वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करना भारत की प्राथमिकता: प्रधानमंत्री

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत आज दुनिया में प्रगति का उदाहरण और निवेश का केन्द्र बना है। ऐसे में निवेशकों में यह भरोसा पैदा करना जरुरी है कि व्यापार से जुड़े विवादों का देश में सरलता से  और जल्द निपटारा हो जाएगा। ऐसे में वैकल्पिक विवाद समाधान पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना हमारी राष्ट्रीय प्राथमिकता है।
नीति आयोग की पहल पर विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा कई विदेशी और घरेलू संगठनों के सहयोग से भारत में पंचाट एवं प्रवर्तन को सशक्त बनाने की दिशा में तीन दिवसीय वैश्विक सम्मेलन के समापन अवसर पर रविवार को श्री मोदी ने कहा कि विश्व स्तर पर भारत को मध्यस्थता केंद्र के रूप में बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने भरोसा जताया कि इस विषय पर समग्र विचार-विमर्श से पंचाट को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी ।
उन्होंने कहा कि मध्यस्तता का सही अर्थ उन्होंने महात्मा गांधी से सिखा है जिन्होंने कहा था कि मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि वह दूसरे के दिल तक पहुंच सकता है। उनका मानना था कि एक वकील का सबसे बड़ा काम विवाद में उलझे पक्षों को एक करना है और उन्होंने कहा भी था कि बकालत के 20 वर्षों के दौरान उन्होंने यही काम किया और पाया कि उनका कोई नुकसान नहीं होता।
देश में पंचाट एवं प्रवर्तन से जुड़े कानूनी पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने 1000 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। एक व्यापक दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 अधिनियमित की गई है। हमने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण लागू कर दिया है और एक सांविधिक मौद्रिक नीति समिति स्थापित की है। हमने त्वरित समाधान के लिए उच्च न्यायालयों के वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग एवं वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन 2015 के अधिनियम को अधिनियमित किया है। एक राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड देशभर में जिला अदालतों में लंबित मामलों पर डेटा प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। पंचाट, मध्यस्थता और सुलह सहित वैकल्पिक विवाद समाधान के लिए एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बनाये जाने की जरूरत है। पंचाट और सुलह अधिनियम में प्रमुख संशोधन किया गया है। ताकि मध्यस्थता की प्रक्रिया को आसान, समय और परेशानी मुक्त बनाया जा सके। भारत में प्रतिभाशाली वकीलों और न्यायाधीशों की कोई कमी नहीं है। हमारे यहां सेवानिवृत्त न्यायाधीशों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की एक बड़ी संख्या है जिसका मध्यस्थों के रूप में इस्तेमाल कियाजा सकता है।
इस अवसर पर प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि मध्यस्थता से जुड़े भरोसेमंद प्रतिष्ठापन बेहद जरूरी हैं। चीन में ऐसे 300 प्रतिष्ठापन हैं लेकिन भारत में यह एक या दो हैं। हमें मध्यस्थता करने वालों को ट्रेनिंग देने की जरुरत है अभी यह काम पूर्व न्यायाधीश कर रहे हैं लेकिन विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े जानकार भी इसका हिस्सा हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमें कानूनी ढांचे पर भी काम करने की जरुरत है। उन्होंने स्वीकार किया कि पंजाट से जुड़े निर्णयों पर न्यायालय हस्तक्षेप कर रहे हैं। जरुरी है कि कोर्ट इस बात के प्रति संवेदनशील बने और एक ही दिशा में न सोचे ।
उन्होंने कहा कि देश आर्थिक प्रगति की ओर अग्रसर है, विदेशी मुद्रा भंडार बढा है और कई विदेशी कंपनियां देश में काम कर रही है फिर भी भारत व्यापार में आसानी के मुद्दे पर पीछे है। निवेशकों का ध्यान देश की न्यायिक ढांचे पर भी कापफी निर्भर होता है। ऐसे में न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत बनाना जरुरी है ताकि निवेश को आकर्षित किया जा सके।
इस अवसर पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि निवेशकों के हितों और सरकार के नियमन से जुड़े अधिकारों के बीच एक समन्वय बनाने की जरुरत है। उन्होंने कहा कि जरुरी सुरक्षा कानूनों को महत्व देने की जरुरत है और यह बात दुनिया को भी समझनी चाहिये। स्थानीय कानूनों को महत्व दिया जाना बेहद जरुरी है।
उन्होंने कहा कि आज वैश्विक मध्यस्थता संस्थानों को समझने की आवश्यकता है कि  एशिया और भारत विकास की ओर बढ़ रहे हैं और उनको जरुरत है कि वह इस स्थिति में पंजाट से जुड़ी आवाज को सूने । उन्होंने कहा कि मध्यस्थता से जुड़ी प्रक्रिया में तीन बिन्दू महत्वपूर्ण हैं। मध्यस्थता से जुड़े प्रतिष्ठानों को बढ़ावा देना। दूसरा सरकार का मध्यस्थता से जुड़ी प्रक्रिया के लिए सुविधा प्रदान करना और तीसरा न्यायपालिका की सार्वजनिक नीति को बनाये रखने और पंचाट प्रक्रिया के तुलनात्मक अधिकार को सम्मान देने में संतुलन बनाना।
इस अवसर पर अटाॅर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमारे देश में पंचाट कोर्ट की तरह से ही काम करती है और इससे मध्यस्तता जल्दी नहीं हो पाती। उनका मानना है कि पंचाट से जुड़ी प्रक्रिया में शामिल न्यायाधीशों को न्यायिक प्रक्रिया से अलग हटकर काम करना होगा और यही बात वकीलों पर भी लागू होती है। वकील इस काम को पार्ट टाइम की तरह करना चाहते हैं जबकि जरुरत है कि इसके लिए अलग से वकील हो जो यह काम कर सकें। उन्होंने कहा कि पंचाट से जुड़े मुद्दे को अन्य मामलों की ही तरह देखा जाता है और इस पर उठी आपत्ति को अपील और सूट की तरह मान लिया जाता है। उन्हें लगता है कि इसमें अंतर करने की जरुरत है और इसे न्यायिक शिक्षा का हिस्सा होना चाहिये।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अनिल दवे ने कहा कि भारत में कानूनी जवाबदेही से ज्यादा नैतिक जवाबदेही मान्यता रखती है। ऐसे में जहां सिविल के स्थान पर यदि कोई महंगी मध्यस्थता प्रक्रिया अपनाता है तो पंचाट और वकीलों की जिम्मेदारी है कि उनका निपटान संतोषजनक ढंग से हो। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कार्यक्रम की शुरुआत में तीन दिन तक चले इस सम्मेलन के बारे में जानकारी दी।