचा तो टीले पर कुछ लोग महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना में झाड़ियां साफ कर रहे थे। वही टीला, जिसके नीचे सोना दबे होने की अफवाह उड़ी थी। सबसे पहले मिले गांव के ही सुरेश कुमार साहू। एक मज़दूर लेकिन राजनीतिक रूप से जागरूक।