अगर सफ़र में पता न हो कि किबला रुख (Qibla direction) तो क्या करें

Qibla direction
अगर सफ़र में पता न हो कि किबला रुख (Qibla direction) तो क्या करें

किबला रुख जिसमें मुसाफिर को मालूम न हो सके तो वह कैसे नमाज पढ़े?

यदि सफर के दौरान किबला रुख (Qibla direction) होने से संबंधित प्रश्नों पर अपने जवाब पढ़े हैं, लेकिन जब हम सफर में होते हैं तो हमारे पास ऐसा कोई साधन नहीं होता जिनकी मदद से किबला रुख पता कर सकें, जैसे कि अमेरिका में है, कि हमें किबला रुख पूछने पड़ता है या किसी मुसलमान को किबला रुख खोजने के लिए मुश्किलात पैदा होे जाती है।

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बड़ी कोशिश लेकिन बड़ी कोशश करने के बावजूद किबला रुख नहीं समझ पाते एवं नमाज का वक्त निकल जाने की डर को मद्देनजर किसी भी ओर रुख करके नमाज अदा कर सकते हैं और फिर बाद में इसी नमाज को दोहरा लिया जाए, क्योंकि हमें मालूम है कि अल्लाह तआला पूरी धरती को नमाज पढ़ने की जगह करार दिया। इसलिए अगर कोई मुसलमान किसी ऐसी जगह मौजूद हो जहां किबले का रूख पता लगाना संभव न हो और वह अपने गालिब गुमान के मुताबिक किबला रुख होकर नमाज अदा कर ले, तो बाद में उसे नमाज दोहराने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसकी नमाज सही है और इस पर कुछ नहीं होगा।

हर शख्स ने अपनी राय के अनुसार अलग नमाज अदा की

तर्क जाबिर रजियल्लाहु अन्हु की हदीस है किः (एक सफर या गजोे हम पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थे, तो बादल छा गए और हम किबला रूख (Qibla direction) तलाश करने की खूब कोशिश की और इस बारे में असंतोष पैदा हो गया, तो हर शख्स ने अपनी राय के अनुसार अलग नमाज अदा की, लेकिन हर शख्स अपनी दिशा निश्चित करने हेतु अपने सामने क्षैतिज पत्र (अफकी खत) खींच लेता था|

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फिर जब सुबह हुई तो हम उन्हें खींचते हुए इलाके को देखा तो हम सब गलत थे किसी ने किबला रुख नमाज अदा नहीं की थी, इसलिए हमने यह मुद्दा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने रखा तो आपने हमें फिर नमाज पढ़ने का हुक्म नहीं दिया, बल्कि फरमायाः तुम्हारी नमाज हो गई है।)  दारक्नी, हाकिम और बयाकी ने रिवायत किया है और अल्बानी ने इसे साक्ष्य के आधार पर हसन करार दिया है।

शैख इब्ने बाज रहिमहुल्लाह से ऐसे सख्श के बारे में सवाल किया गया जिसने किबला रूख खोजने की कोशिश की लेकिन फिर भी गलत रूख में नमाज अदा की। तो उन्होंने जवाब दियाः अगर कोई मुसलमान सफर में हो या किसी ऐसे इलाके में हो जहां किबले का रूख बताने वाला कोई न हो तो उसकी नमाज सही है, लेकिन शर्त यह है कि वह किबला रूख खोजने के लिए उसने बहुत कोशिश की लेकिन उस सख्श को मालूम नहीं हो पाया और उसने नमाज अदा कर ली व बाद में मालूम हुआ कि उसने किबला रुख होकर प्रार्थना नहीं की।

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