लाहौर। कारोरा से बीमारी का मूल्यांकन करना चिकित्सा में सदियों पुराना तरीका है जो आज भी किसी न किसी रूप में ऐसे चिकित्सक के सूचना में प्रयुक्त है जो माता पिता पश्चिमी चिकित्सा से जुड़े हैं और उनके पास इस कला की असलियत मौजूद है वैसे तो कराह इस बोतल कहते हैं जिसमें पेशाब चिकित्सक को दिखाया जाता है लेकिन इसका मतलब पेशाब ही ली जाती है।
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अजीब बात यह है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान पेशाब और मल परीक्षण करने पर जोर देती है लेकिन मरीज इससे बेजारी या शर्म महसूस नहीं करता लेकिन जूंही चिकित्सा बास्क कारोरह परीक्षण कराने को कहता है उसकी तबियत मकदर हो जाती और उसे शर्म आने लगती है .उसकी कारण हो सकती है कि प्रयोगशालाओं में उसे अपना पेशाब आदि खुद उठा उठाकर नहीं फिरना पड़ता लेकिन नोटिफाई में कारोरह हाथ में लिए वह डाॅक्टर साहब के पास जाता है तो पेशाब की बदबू से उसका जी मतलाने लगता है।
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इसके अलावा भी पीड़ित कई रोगी हाथ में कारवा लिए बैठे होते हैं। मगर हकीम कारवा का ध्यानपूर्वक समीक्षा लेकर उसके रोग और शरीर आंदोलन का अनुमान लगाते हैं सर्जन की नजर में कारोरह रंग और सुरत देखकर आसानी से रोग की पहचान जाती है और रोगी प्रयोगशाला परीक्षण पर खर्च होने वाली भारी रकम बच जाती है।
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