अब आरबीआई गर्वनर उर्जित पटेल के नाम पर हो रही ठगी

लखनऊ । लोगों को धोखा देकर पैसा बनाने वाले ठग भी वक्त के साथ ठगी का अपना अन्दाज बदलते रहते हैं। ऐसे ही ठग अब भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई के गर्वनर उर्जित पटेल के नाम का सहारा ले रहे हैं। हाल के दिनों में नोटबन्दी के बाद उर्जित पटेल का नाम कई बार सुर्खियों में आया है और आम जनता के बीच यह नाम लोकप्रिय भी हो चुका है। ऐसे में ठगों ने अब लोगों की गाढ़ी कमाई पर डाका डालने के लिए इस नाम का भी सहारा लेना शुरू कर दिया है। इसके तहत आरबीआई गवर्नर के नाम पर काला धन जमा करने के लिए लोगों से उनके बैंक अकाउण्ट की डिटेल मांगकर करोड़ों रुपए का लालच भी दिया जा रहा है। वहीं अब आरबीआई के लेटरहेड पर उर्जित पटेल की ओर से लाॅटरी के नाम पर ठगी का खेल सामने आया है।
ताजा मामले में लखनऊ के एक युवक की ई-मेल आईडी (आरबीआई अण्डर स्कोर फण्ड रिलीज अण्डर स्कोर आॅर्डर 2025 एट द रेट आॅफ अकाउण्टेण्ड डाॅट काॅम) से मेल आया। इस मेल को आरबीआई गर्वनर उर्जित पटेल की तरपफ से भेजने का दावा किया गया था। जिसमें कहा गया था कि युवक की ई-मेल को बीती 04 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून के साथ हुई बैठक में 05 लाख पाउण्ड यानी 42 करोड़ 95 लाख की लाॅटरी के लिए चुना गया है। इसके साथ ही इस लाॅटरी की रकम युवक को देने के लिए 24,500 रुपए फीस मांगी गई थी। जाहिर है यह हाईटेक तरीके से ठगी का खेल है, जिसमें करोड़ों का लालच देकर लोगों से उनकी मेहनत से कमाए रुपए हड़प लिए जाते हैं। ये सारा खेल इतने सधे हुए अन्दाज में खेला जाता है कि धोखा खाने वाला चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि इसका ताना-बाना देश के किसी शहर में नहीं बल्कि विदेश में बुना जाता है। शुरुआत में रकम जमा करने के बाद कई और तरीकों से बाद में भी रुपए ऐंठे जाते हैं। अगर पीड़ित व्यक्ति पुलिस के पास मदद के लिए जाए भी तो ठगों को पकड़ना उनके लिए सम्भव नहीं हो पाता है। तकनीकी जानकारों से लेकर आरबीआई के अधिकारी इसे पफर्जी ई-मेल बताते हैं और सापफ कहा जाता है कि आरबीआई की तरपफ से ऐसा कोई भी ई-मेल किसी को नहीं भेजा जाता। लाॅटरी निकलने की बात कहकर इस तरह आॅनलाइन ठगी करने वाले उन लोगों को ज्यादातर अपना शिकार बनाते हैं, जिन्हे ऐसे Úाॅड की जानकारी नहीं होती। हमारे देश में अभी भी बड़ी संख्या में लोगों को ई-मेल के जरिए ठगी होने के मामले नहीं पता हैं, उन्हें चन्द हजार रुपए देने के एवज में करोड़ों मिलना वास्तव में ऐसे लगता है, जैसे उनकी लाॅटरी लग गई। खास बात यह है कि ऐसे ठग रुपए वसूलने के लिए तकनीकी दांवपेंच का बहाना बताते हैं और रकम भी इतनी रखी जाती है, जिससे लोगों को यह एहसास न हो कि वह ठगे जा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां क्राइम ब्रांच के पास बीते कुछ सालों में ऐसे मामलों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। जानकारों के मुताबिक, नोटबन्दी के बाद जिस तरह से कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने की बात कही जा रही है, ऐसे में अब साइबर ठगी के मामले और ज्यादा सामने आएंगे। साइबर ठगों का गिरोह पहले से ही सक्रिय है। ये ठग कभी एटीएम कार्ड के रिन्युवल के लिए तो कभी ब्लाॅक होने की झूठी सूचना देकर ग्राहकों से उनके पिन नम्बर या कार्ड नम्बर हासिल कर रहे हैं। एटीएम पिन मिलते ही ये ठग आॅनलाइन शापिंग कर या सीधे ग्राहक के खाते से पैसे उड़ा दे रहे हैं। इन ठगों के शिकार वह लोग ज्यादा हो रहे हैं जो गांवों में रहते हैं या अभी भी तकनीकी रुप से शिक्षित नहीं हैं। कई ठग तो एटीएम कार्ड के क्लोन बनाकर, उससे शाॅपिंग कर ले रहे हैं। ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं जब ग्राहकों के खाते से पैसे निकल गए और उन्हें पता भी नहीं चल पाया। इन मामलों में पुलिस भी कुछ खास नहीं कर पाती है। जानकारों के मुताबिक आॅनलाइन ठगी करने वालों को ट्रेस करना आसान नहीं होता है। बदमाश आमतौर पर फर्जी सिम और मोबाइल का उपयोग करते हैं। उसके बाद पफोन लगाकर खुद को बैंक मैनेजर बताते हुए एटीएम की जानकारी लेते हैं और आॅनलाइन ही शापिंग कर पैमेंट कर देते हैं। इसी तरह ई-मेल के जरिए भी लोगों की जेब में डाका डाला जा रहा है। साइबर एक्सपर्ट कहते हैं कि आॅनलाइन ठगी का सबसे बेहतर इलाज यही है कि लोग स्वयं जागरूक और सतर्क हों, जिससे वह ऐसे Úाॅड से बच सके।