हाल-यूपीः उत्तर प्रदेश हुआ दलितों के लिए डरावना

Dalit

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों को लेकर कैंपेन लगभग अपने अंतिम दौर में है और समाजवादी पार्टी-कांग्रेस गठबंधन तथा बहुजन समाज पार्टी (बसपा) खासतौर पर राज्य के दलित मतदाताओं को अपनी तरपफ करने के लिए जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं। सबको मालूम है कि ना तो अखिलेश यादव के बीते पांच बरसों के कार्यकाल में और ना ही मायावती के दौर में दलितों का भला हुआ। जहां अखिलेश सरकार के दौर में दलितों पर गोलियां चलती रहीं, वहीं बसपा सरकार के दौरान प्रदेश के पार्कों में मूर्तियां लगती रही थीं। जिस सरकार के काल में दलितों पर हमले जारी रहे, अब उसके मुखिया अखिलेश यादव फिर से जनता से वोट मांग रहे हैं। कह रहे हैं कि उनकी सरकार के दौरान प्रदेश का विकास हुआ। क्यों नहीं उत्तर प्रदेश के नौजवान, औरतें, बुद्धिजीवी, शिक्षक, व्यापारी अखिलेश यादव से सवाल पूछते कि वे दलित उत्पीड़न क्यों नहीं रोक पाए ? अखिलेश यादव से कड़े और चुभने वाले सवाल पूछे जाने चाहिए। पिसते दलित दरअसल उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़ते गए। साल 2015 में दलितों पर प्रदेश में लगातार हमले होते रहे।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, ये मामले 2014 के मुकाबले 3.50 प्रतिशत अधिक हैं। वर्ष 2014 में दलितों के साथ अपराध के आठ हजार 75 मामले दर्ज किए गए थे। नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति के लोगों के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक आठ हजार 358 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा यूपी में वर्ष 2014 में हुए ऐसे अपराधों से 3.50 फीसदी अधिक है।उसी साल यानी 2014 में पूरे देश में दलितों के विरुद्ध 47 हजार 64 अपराध घटित हुए थे। इनमें आठ हजार 75 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए। यूपी में दलित उत्पीड़न के हर रोज औसतन 20 मामले दर्ज किए गए। देशभर में दलितों के खिलाफ होने वाले उत्पीड़न के मामले में अकेले यूपी की हिस्सेदारी 17 फीसदी से भी ज्यादा है। बेहाल दलित नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो के मुताबिक उत्तर प्रदेश में दलितों की हत्या की दर देश में दलितों की औसत हत्या दर से दोगुनी है। बात अगर करें साल 2014 के आंकड़ों की, तो उत्तर प्रदेश में दलितों की 245 हत्याएं हुई थीं जबकि पूरे देश में कुल 744 मामले सामने आए थे।

इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की हत्या की दर राष्ट्रीय दर से दोगुनी थी। उत्तर प्रदेश में दलितों के खिलाफ बलवा या दंगा के 342 मामले हुए, जब कि पूरे देश में करीब एक हजार, 47 मामले दर्ज किए गए थे। प्रदेश में दलितों के विरुद्ध बलवे के अपराधों की दर राष्ट्रीय स्तर से लगभग डेढ़ गुना थी। औरतों का अपहरण राष्ट्रीय स्तर पर दलित महिलाओं को विवाह के लि ए विवश करने के इरादे से किए गए अपहरण की संख्या 427 थी। अकेले उत्तर प्रदेश में इस तरह के 270 मामले सामने आए। यूपी में ऐसे अपराध की दर राष्ट्रीय स्तर से तीन गुने से भी अधिक थी। पूरे देश में अपहरण के 758 मामले दर्ज किए गए, जबकि अकेले यूपी में अपहरण के 383 मामले हुए। उत्तर प्रदेश में दलितों के अपहरण की दर राष्ट्रीय स्तर से दोगुनी थी। बेरुखी पुलिस की उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ नाइंसाफी का आलम यह है कि यहां के थानों में दलितों की शिकायते तक दर्ज नहीं की जाती। पुलिस वाले शिकायत दर्ज करवाने आए दलितों को डांट कर वापस भगा देते हैं।

प्रदेश के वर्दीधारियों के सामने दलितों की कोई सुनवाई नहीं है। इसका अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि साल 2014 में उत्तर प्रदेश में दलितों के एक हजार 500 मामले धारा 156(3) अदालती आदेश से दर्ज किये गए थे। संकेत तो मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश का दलित मतदाता इस बार ना तो समाजवादी पार्टी के पक्ष में खड़ा है और ना ही बसपा से प्रभावित लगता है।