उत्तराखण्ड में हर्षोलास के साथ मनाया गया रक्षाबंधन का पर्व

Festival of Rakshabandhan
Festival of Rakshabandhan

देहरादून। प्रदेशभर में रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार (Festival of Rakshabandhan) हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। शुभ मुहूर्त शुरू होते ही बहनों ने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उनकी दीर्घायु की कामना की, वहीं पंडितों ने यजमान को और पर्यावरण प्रेमियों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधे।

उत्तराखंड में पंडित की तरफ से यजमान को भी राखी बांधने की परंपरा है। पहले पंडित राखी के प्रतीक के रूप में नाला बांधते थे। अब वे भी घर पर ही राखी निर्मित कर इस दिन यजमान को राखी बांधते हैं।

साथ ही उनकी सुख समृद्धि की कामना करते हैं। रक्षाबंधन का त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया गया। महिलाओं ने मंदिरों भी राखी चढ़ाई। गढ़वाल व कुमाऊं में रक्षाबंधन के मौके पर बसों में काफी भीड़ रही। इससे लोगों को परेशानी भी रही।

उत्तराखंड सरकार ने रोडवेड की बसों में महिलाओं को उत्तराखंड की सीमा में मुफ्त यात्रा का लाभ दिया। इससे बसों में मारामारी का आलम रहा। रक्षाबंधन के त्योहार की उत्पत्ति धार्मिक कारणों से मानी जाती है। जिसका उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में, कहानियों में मिलता है।

इस कारण पौराणिक काल से इस त्योहार को मनाने की यह परंपरा निरंतरता में चलती आ रही है। चूंकि देवराज इंद्र ने रक्षासूत्र के दम पर ही असुरों को पराजित किया और रक्षासूत्र के कारण ही माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को राजा बलि के बंधन से मुक्त करवाया।

हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण

महाभारत काल की भी कुछ कहानियों का उल्लेख रक्षाबंधन पर किया जाता है। अत: इस त्योहार को हिंदू धर्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ही प्राचीन समय में ऋषि-मुनि अपने शिष्यों का उपाकर्म कराकर उन्हें विद्या-अध्ययन कराना प्रारंभ करते थे।

उपाकर्म के दौरान पंचगव्य का पान करवाया जाता है तथा हवन किया जाता है। उपाकर्म संस्कार के बाद जब जातक घर लौटते हैं तो बहनें उनका स्वागत करती हैं और उनके दांए हाथ पर राखी बांधती हैं। इसलिये भी इसका धार्मिक महत्व माना जाता है।

इसके अलावा इस दिन सूर्य देव को जल चढ़ाकर सूर्य की स्तुति एवं अरुंधती सहित सप्त ऋषियों की पूजा भी की जाती है इसमें दही-सत्तू की आहुतियां दी जाती हैं। इस पूरी क्रिया को उत्सर्ज कहा जाता है।

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