faze will rise from my grave
बाद विसाल औलिया अल्लाह की कब्र मुबारक से फ़ैज़ व करामते
शादाब अली
उन्नाव | faze will rise from my grave (1)हाजी हैदर अली साहब बयान करते हैं कि हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमान गंजमुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि, “मेरी कब्र से फ़ैज़ जारी होगा ” और बहम्द लिल्लाह आज तक इसी आबो ताब से यह फ़ैज़ जारी है।
(2)1936 में मस्जिद ए फ़ज़्ले रहमानी में उर्स शरीफ़ के मौके पर अब्दुल हकीम उर्फ़ भूरा खान रहमानी पर फ़ालिज गिर गया और साहिब ए सज्जादा हज़रत अहमद मियां अलैहिर्रहमा से इत्तिला की गई तो आपने फ़रमाया, “जिसके पास आए हैं वहां ले चलो “..चुनाँचे खान साहब को मज़ार शरीफ़ में ले जाकर डाल दिया गया… 15-16 मिनट भी न गुज़रे थे कि भूरा खान साहब सही और सालिम उठ चले आए और फिर कई सालों तक हयात रहे ।
(3)क़ाज़ी यूसुफ़ हसन बदायूंनी साहब अपनी अहलिया को लेकर आस्ताना हाज़िर हुए, उनकी अहलिया के सीने में एक गिल्टी हो गई थी जो किसी भी दवा इलाज से ठीक न हो सकी। क़ाज़ी साहब ने अपनी अहलिया को मज़ार शरीफ़ में ले जाकर बंद कर दिया और खुद बाहर रहकर बा-आवाज़ कहा कि, “अब इसे उसी वक़्त ले जाऊंगा जब यह अच्छी हो जाएगी”…थोड़ी देर बाद क़ाज़ी साहब ने अपनी अहलिया के खट खटाने पर दरवाज़ा खोलकर पूँछा तो गिल्टी बिल्कुल गायब थी।
1313 हिजरी (मौलाना बाबा के विसाल) से लेकर आज तक ऐसा फ़ैज़ जारी है कि अगर उनके बारे में लिखा जाए तो एक दफ़तर बन जाएगा। कैसे ही मरीज़ क्यों न हो, खानक़ाह के मुबारक कुएं का पानी पीते थे और ठीक हो जाते थे। कोढ़ी लोग सिर्फ़ हाज़िरी से ही सेहतयाब हो जाते थे। किसी ने हाज़िरी का इरादा किया कि फ़ला-फ़ला काम हो जाए तो सिर्फ़ इरादे से ही उसका काम हो गया।
कोई अपनी मुराद के लिए आस्ताना आ रहा होता और अभी रास्ते में ही सफ़र कर रहा होता कि उसको अपने मक़सद में कामयाबी हासिल हो जाती थी और वह रास्ते से ही लौट जाता था।
(4) राजा किशन प्रसाद हैदराबादी किसी इल्ज़ाम में फँस गए और हाज़िरी की नियत से गंजमुरादाबादी रवाना हुए ।अभी रेलवे स्टेशन पर ही क़याम था कि फ़ौरन उनको वाली ए हैदराबाद का हुक्म मिला कि, “आपको अपनी जगह (पोस्ट) पर वापिस बहाल किया जाता है “..यह सुनकर वह वही से ही लौट गए।
(5)अब्दुल करीम आज़मगढ़ी साहब जब बड़े बाबा हज़रत रहमतुल्लाह मियां गंजमुरादाबादी साहब के पास आस्ताना ए रहमानिया में हाज़िर हुए और अपना कुर्ता उठाकर बड़े बाबा को दिखाया कि तमाम बदन पर बरस(सफ़ेद दाग) हो गया है तो बडे बाबा साहब ने फ़रमाया, “मेरे पास क्या धरा है, शम्सुद्दीन ! इनको तन्हा मज़ार (रौज़ा ए फ़ज़्ले रहमा) में ले जाकर बन्द कर दो “..आधे घन्टे बाद अब्दुल करीम ने दरवाज़ा खुलवाकर बाहर सबको अपना बदन दिखाया ,जिल्द वगैरह सब साफ़ और दागों से पाक जिस्म था {रहमत ओ नेमत :289}|
(6) कब्र से अदायगी कर्ज़ आखिरी वक़्त में आप हज़रत मौलाना शाह फ़ज़्ले रहमान गंजुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह पर 9,000 का कर्ज़ था और बकाल (बनिया) परेशान था कि आपके विसाल के बाद इसको अदा कौन करेगा ।
मौलाना बाबा को कश्फ़ हो गया और आपने जलाल में फ़रमाया, “अगर हम न रहेंगे तो हमारी कब्र कर्ज़ अदा कर देगी “…चुनाँचे यही हुआ कि ठाकुर अब्दुल गफ़्फ़ार नानपारवी के साथ उत्तरौला रियासत गोंडा के राजा मुमताज़ अली साहब और उनके दामाद राजा जंग बहादुर नानपारवी आप हज़रत सरकार फ़ज़्ले रहमान साहब के विसाल बाद आस्ताने पर हाज़िर हुए और 9,000 रूपए कब्र शरीफ़ पर रख दिया कि जिस जिसका हो कब्र मुबारक से उठा लें” ..माशा अल्लाह! अब आगे देखें कि उस बनिया का कर्ज़ तो आपकी कब्र ए अनवर से ही अदा हो गया लेकिन कायदा है कि औलिया अल्लाह किसी का भी एहसान नहीं रखते।
राजा मुमताज़ अली साहब ने कब्र पर जो 9,000 रूपए रखे थे तो उनको भी हज़रत किब्ला ने यह अज्र दिया कि जब वह लंदन पहुंचे तो एक रईस से उनको 4 लाख रूपए मिल गए। सुब्हान अल्लाह! यह होते हैं औलिया ए किराम जो हमारी एक अदना सी अक़ीदत के बदलें भी 10 गुना ज़्यादा देते हैं।
तसवीर का दूसरा रुख भी यहां काबिल ए दीद है कि जिन लोगों ने लालच में आकर अपना कर्ज़ा बताया और असल कर्ज़ से ज़्यादा बढ़ा चढ़ाकर बताया, उन्हें आज गंजमुरादाबाद में आकर देखिए कि कैसे खुद भी साफ़ हो गए और औलाद ए नरीना से भी महरूम हैं। {,अख्बारुल अत्क़िया : 203,204 ,अफ़ज़ाले रहमानी :- 207,217-218}
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