पिछले तीन दिन से चल रहे उर्दू के महाकुम्भ जश्न-ए-रेख़्ता का आज आख़िरी दिन था। शाम को अचानक बिना बुलाये पाकिस्तानी से निष्काषित लेखक तारिक फ़तेह आ गया। लेकिन इससे पहले कि वो जश्न-ए-रेख़्ता के मंच तक भी पहुँच पाता, वहाँ मौजूद नौजवानों ने नारेबाजी शुरू कर दी। नौजवानों ने तारिक को ‘पाकिस्तानी जासूस’, पाकिस्तानी भगोड़ा, इत्यादि शब्दों के साथ साथ वापस जाओ के नारे लगाए। बात अचानक तब बिगड़ गयी जब तारिक ने नौजवानों को ‘हिंदुस्तानी कुत्ते’ कहा। कुछ नौजवानों ने आगे बढ़ कर उसको तमाचे जड़ दिए।
संगठन द्वारा भीड़ को तीतर बितर किये जाने का प्रयास किया गया। लेकिन नौजवानों जूता उतार कर नारे हाथ में उठा लिए और जूतों को उठाकर ही नारे लगते रहे। और कुछ जूते तारिक को दे मारे।
स्थिति को बिगड़ता रेख़्ता फाउन्डेशन के चेयरमैन संजीव सराफ, और रेख़्ता के अन्य अधिकारीगण मौके पर पहुंचे। भारी संख्या में पुलिस बल भी बुलाया गया लेकिन नौजवानों के प्रदर्शन पर किसी प्रकार काबू न पाया जा सका। अंतत: तारिक को मुख्य द्वार के बाहर तक खदेड़ते हुए भागने पर मजबूर कर दिया। प्रदर्शन में महिलाएं भी सम्मिलित रहीं। JMI, JNU, DU, AMU तथा अन्य विश्विद्यालयों के छात्रों ने भरपूर विरोध किया। प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे शोएब शाहिद ने मीडिया के संवाददाताओं को साक्षात्कार में कहा कि जश्न-ए-रेख़्ता वास्तव में एक आम भारतीय के दिल की आवाज़ है जहाँ समाज के समस्त वर्ग के लोग मिल जुल कर मोहब्बत को सेलिब्रेट करते हैं। लेकिन ऐसे में तारिक फ़तेह जैसे शैतानों का भला क्या काम? ऐसे लोग समाज में केवल ज़हर घोल सकते हैं, जबकि हम भारतीय सुकून से अपनी गंगा जमुनी तहज़ीब में रहना चाहते हैं। हम नौजवान मुहब्बत की महफ़िलें सजाना जानते हैं और उसको शैतानियत से पाक़ करना भी।
दिल्ली से अनुभव शर्मा की रिपोर्ट