राष्ट्र व राज्य का बढ़ता हुआ क्षय और कदम वापसी Rashtriya aur Rajya
हिना आज़मी
राष्ट्रीय और राज्य (Rashtriya aur Rajya) के क्षय का पहला आयाम तो यह है कि पिछले काफी समय से भारत की जनता को राज्य की वैधता लगातार कमजोर होती लग रही है, जो सबके अपनी खुशहाली के लिए राज्य पर निर्भर थे, वह भी इसी तरह सोच रहे हैं कि अब राज्य में उन्हें लाभ पहुंचाने की क्षमता नहीं रही।
मध्यवर्ग पेशेवर वर्ग और मीडिया जैसे कामों से जुड़े तबकों की निगाह में भी राज्य की साख पहले जैसे नहीं रह गई है, दूसरे नागरिक हो या प्रांतीय जिला और स्थानीय स्तर की संस्थाएं हो, मध्यवर्ती स्थानीय इकाइयां संस्थान हो, समुदायिक संस्थाएं हो या स्वयंसेवी संस्थाएं और नागरिक समाज की अन्य संस्थाएं राज्य को केंद्र सरकार के रूप में देखने पर उन्हें लगता है कि उन उसके पास ना पहले जैसा प्राधिकार रह गया है, और ना ही उसका प्रभाव मंडल प्रताप पहले जैसा रह गया है।
जरा इसे भी पढ़ें : आर्थिक आजादी के उभरते हुए कुछ सवाल
कभी स्वायत्तता और कभी अलगाव के लिए चलाए जाने वाले किस्म-किस्म के क्षेत्रीय आंदोलन होने राज्य को टकराव और हिंसा के दौर में फंसा दिया है। तीसरे देश के भीतर उद्योग श्रम धर्म जाति भाषा और जातीयता जैसे सत्ता के अन्य केंद्रों के संदर्भ में राज्य की विशिष्ट और प्रभावी भूमिका की अवधारणा अब इतनी असरदार नहीं रही।
आर्थिक मामलों में दो कदम वापसी का यह सिलसिला कम से कम 20 साल पुराना
इसी तरह देश के बाहर भू राजनीतिक और सामरिक सत्ता के केंद्रों से लेकर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के साथ-साथ पूंजी और वाणिज्य की बहुराष्ट्रीय संरचनाओं के संदर्भ में भी राज्य के प्रभाव का क्षय हो गया है। इसी के परिणाम स्वरुप स्वायत्तता और आत्मनिर्भरता पर जोर कम हुआ है। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी भी इन मुद्दों के लिए कम समर्थन दे रही है, जिससे लेकर संयुक्त राष्ट्र कि संगठन यूनिटी संस्थाओं की जगह विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व व्यापार संगठन रचनाएं लेती जा रही हैं।
जरा इसे भी पढ़ें : बाल मजदूरी : देश का नासूर जख्म Bal majduri in india
सामाजिक और आर्थिक मामलों में केंद्रीय मंच पर रहने के बजाय भारतीय राज्य अपने कदम वापस खींच रहा है। आर्थिक मामलों में दो कदम वापसी का यह सिलसिला कम से कम 20 साल पुराना हो गया है। सामाजिक दायरे में हालात यह है कि अब राज्य पहले की भांति अल्पसंख्यकों को आदिवासियों महिलाओं और बच्चों को नए नए अवसर उपलब्ध कराने की भूमिका नहीं निभा रहा है।
अब शिक्षा ,पर्यावरण, स्वास्थ्य और आवासन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में राज्य जनता की पहल अकादमी खोलने और चिंतन के लिए प्रोत्साहन देता नजर नहीं आता। उसे समाज के दलित उत्पीड़न के लिए बनाए गए कानूनों के कार्यान्वयन में भी नहीं यह साबित हो चुका है, कि जब तक शिक्षा ,स्वास्थ्य और प्रदूषण रहित पर्यावरण के संदर्भ में गरीबों की सुविधाओं का विकास नहीं होगा, तब तक वह अपने लिए बेहतर आर्थिक भविष्य की रचना कर पाने में सक्षम नहीं हो पाएंगे।