नवरात्रि और मान्यताएं
मान्यता
लंकायुद्ध में श्रीराम से रावण वध के लिए ब्रह्माजी ने चंडी देवी का पूजन कर उनको प्रसन्न करने को कहा। ब्रह्माजी ने के बताए अनुसार चंडी पूजन हेतु दुर्लभ एक 108 नीलकमल की व्यवस्था की गई। दूसरी ओर रावण ने भी अमरता के लालच में विजय कामना से चंडी देवी का पाठ प्रारंभ कर दिया। यह बात इंद्र देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के तक पहुँचाई और मंत्रणा दी कि चंडी देवी का पाठ यथासभंव पूर्ण होने दिया जाए। इधर श्रीराम की पूजा स्थल से हवन सामग्री में से एक नीलकमल रावण की मायावी शक्ति से गायब हो गया और राम का संकल्प टूटता-सा दिखाई देने लगा। भय इस बात का था कि चंडी देवी क्रोधित न हो जाएं। दुर्लभ नीलकमल की व्यवस्था तत्काल संभव थी, तब भगवान राम को स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यों न संकल्प पूरा करने के लिए एक नेत्र अर्पित कर दूं। प्रभु राम जैसे ही तरकस से एक बाण निकालकर अपना नेत्र निकालने के लिए तैयार हुए, तभी चंडीदेवी ने प्रकट हो गई और हाथ पकड़कर प्रसन्न होते हुए विजय होने का आर्शीवाद दिया।
वहीं दूसरी ओर रावण के चंडीदेवी के पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में ब्राह्मण बालक का रूप धर कर हनुमान जी ब्राह्मणों की सेवा में जुट गए। निःस्वार्थ भाव सेवा देख ब्राह्मणों ने हनुमान जी से वर माँगने को कहा। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- प्रभु, यदि आप प्रसन्न हैं तो जिस मंत्र से यज्ञ कर रहे हैं, उसका एक अक्षर मेरे कहने से बदल दीजिए। ब्राह्मण इस रहस्य को समझ न सके और तथास्तु कह दिया। तब हनुमानजी ने कहा कि मंत्र में जयादेवी भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ का उच्चारण करें, बस यही मेरी इच्छा है। ‘भूर्तिहरिणी’ अर्थात प्राणियों की पीड़ा हरने वाली एवं ‘करिणी’ का तात्पर्य हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली, जिससे देवी क्रोधित हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया। हनुमानजी ने मंत्र में ‘ह’ की जगह ‘क’ करवाकर रावण के यज्ञ की दिशा ही बदल दी थी।
अन्य मान्यताएं
इस पर्व से जुड़ी एक अन्य कथा अनुसार देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर के एकाग्र ध्यान से लाचार होकर देवताओं ने उसे अजय होने का वरदान दे दिया। महिषासुर वरदान देने के बाद देवताओं को चिंता होने लगी कि वह अब इस शक्ति का गलत उपयोग करेगा। और अपेक्षित प्रतिफल स्वरूप महिषासुर ने नरक का विस्तार स्वर्ग के द्वार तक कर दिया और उसके इस चेष्टा को देख देवता स्तब्धता की स्थिति में आ गए। महिषासुर ने इन्द्र, सूर्य, वायु, अग्नि, चन्द्रमा, वरुण, यम एवं अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए, और स्वयं स्वर्गलोक का स्वामी बन बैठा। देवताओं को महिषासुर के क्रोध से पृथ्वी पर विचरण करना पड़ा। तब महिषासुर के इस घृष्टता से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी माँ दुर्गा की रचना की। ऐसा माना जाता है कि माँ दुर्गा के रचना करने में सारे देवताओं का एक समान शक्ति लगायी गयी थी। महिषासुर का सर्वनाश करने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र शस्त्र माता दुर्गा को दे दिए थे व कहा जाता है कि इन देवताओं के संयुक्त प्रयास से देवी दुर्गा और शक्तिशाली हो गईं थी। इन नौ दिनों तक देवी दुर्गा व महिषासुर के बीच संग्राम हुआ और अन्ततः महिषासुर का वध कर महिषासुर मर्दिनी कहलायीं।