कृषि प्रधान देश में कृषक भी हो प्रधान

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कृषिक के महत्व को नकारना बहुत बडी नाइंसाफी

हिना आजमी

हमारे देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है। कृषि को यदि प्रधानता की संज्ञा दी जा रही है तो कृषिक के महत्व को नकारना बहुत बडी नाइंसाफी होगी। लाल बहादुर शास्त्री जी ने स्वतंत्रता आंदोलन में तेजी लाने के लिए जय जवान जय किसान का नारा दिया था। यह दोनों ही हमारे देश के आधार हैं।

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जब एक किसान प्रातः काल में सर्दी-गर्मी सेहन करते हुए अन्न उगाता है तब जब जवान सर्दी-गर्मी बरसात की मार झेलकर सरहदों पर दुश्मनों से हमारी रक्षा करता है तब हम सुकून की नींद सोते हैं। हमारी नींद और भूख को शांत करने वालों की जिंदगी में ही शांतिं नहीं है। बहुत अफसोस की बात है देश को पेट भरने वाला अन्नदाता ही भूख व कर्ज से मर जाता हैं।

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सूदखोर को जब वह वक्त पर ब्याज नहीं दे पाता तो उसकी जीवन भर की पूंजी निलाम करने पर भी कर्ज माफ नहीं हो पाता है और यह कर्ज उसकी पीढी को विरासत में मिल जाता है। उनकी खून पसीने से सींचीं फसलों को बाजार में तो महगें दामों पर बेचा जाता है लेकिन उन्हें उस मेहनत की उचित कीमत नहीं मिलती है। व्यापारी किसानों से 8-10रू0 किलो अनाज खरीदकर बाजार में 20 रू0 किलो में बेचते हैं।

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फायदा वह कमा रहा है जो मेहनत नहीं करता और जो मेहनत कर रहा है वह मजबूरी में आत्महत्या कर रहा है। ऐसी दशा है मेरे देश की, तब कहा जाता है कि देश कृषि प्रधान है। आज के किसान क्रांति ला रहें हैं। वह आन्दोलन कर रहें हैं। अपने हक के लिए लड़ते किसानों की मांगें सुननी होगी। महाराष्ट्र में कर्ज माफी और कृषकों के लिए जानकारी हेतु एप्लिकेशन शायद इस क्रांति में तेजी लाए।

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