कर्म से ही होती ईश्वर की प्राप्ति, परमात्मा कर्म से ही मिलता है

Iswar ki prapti
कर्म से ही होती ईश्वर की प्राप्ति, परमात्मा कर्म से ही मिलता है Iswar ki prapti

Iswar ki prapti सृष्टि में भगवान एक है और भगवान को प्राप्त करने की विधि भी एक ही है। आरंभ में प्रत्येक व्यक्ति प्रकृति की ओर उन्मुख होता है और भगवान विष्णु व्रत रहते हैं जब वह ईश्वर की ओर उन्मुख हो जाता है तो उसे धारण करने की विधि एक ही होती है।

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इंद्रियों पर संयम किसी का प्रारंभिक स्तर पर होगा तो किसी का मध्यम स्तर पर होगा, किसी का उन्नत भी हो सकता है, कोई प्राप्ति के समीप होगा तो कोई इंद्रियों पर संयम प्राप्त कर चुका होगा। उत्तर पूजा नीचे हो सकता है लेकिन साधना 24  नहीं हो सकती। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताया है कि एक ब्रह्म की शपथ ही शाश्वत है, उसे ही वैदिक विधियों से ऋषियों ने आत्मा परमात्मा आदि नामों से पुकारा है।

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आत्मा ही सत्य है उसे प्राप्त करने की नियति विधि योग विधि, यज्ञ शरीर से बाहर नहीं है उस यज्ञ को चरितार्थ करना उसे कार्य रुप देना कर्म है, जिस उपाय से यज्ञ पूर्ण हो उसके उपाय का नाम कर्म है कर्म का अर्थ है आराधना। कर्म का अभिप्राय है चिंतन। इसके बिना ना सृष्टि में कभी कोई ईश्वर को प्राप्त कर सकता है और ना ही भविष्य में ही कोई प्राप्त कर सकेगा। अन्य कोई तरीका नहीं है, पूर्व में अनेक ऋषि नियत कर्म पर चलकर मुझे प्राप्त कर चुके हैं।

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