शादी ही नही तलाक का भी कराना होगा पंजीकरण

Divorce will also have to be registered

देहरादून। Divorce will also have to be registered समान नागरिक संहिता विधेयक 2024 में विवाह के साथ-साथ तलाक (विवाह विच्छेद) का भी पंजीकरण कराना लाजमी होगा। पति-पत्नि को तलाक लेने के आधार भी तय किये गये हैं। समान नागरिक संहिता विधेयक 2024 के अध्याय-2 में कहा गया है कि संहिता के प्रारंभ होने के बाद अनुष्ठापित व अनुबंधित विवाह का अनिवार्य पंजीकरण-तत्समय लागू किसी भी अन्य विधि अथवा किसी रूढ़ि या प्रथा में किसी विपरीत बात के होते हुए भी, इस संहिता के प्रारंभ होने के बाद, राज्य में या उसके क्षेत्र के बाहर अनुष्ठापित व अनुबंधित विवाह, जहां विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी है, धारा 10 की उपधारा (1) के तहत उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जाएगा। मगर यह कि धारा 4 और 5 के तहत अपेक्षित आवश्यकताएं पूर्ण होती हों।

संहिता के प्रारंभ होने से पूर्व अनुष्ठापित व अनुबंधित विवाह का पंजीकरण-(1) 26 मार्च 2021 व इस संहिता के प्रारंभ होने की तिथि के मध्य राज्य में अनुष्ठापित व अनुबंधित कोई भी विवाह जहां विवाह-पंजीकरण के समय विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी था-है, को धारा 10 की उपधारा (2) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जाएगा।

परन्तु यह कि उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2010 (उत्तराखंड अधिनियम संख्या 19. वर्ष 2010) के तहत पंजीकृत किसी भी विवाह को इस उपधारा के तहत पुनः पंजीकृत करने की आवश्यकता नहीं होगी। मगर यह और कि उत्तराखंड विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 2010 (उत्तराखंड अधिनियम संख्या 19, वर्ष 2010) के तहत पंजीकृत किसी भी विवाह के संबंध में, दोनों पक्षों में से किसी एक द्वारा इस संहिता के प्रारंभ होने की तिथि से छह माह की अवधि के भीतर उस उप-निबंधक के समक्ष विवाह के पंजीकरण की घोषणा प्रस्तुत की जाएगी, जिसके अधिकारिता क्षेत्र में विवाह अनुष्ठापित व अनुबंधित हुआ था या दोनों में से कोई एक पक्ष निवास करता है। राज्य में 26 मार्च 2010 से पूर्व अथवा राज्य के बाहर संहिता लागू होने से पूर्व अनुष्ठापित व अनुबंधित कोई भी विवाह, जहां विवाह-पंजीकरण के समय विवाह का कम से कम एक पक्षकार राज्य का निवासी था या है, धारा 10 की उपधारा (3) में उल्लिखित प्रक्रिया के अनुसार पंजीकृत किया जा सकता है।

यूसीसी में कहा गया है कि इस संहिता के शुरू होने के पहले या बाद में हुए किसी भी विवाह का कुछ आधारों पर न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत किए जाने पर शून्यीकरण होगा। इस संहिता के शुरू होने के पहले या बाद में हुए किसी भी विवाह का कुछ आधारों पर न्यायालय के समक्ष याचिका प्रस्तुत किए जाने पर शून्यीकरण होगा। इन आधारों में प्रतिवादी की नपुसंकता या जानबूझकर प्रतिषेध के कारण विवाहोत्तर संबंध नहीं हुआ है या विवाह की धारा 4 के खंड 2 में विनिर्दिष्ट अपेक्षित आवश्यकताओं का उल्लंघन करता है।

याचिकाकर्ता की सहमति बलपूर्वक, प्रपीड़न या धोखाधड़ी से प्राप्त की गई थी, इसके साथ ही पत्नी विवाह के समय पति के अलावा किसी अन्य पुरुष से गर्भवती थी या पति ने विवाह के समय पत्नी के अलावा किसी अन्य महिला को गर्भवती किया था, ये सभी कारण शून्य विवाह के लिए पर्याप्त होंगे। इसके अलावा दूसरे से संबंध बनाने, धर्म बदलने, अप्राकृतिक संभोग में दोषी होने पर, एक से अधिक पत्नियां होने पर विवाह को शून्य कराने को याचिका दायर की जा सकेगी, वहीं, आपसी सहमति से ली गई तलाक को मान्यता दी गई है।

इसके साथ ही उपधारा 1 में किसी बात के होते हुए भी शून्य विवाह की कोई याचिका खंड ख के विनिर्दिष्ट आधार पर ग्रहण नहीं की जाएगी, यदि याचिकाकर्ता द्वारा 21 वर्ष की आयु प्राप्त होने की तिथि से एक वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद कार्यवाही योजित की गई हो, यूसीसी के शून्य विवाह अध्याय 4 में ये भी उल्लेख किया गया है कि याचिका यथास्थिति, बल प्रयोग या प्रपीड़न के प्रवर्तनीय न हो जाने या कपट का पता चल जाने के एकाधिक वर्ष के बाद प्रस्तुत की गई हो।

या याचिकाकर्ता यथास्थिति बल प्रयोग या प्रपीड़न के प्रवर्तनहीन हो जाने या कपट का पता चल जाने के बाद विवाह के दूसरे पक्षकार के साथ अपनी पूर्ण सम्मति से पति या पत्नी के रूप में रह रहा हो या रही हो तो न्यायालय में इसके समाधान के लिए कुछ बिंदु रखे गए हैं, इनमें क्या याचिकाकर्ता विवाह से पहले इन तथ्यों से अनभिज्ञ था, इसके साथ ही शून्य विवाह के लिए ऐसे प्रक्रिया अपनाई जाएगी जिससे पीड़ित पक्ष को न्याय मिल सके।

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