दंगल-मनोरंजन के हर रंग में सराबोर

रेटिंग 4 स्टार मुख्य कलाकार- आमिर खान, साक्षी तंवर, फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, जरीना वसीम, सुहानी भटनागर, गिरीश कुलकर्णी, विवान भटेना, अपरशक्ति खुराना। बैनर- आमिर खान फिल्मस निर्माता- आमिर खान, किरण राव, सिद्धार्थ राॅय कपूर निर्देशक- नितेश तिवारी लेखक- नितेश तिवारी, पियूष गुप्ता, श्रेयस जैन, निखिल महरोत्रा कैमरामैन- सेतू, सत्यजीत पांडे एडीटर-बल्लू सलूजा कास्टिंग डायरेक्टर- मुकेश छाबड़ा एक्शन डायरेक्टर- शाम कौशल, कृपाशंकर बिशनोई डांस डायरेक्टर- बोस्को, सीजर गीतकार- अमिताभ भट्टाचार्य संगीतकार- प्रीतम गायक- दलेर मेहंदी, अर्जित सिंह, रफ्तार सिंह, जोनिता गांधी, सरवर खान, सरजात खान, ज्योति नूरन, सुल्ताना नूरन एक सादगी भरी कहानी पर कैसे एक मनोरंजक फिल्म बनाई जा सकती है, इस बात को फिर आमिर खान, निर्देशक नितेश तिवारी और उनकी टीम ने साबित कर दिखाया है। हरियाणा के एक पहलवान द्वारा अपनी बेटियों को पहलवानी के अखाड़े में उतारने की इस कहानी में वो सब कुछ आ गया, जो एक मनोरंजक फिल्म की जरुरत होती है। दंगल उन चंद बाॅलीवुड फिल्मों में से है, जो अच्छी फिल्म की हर कसौटी पर खरी उतरती है। हरियाणा के भवानी जिले के बेलाली गांव का महावीर पफोगट (आमिर खान) पहलवानी का शौकीन रहा। उसकी चाहत देश के लिए गोल्ड मैडल जीतने की थी, लेकिन परिवार की आर्थिक हालत ने उसे आगे नहीं बढ़ने दिया और वो सरकारी नौकरी में लग गया। देश के लिए गोल्ड मैडल जीतने की उसकी हसरत कभी उससे दूर नहीं हो सकी। दया (साक्षी तंवर) से उसकी शादी हुई, तो महावीर को उम्मीद हुई कि वो अपने बेटे को पहलवान बनाएगा लेकिन दया ने एक नहीं चार-चार बेटियों को जन्म दिया, तो गोल्ड लाने की महावीर की उम्मीदें मायूसी में बदलती चली गईं। बड़ी बेटियों गीता (जरीना वसीम) और बबीता (सुहानी भटनागर) की गांव के लड़के को पीटने की एक घटना से महावीर को महसूस हुआ कि गोल्ड मैडल लाने का काम उसकी बेटियां भी कर सकती हैं।

अपनी दोनों बेटियों को महावीर बचपन से ही पहलवानी के अखाड़े में उतारने का फैसला करता है, तो गांव वाले उसका मजाक उड़ाते हैं। यहां तक कि दया को भी महावीर का ये पफैसला रास नहीं आता, लेकिन महावीर किसी की नहीं सुनता और अपने पफैसले पर अडिग रहता है। दोनों बेटियों को अपने पिता का पफैसला पसंद नहीं आता, लेकिन महावीर की मेहनत रंग लाना शुरु करती है और धीरे-धीरे दोनों बेटियां पहलवानी के अखाड़े में रंग दिखाना शुरु करती हैं और देखते ही देखते दोनों बेटियां अखाड़े में लड़कों को पटखनी देकर जीतना शुरु करती हैं। दोनो बेटियां पहले स्टेट और फिर नेशनल लेवल पर धमाकेदार जीत के साथ आगे बढ़ती हैं। पटियाला की स्पोर्टस अकादमी में पहले गीता (फातिमा सना शेख) की ट्रेनिंग शुरु होती है, तो सरकारी कोच (गिरीश कुलकर्णी) अपने अंदाज में गीता को ट्रेनिंग देना शुरु करता है। गीता को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े मौके मिलते हैं, लेकिन उसे जीत नहीं मिलती। रेसलिंग के नए तरीकों और महावीर फोगट के तरीकों को लेकर गीता का अपने पिता से टकराव भी होता है और महावीर अपनी बड़ी बेटी से मायूस हो जाता है। छोटी बेटी बबिता (सान्या मल्होत्रा) को महावीर अपने तरीकों से ट्रेनिंग देता है और नेशनल चैंपियनशिप जीतकर बबीता भी पटियाला की अकादमी में ट्रेनिंग के लिए पंहुच जाती है।

लगातार हार से परेशान गीता को एक बार फिर अपने पिता के तरीकों की कमी महसूस होती है, तो बेटियों की खातिर महावीर पटियाला पंहुच जाता है। अकादमी के कोच को महावीर और उसकी ट्रेनिंग के तरीके पसंद नहीं, तो भी महावीर हार नहीं मानता और वो गुपचुप तरीके से गीता को दांव-पेंच सीखाना शुरु करता है। महावीर के दांवपेंच गीता के लिए कामयाबी का रास्ता खोलने में कामयाब हो जाते हैं और 2010 में दिल्ली में हुए कामनवैल्थ खेलों में दिग्गज पहलवानों को हराकर गीता देश के लिए गोल्ड मैडल लाने का अपने पिता का सपना साकार करने में कामयाब हो जाती है। ये बायोपिक फिल्म है, यानी सच्ची घटना पर। ये महावीर पफोगट की असली जिंदगी की कहानी है कि कैसे उसने तमाम हालातों का सामना करते हुए अपनी बेटियों को पहलवानी में उतारा। इस कहानी की संवेदनाएं सीधे दिल से जुड़ जाती हैं। पहले सीन से लेकर क्लाइमेक्स तक हर सीन संवेदनाओं का नया सिलसिला जोड़ता है। बेटे की चाहत में बेटियों का जन्म, एक पिता की मायूसी, बेटियों को अखाड़े में उतारना, पत्नी की नाराजगी, बेटियों की मुश्किल ट्रेनिंग और फिर तरीकों को लेकर अपनी बेटी के साथ टकराव के पल दर्शकों के दिलों की हलचल को तेज करने का काम करते हैं।

क्लाईमेक्स अप्रत्याशित नहीं था, लेकिन दिल और दिमाग को ऐसे जकड़ता है कि कोई हिल भी नहीं सकता। दंगल जैसे देसी खेल के साथ जिस शानदार तरीके से फिल्म की पटकथा और संवादों पर काम किया गया, उसके लिए फिल्म के लेखकों की टीम बधाई की पात्र है। आमिर खान इस फिल्म के सिर्फ एक्टर ही नहीं है, बल्कि कहा जाए, तो वे इस फिल्म की ताकत हैं और आत्मा भी वही हैं। महावीर पफोगट के किरदार में समाहित करने में आमिर ने कोई कसर नहीं रखी। वजन बढ़ाने और घटाने से लेकर हरियाणवी भाषा सीखने और बेटियों के साथ रिश्तों को लेकर आमिर खान ने अपनी अदायगी का हर रंग परदे पर बिखेरा। आमिर खान को यूं ही परफेक्निस्ट नहीं कहा जाता। छोटी बेटियों को पहलवानी की ट्रेनिंग देने की कठोरता और फिर रात को उन बेटियों के पैर दबाना, बड़ी बेटी के साथ टकराव से टूट जाना और फिर उसकी मदद के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के सीनों में आमिर खान लाजवाब रहे। फिल्म की जान अकेले आमिर ही नहीं हैं। उनकी पत्नी के रोल में साक्षी तंवर ने भी कोई कमी नहीं रखी। एक अक्खड़ पति से लेकर बेटियों की मां के तौर पर साक्षी ने अपना रंग जमाया। अब बात उन लड़कियों की, जिन्होंने पहली बार कैमरे का सामना किया, लेकिन परदे के सामने वे अपनी सहजता और आत्मविश्वास से सबका दिल जीत लेती हैं।

गीता और बबीता के बचपन का रोल करने वाली जरीना वसीम, सुहानी भटनागर और बड़े होकर बनी गीता, बबीता के रोल में फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा को परदे पर देखकर नहीं लगता कि वे पहली बार एक्टिंग कर रही हैं। चारों लड़कियों ने अपने-अपने किरदारों में जैसे चार चांद लगा दिए। सहायक भूमिकाओं की बात करें, तो महावीर के भतीजे के रोल में ऋतिविक सहोरे (बचपन) और अपराक्षित खुराना (बड़े होकर) ने अपनी छाप छोड़ी। कड़क कोच के रोल में गिरीश कुलकर्णी भी शानदार रहे। निर्देशन दंगल के निर्देशक नितेश तिवारी के लिए ये फिल्म बहुत बड़ी चुनौती थी। वे पहले चिल्लर पार्टी और भूतनाथ रिटर्न फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं, लेकिन दंगल उनके निर्देशन कला के लिए चुनौती इसलिए थी कि पहली बार आमिर खान के साथ वे काम कर रहे थे और दंगल जैसे खेल पर फिल्म बना रहे थे। नितेश तिवारी का निर्देशन कहीं भी कमजोर नहीं पड़ा। उनकी सबसे बड़ी खूबी यही रही कि फिल्म पर उनका कमांड बना रहा। उन्होंने एक पिता के जज्बातों, उसकी हसरत और हालात से लड़ने की कुव्वत की संवेदनाओं के साथ बेहतरीन संतुलन बनाए रखा। नितेश को दंगल में एक बड़ा मौका मिला, जिसे उन्होंने लपक लिया और साबित कर दिखाया कि वे बखूबी इस चुनौती का सामना कर सकते हैं।

दंगल के टाइटल गीत (दलेर मेहंदी) से लेकर हानिकारक बापू (सरवर खान और सरताज खान) और धाकड़… (रफ्तार) के गीत परदे पर अपना असर छोड़ते हैं। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के शब्दों और प्रीतम की धुनों में गांव के ठेटपन की महक इन गीतों को और शानदार बना गई। पहलवानी के अखाड़े के दांव पेंचों को कृपाशंकर बिश्नोई और शाम कौशल के एक्शन डायरेक्शन ने लाजवाब बना दिया। खास तौर पर क्लाइमेक्स में तो ये जज्बातों को शिखर पर ले जाते हैं। कैमरामैन सेतू की सिनेमाटोग्राफी लाजवाब रही। दंगल के सीनों से लेकर आधुनिक कुश्ती के हर सीन को खूबसूरती के साथ कैद किया गया। फिल्म की एडीटिंग, कोरियोग्रापफी का भी अपना योगदान रहा है। तकनीकी रुप से दंगल सुपर फिल्म रही है। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी- आमिर, चारों लड़कियों और साक्षी का लाजवाब अभिनय, दर्शकों को बांधे रखने वाली पटकथा और चुटीले संवादों वाली इस फिल्म में खूबियों का भंडार है। फिल्म की कमजोरी- इस फिल्म में कमजोरी जैसा कुछ नहीं है। फिल्म का बजट 100 करोड़ से ऊपर बताया गया है।

ये आमिर खान की फिल्म है। फिल्म को शानदार ओपनिंग मिलना तय है। ये फिल्म बाॅक्स आॅफिस को जल्दी ही अपने कब्जे में कर लेगी। पहले दिन फिल्म को 35-40 करोड़ तक की ओपनिंग लगती है, तो फिल्म पहले वीकंड में 100 करोड़ के क्लब में जाने का रास्ता देख लेगी। इस फिल्म से 300 करोड़ तक की कमाई की उम्मीद हैरान करने वाली नहीं है। देखना होगा कि क्या ये फिल्म आमिर की पिछली फिल्मों की कमाई के रिकार्ड को कब और कैसे तोड़ेगी। दंगल सिर्फ एक फिल्म नहीं है। दंगल देखना एक शानदार फिल्मी अनुभव है, जो एहसास कराता है कि एक देसी खेल को लेकर किस तरह से बेहतरीन फिल्म बन सकती है। बाॅक्स आॅफिस के अखाड़े में दंगल के दांवपेंच दर्शकों की पसंद की हर कसौटी पर खरे उतरने में सक्षम हैं। जाइए और दंगल के रंगों में सराबोर होने का आनंद लीजिए।