विकसित नहीं विकासशील ही बनकर रह गया हमारा देश

India
विकसित नहीं विकासशील ही बनकर रह गया हमारा India
हिना आज़मी

हमारे देश India में भले ही सनसाधनों की कमी न हो, फिर भी विकसित नहीं विकासशील ही बनकर रह गया है। कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत आज गरीबी के संकट से बेहाल है। यहां विकास की गति की दर बहुत कम है। कभी बाहरी युद्ध होने पर इसे आर्थिक संकट से जूझना पड़ा, तो कभी यहां गृह युद्ध की स्थिति में देश औऱ सार्वजनिक संपत्ति का दहन हुआ।

हिंसा के आक्रोश से साम्प्रदायिक दंगे समय- समय पर होना तो हमारे देश में आम बात है। विगत वर्ष के कुछ मुद्दे को ही देखा जाए तो छोटे -छोटे मुद्दों को बड़ा रूप देकर हिंसा भड़काने वाले, चाहै राजनेता हो या धर्मगुरु, इस हिंसक आग में रोटी सेंकने का काम करते है। इस स्थिति में जान- माल की हानि  तो होती है ही साथ-साथ इससे देश की आर्थिक स्थिति औऱ विकास की गति पर  बुरा प्रभाव पड़ता है।




हमने कुछ वक्त पहले महाराष्ट्र की दलित-मराठा हिंसा को देखी,बाबा राम रहीम  के उपासकों का आक्रोश देखा,  औऱ  हाल ही में  चल रहे दलित संघर्षों को.देखें तो हमें पता चलता है कि आज भारत,  चीन -अमेरिका से विकास के मामले में पीछे क्यो है? क्योंकि हमारे भारत में प्रत्येक समुदाय-जाति विकास की पहल भले ही न करें लेकिन हिंसा की पहल जरुर करतीं हैं।

फूट डालो राज करो की नीति

भारत का ऐतिहासिक परिदृश्य देखते हैं तो हमें दलित जातिवाद की त्रासदी झेलते नजर आएंगे। 2014 की एक रिपोर्ट के अनुसार दलित उत्पीड़न के 47000 मामले दर्ज मिले, जिनमें एक वर्ष में 7000 की बढोत्तरी हुई। इन सब के जिम्मेदार ऊंचे कुल के लोग भी है जो ऊंचे कुल में जन्म लेने पर खुद को गौरान्वित महसूस करते हैं।

इन हिंसाओ को पैदा करने वाले जनता को लडवाते हैं बिल्कुल ऐसे ही जैसे अंग्रेजों ने “फूट डालो राज करो” की नीति अपनाकर राज किया ऐसे ही राज कर रहे हैं, और हम लोग रिमोट कंट्रोल रोबोट की तरह चलते हैं। कमाल की बात तो यह है कि फसाद को जन्म देने वाले लोगों को कुछ नहीं होता,मरती है तो आम जनता।




क्या आप ने कभी सुना कि यह नेता या बाबा दंगे मे मारा गया? ये हिंसाएं हमारे  विकास के लिए शत्रु साबित होंगी, इसलिए सरकार औऱ समाज दोंनो को हिंसक मुद्दों को छोड़ गरीबी, भृष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला मुद्दों पर विचार-मन्थन करना ज़रूरी है।

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